गुस्ताखी माफ़: कर्नाटक : दुखी कार्यकर्ता का क र नाटक…पुरानी खुन्नस का हिसाब चुकता…सवारी अब आने का समय शुरु…

कर्नाटक : दुखी कार्यकर्ता का क र नाटक…

कर्नाटक चुनाव में भाजपा की करारी हार से भले ही भाजपा के कार्यकर्ताचेहरे से मायूस दिखाई दे रही हो परंतु अंर्तमन से वे खुश है। भले ही हनुमान जी ने संजीवनी कांग्रेस को दे दी हो पर इस मामले में अधिकांश कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह निर्णय भाजपा के लिए बेहतर है। यदि कर्नाटक में संगठन में बैठे नेता जीत जाते तो मध्यप्रदेश में तांडव नृत्य शुरु कर देते। कार्यकर्ता की वैसे ही नहीं सुन रहे हैं और कई ऐसे कार्यकर्ता जिन्होंने पूरा जीवन भाजपा में लगा दिया अब वे दरकिनार हो गये हैं। सबसे ज्यादा 50 साल की उम्र पार कर चुके नेताओं को लेकर जिस प्रकार से संगठन नेताओं का व्यवहार हो रहा था, वह बेहद शर्मनाक था। यहां तक कहा जाने लगा था अब पार्टी को 50 पार के कार्यकर्ताओं और नेताओं की जरूरत नहीं रहेगी। दूसरी ओर संगठन महामंत्री जो इस समय भाजपा में ज्ञान देने का काम कर रहे हैं वे संगठन पर ही बोझ बन गये हैं। सिवाय ज्ञान देने के कोई काम नहीं। किसी कार्यकर्ता के घर जाना भी नहीं चाहते और उनके सुख-दुख की भी कोई जानकारी नहीं है। ऐसे में कर्नाटक चुनाव के पहले तक जो मन की बात थोपी जाती थी अब कम से कम कार्यकर्ता के दिल की बात सुनने की स्थिति बन जायेगी। कार्यकर्ताओं का कहना है कि कर्नाटक की हार संगठन में बैठे नेताओं के अहंकार की हार है। मध्यप्रदेश में भी कार्यकर्ता कांग्रेस को जीताना नहीं चाहता वह भाजपा नेताओं को सबक सिखाने के लिए भाजपा को हराना चाहता है और यदि इस चुनाव से भी सबक नहीं लिया तो फिर चंद महीने में पूरी बाजी पलट जाएगी। सबसे पहले संगठन में बैठे तमाम नेताओं को हटाकर जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं को मैदान में लाना चाहिए। दूसरी ओर कर्नाटक की हार को सकारात्मक तरीके सेलेना चाहिए लंबे समय से मु_ीभर नेता पूरी भाजपा को अपने हिसाब से चला रहे हैं और अपने हिसाब से ही नियुक्तियां कर रहे हैं। अब कम से कम अगले चुनाव में कार्यकर्ता की बात तो सुनी जायेगी।

पुरानी खुन्नस का हिसाब चुकता…

कांग्रेस में पिछले दिनों प्रतिपक्ष नेता चिंटू चौकसे और शेख अलीम के बीच एक बैठक के बाद हुआ वाक युद्ध भले ही समाप्त हो गया हो पर कहानी इस युद्ध के पीछे की कुछ और है। यह लड़ाई लंबे समय से अंदर ही अंदर चल रही थी। शेख अलीम नगर अध्यक्ष के मामले में भी दांव पेंच खेल ही रहे थे इसके पहले वे दीपू यादव की पत्नी को प्रतिपक्ष नेता बनाने के लिए भी मोर्चा बंदी कर चुके थे वहां पर भी वे मार खा गये थे। इधर नगर निगम में वह यह महसूस कर रहे थे कि फोजिया शेख अलीम को सही प्लेटफार्म चिंटू चौकसे नहीं दे रहे हैं और इसी कारण उन्होंने चिंटू चौकसे के साथ मौखिक दो-दो हाथ कर लिये आरोप लगाया कि वे महापौर के हाथों में खेल रहे हैं।

सवारी अब आने का समय शुरु…

न सूत के पते हैं, न कपास के, पर जुलाहों में लट्ठमलट्ठे की तैयारी शुरू हो गई है। चुनाव में अभी समय बाकी है, पर भाजपा में कई दिग्गजों ने यह मानकर कि इस बार उनकी दावेदारी तय है और इसे लेकर घुंघरू के साथ मंजीरे भी बांध लिए हैं। क्षेत्र क्रमांक पांच में भाजपा के विधायक बाबा यानी महेंद्र हार्डिया को अब उम्मीदवारी नहीं मिलेगी और यह उम्मीदवारी नगर अध्यक्ष गौरव बाबू के खाते में आ रही है और इसे लेकर उन्होंने अपनी तैयारी भी शुरू कर दी है। करना भी चाहिए, क्योंकि जब बड़े-बड़े धाकड़-धुरंधरों के बीच हुई रायशुमारी की भोंगली बनवाने के बाद वे नगर अध्यक्ष के पद पर विराजित हो सकते हैं तो फिर उम्मीदवारी में कौन-सा अलग से शुद्ध घी डालना है। वही पुरानी चौसर के आधार पर यह हो जाएगा। अब सवाल यह भी उठ रहा है कि भाजपा के दो और दिग्गज भी पांच नंबर में ही अपनी तैयारी बड़े ही चुपचाप तरीके से कर रहे हैं। हवा तो यह है कि दो-तीन के फेरबदल में दादा दयालु यहां पर अंगद का पांव रख रहे हैं। बाकी समय आने पर देखेंगे।
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