जब-जब घाट पर हुई कुत्तन की भीड़ अपना-अपना दर्द और अपना-अपना दुखड़ा…
एक बार फिर आधी रात चकवा अपने घर की खिड़की से जंगल को निहारने के साथ शहर को भी निहार रहा था। चेहरे पर चिंता थी और कुछ दर्द भी था। इस बार चिंता एक बिरादरी को लेकर दिख रही थी। इस बीच खिड़की से बाहर देख रहे चकवे को आवाज देकर चकवी ने पूछा- आज…
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