गुस्ताखी माफ़-छाए रहे… झंडाबरदार…हो गए भिया के दर्शन…भाजपा के कहार…
छाए रहे... झंडाबरदार...
मूंछे हो तो.... और झांकी हो तो ज्योति बाबू जैसी... मानना पड़ेगा उनके जलवे में कोई कमी नहीं है। उनकी खींची हुई लाइन के पार अभी भी जाने की संभावनाएं कम ही है। कुछ ऐसा ही मामला गणतंत्र दिवस पर जिलों में झंडा फहराने…
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