गुस्ताखी माफ़- नेताओं की कलंत्री और बाबाओं की जंत्री….राजा की बीस करोड़ी योजना…उमाजी को लेकर चिंता

नेताओं की कलंत्री और बाबाओं की जंत्री

आने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर जहां शहर में विकास कार्यों से ज्यादा उम्मीदवारों को अब बाबाओं की कथा पर ही भरोसा दिखाई दे रहा है, आने वाले समय में शहर में लगभग हर दूसरी विधानसभा में बड़ी कथाएं, भोजन-भंडारे के साथ होती दिखाई देंगी। भव्य कथाओं के जनक दादा दयालू के क्षेत्र में तो अब उन्होंने बड़ी कथाओं के बजाय छोटी-छोटी दस कथाओं पर ध्यान केंद्रित कर दिया है। उनके पदचिह्नों पर चल रहे अन्य नेताओं में तुलसी पेलवान ने मांगलिया में पंडोखर सरकार की भव्य कथा का आयोजन करवा दिया। एक अनुमान के अनुसार यह कथा सवा करोड़ से ज्यादा के खर्च की बताई जा रही है, यानी हर मतदाता की जेब में यदि कथा नहीं कराई जाती तो लाड़ले मतदाताओं की जेब में पंद्रह सौ से दो हजार रुपए तो चले ही जाते। जो भी हो, इधर बाबाओं की चिट्ठियों पर नेता भी प्रसन्न हो रहे हैं। राऊ के विधायक जीतू पटवारी को वे चालीस हजार मतों से जीतने का बता गए हैं, बाकी विधायक भी अब चिट्ठी खुलवाने की तैयारी में लग गए हैं।
लग रहा है, हरछठ मैया की कथा चल रही है, जैसे उनके दिन फिरे, ऐसे हमारे दिन फिरें और फिरते रहें। मतदाताओं का क्या है, वे तो पहले भी फिर रहे थे और आगे भी फिरते रहेंगे। इस मामलें में भाजपा के ही एक वरिष्ठ सम्मानित नेता ने कहा कि कैसा दुर्भाग्य है कि जिन्हें शहर के विकास और आम लोगों की समस्या निदान के लिए चुनाव जितवाकर भेजा था।
वे बाबाओं के चक्कर में गंडे-ताबिज बंधवा रहे है। यह बताता है कि उन्हें अपने कार्यों पर अब भरोसा नहीं रहा, जो काम धार्मिक संस्थाओं का है, वे काम नेता कर रहे है। इन से यह भी पूछों की कथा पर खर्च हो रहे करोड़ों रुपए कहा से आ रहे है। यह इस बात का भी घौतक है कि किस तरह भ्रष्टाचार से रुपया नेताओं की जेब में जा रहा है। एक ही विधानसभा में 3 कथाएं सब्जी वाले करवा रहे है, यानि 2 साल में 4 करोड़ रुपए से ज्यादा स्वाहा हो गए। दुर्भाग्य यह भी है कि जिन्हें सोचना चाहिए वे पत्तल में 4 पूड़ी, सब्जी और नुक्ती खाकर पुण्य लेने की तमन्ना रख रहे है। इधर, नेता उन्हें पूड़ी खिलाकर करोड़ों कमा रहे है। इसलिए जीत-हार की चिट्ठियों पर फैसला हो रहा है। काम और मतदाता की चिंता किसी को नहीं है।

राजा की बीस करोड़ी योजना…

क्षेत्र क्रमांक चार में इन दिनों कांग्रेस की ओर से सिंधी समाज के कारोबारी राजा मांदवानी को उम्मीदवार बनाए जाने को लेकर एक धड़ा धूमधाम से कामकाज में लग गया है। लगना भी चाहिए, कारोबारी हैं, पैसों की कोई कमी नहीं है। बाजार में भी कई को उधार दे रखा है और कइयों से उधार ले रखा है। बताने वाले बता रहे हैं कि वे लोकप्रिय सांसद से लेकर लोकप्रिय विधायक तक के साथ कारोबारी पार्टनर बने हुए हैं। पैसे की कोई कमी नहीं है।

उनके साथ काम कर रहे सिंधी समाज के ही एक कार्यकर्ता का कहना है कि राजा मांदवानी की उम्मीदवारी तय है, क्योंकि कांग्रेस में पैसे से टिकट दिया जाता है और उन्होंने बीस करोड़ खर्च करने का ब्यौरा नेताओं को दे ही दिया है।

उनका कांग्रेस से कोई लेना-देना नहीं है। जीत गए तो विधायक बन ही जाएंगे, हार गए तो दो नंबर के पैसों का ठिया-पाया लग जाएगा। यहां तक कहा जा रहा है कि दस करोड़ रुपए तो वे कांग्रेस के नेताओं को ही देने की बात भी कर रहे हैं।
कौन, क्या कहता है, यह तो समय ही बताएगा, पर इसके पहले भी सिंधी समाज के ही एक और ताकतवर कारोबारी भी यहां से करोड़ों रुपए खर्च कर उम्मीदवारी का दावा कर चुके हैं। उनकी भी कांग्रेस में और क्षेत्र क्रमांक चार में जमीन नहीं थी। देखना होगा, कांग्रेस इस बार क्षेत्र क्रमांक चार में पैसे के बल पर चुनाव लड़ने वालों को मैदान में उतारेगी या फिर पार्टी के ही संघर्ष कर रहे किसी कार्यकर्ता का सम्मान करेगी।

उमाजी को लेकर चिंता

उमा भारती की मध्यप्रदेश में चुनावी वापसी को लेकर इन दिनों भाजपा के कई दिग्गज नेता परेशान हैं। उनका मानना है कि लंबे समय से वे संपर्क में भी नहीं बने हुए हैं और उमा भारती का स्वभाव भी सबको मालूम है, ऐसे में कहीं उनकी वापसी हो गई तो कठिनाई खड़ी हो जाएगी। जानकारों का दावा है कि वे एक बार फिर दिल्ली के ही निजाम में सियासत कर सकती हैं।

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