गुस्ताखी माफ़: ज्योतिबाबू पर क्यों लग रहे है निशाने पर निशाने…महिला अफसरों ने कसी नकेल…

ज्योतिबाबू पर क्यों लग रहे है निशाने पर निशाने…

राजनीति की बगिया के रंग बदलते फूल का नाम ही नेता है और उस फूल पर ज्यादा ध्यान जाता है, जो अपनी डाली से दूसरे की डाली पर झूमता रहता है और कभी-कभी झूमने के बाद भी कई मुसीबतें फूल के पास वापस आती हैं। इसी प्रकार से एक फूल यानी ज्योति बाबू, जो इन दिनों भाजपा की बगिया में रंगों का संयोजन करने के लिए कंधे ढूंढ रहे है, पर उन्हें सही कंधे नहीं मिल पा रहे हैं। भाजपा में भी कंधों पर जिम्मेदारी तभी दी जाती है, जब उसमें फायदा हो, क्योंकि अब राजनीति में भी उद्योगवाद दिखाई देने लगा है। ऐसे में ही ज्योति बाबू के लिए भाजपा में कंधो से संकट आ रहा है। कई प्रकार के सवाल खड़े हो रहे हैं। इसमें सबसे बड़ा सवाल कि क्या भाजपा अब ज्योति बाबू से मुक्त होने की तैयारी कर रही है। जब वे भाजपा में ढोल-ढमाके के साथ आए थे, तब उन्हें यह नहीं मालूम था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संतान कोई अकेली भाजपा ही थोड़ी है। उन्होंने कई संतानें गोद ले रखी हैं और उनका ख्याल सबसे पहले रखना पड़ता है। उनको खुश रखना पड़ता है। हालांकि इसके लिए उन्होंने प्रयास तो किए, पर वे सफल नहीं हो पाए। धीरे-धीरे भाजपा में वे फॉरेन बॉडी के रूप में ही जगह बना पाए हैं। पिछले दिनों लगातार ज्योति बाबू को लेकर भाजपा के पूर्व विधायक के नामर्द कहने से लेकर गुना के सांसद तक उन्हें लगातार दोगला बोल रहे हैं। इसके अलावा भी भाजपा के कई नेता उन पर प्रहार कर रहे हैं, परंतु भाजपा में इनमें से किसी को भी संगठन ने कोई नोटिस नहीं जारी किया है। स्थिति यह है कि दूसरी ओर उन्हीं के समर्थक अब वापस कांग्रेस में लौट रहे हैं। इस मामले में इंदौर के भाजपा के नेताओं का कहना है कि जब ज्योति बाबू का आगमन होता है तो उनके समर्थक जमा हो जाते हैं। इसके बाद वे भाजपा के किसी भी कार्यक्रम में शामिल नहीं हो रहे हैं और न ही भाजपा कार्यालय भी जाते हैं। इधर ज्योति बाबू के समर्थक अब कहने लगे हैं कि सिंधिया द्वारा भाजपा की सरकार बनाने के लिए दी गई कुर्बानी का प्रतिफल उन्हें नहीं मिल रहा है और इसी कारण अब दरारें लगातार बढ़ती जा रही हैं। भाजपा के ही एक वरिष्ठ नेता का कहना है पिछले चुनाव में उन्होंने तीस उम्मीदवार का दावा किया था, जिसमें से कई हार गए। इस बार वे चालीस से ज्यादा उम्मीदवारों के लिए दबाव बनाएंगे और भाजपा का मध्यप्रदेश संगठन इसे लेकर सहमत नहीं होगा। हालांकि फैसला तो दिल्ली से होना है, पर फिर भी भाजपा ज्योति बाबू को तो भाजपा में ही रखना चाहती है, पर उनके समर्थकों से मुक्त होना भी चाहती है, ताकि पुराने अनुभव के आधार पर यदि वे वापसी करें तो अकेले या अपने खास साथी के साथ ही वापस जा पाएं। जो भी हो, उन पर किए जा रहे कटाक्ष पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी जा रही है तो क्या माना जाए कि भाजपा में उनका उपयोग अब समाप्त हो रहा है।

महिला अफसरों ने कसी नकेल…

शहर में दो महिला अफसरों ने अपने प्रशासनिक कार्यों से नकेल कस रखी है और इस कसावट के कारण बेहतर परिणाम भी दिख रहे हैं। पहली हैं ग्रामीण क्षेत्र की पुलिस अधीक्षक इथिका वासल, जो ग्रामीण क्षेत्र के अपराधों को लेकर पूरी तरह से थाना प्रभारियों पर कसाव बनाकर रख रही हैं और इसी के कारण ग्रामीण क्षेत्र में गश्त भी शुरू हो गई है। दूसरी ओर इंदौर नगर निगम की आयुक्त हर्षिका सिंह सादगी भरे चेहरे के साथ सख्त निर्णय ले रही हैं। पिछले दिनों पार्षद पतियों को भी वे बाहर का रास्ता तो दिखा चुकी हैं। दूसरी ओर नगर निगम में अतिक्रमण के नाम पर नोटिस देने के खेल पर भी लगाम लगा चुकी हैं। अब उनके बिना अनुमति के नोटिस जारी नहीं किए जा सकते हैं। ऐसे में नगर निगम का राजस्व तो बढ़ ही रहा है, काम करने वाले कर्मचारी भी खुश हैं।

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