गुस्ताखी माफ़-जमीनी नहीं जमीन से जुड़े नेता की कदर होगी…सोचना पड़ेगा…मलाईदार में मलाई मारकर…

जमीनी नहीं जमीन से जुड़े नेता की कदर होगी…

इन दिनों कांग्रेस में इतना ज्यादा घालमेल हो रहा है कि यह समझ नहीं आ रहा कि राजनीति का व्यापार हो रहा है या व्यापार की राजनीति हो रही है। ऐसा लग रहा है कांग्रेस को चलाने का काम भी धीरे-धीरे व्यापारियों को ही सौंप दिया जाए तो ज्यादा बेहतर रहेगा। इससे राजनीति में व्यापार नहीं होगा, बल्कि कार्यकर्ता भी व्यापारी के साथ काम करने लगेगा और भविष्य में राजनीति में दुर्दशा देखकर वह भी व्यापारी हो जाएगा हालांकि इंदौर में कांग्रेस व्यापारियों को आगे लाने के बाद अपना हश्र देख चुकी है। फिर भी अभी तो आग लगी है, बुझाई जा सकती है, ऐसा न हो कि इस आग में आने वाले समय में कांग्रेस की संस्कृति और जमीनी कार्यकर्ता झुलस जाएं। मामला ऐसा है कि कांग्रेस में नगर अध्यक्ष से अब कार्यकर्ता भरपाए हैं। वे भी एक व्यापारी थे। एक व्यापारी हटाने के बाद अब कांग्रेस की राजनीति में दो व्यापारी मिलकर तीसरे व्यापारी को यह पद देना चाहते हैं। हो ये रहा है कि कार्यकर्ताओं में भी चर्चा है कि इन दिनों कांग्रेस को जमीनी नेता नहीं, जमीन से जुड़े नेता ही चला सकते हैं, क्योंकि हारने के सबक के बाद भी उनका केवल पैसा ही जाता है।

कार्यकर्ता तो पहले से ही उन्हें कारोबारी ही मानता था। अब शहर के नए नगर अध्यक्ष के लिए शहर के दोनों बड़े विधायक यानी विशाल पटेल और जीतू पटवारी इन दिनों भोपाल में जमीन से जुड़े कारोबारी को नगर अध्यक्ष के पद पर विराजित करने की तैयारी कर चुके हैं। उनकी विशेषता यह है कि वे कांग्रेस के किसी आंदोलन में नहीं दिखे। हालांकि उनके भाजपाइयों से भी बहुत अच्छे रिश्ते है। कमलनाथ यानि धृतराष्ट्र को भी अब देखने और समझने की कोई जरूरत नहीं है। दोनों ही नेता जमीनी नहीं, जमीन से जुड़े हैं और दिनभर जमीन ही दिखाते रहते हैं। मजेदार बात यह है कि वे जमीनों के मामले में इतने ताकतवर हैं कि दो दिन पहले ही भाजपा के दो दिग्गजों को भी जमीन दिखा चुके हैं। मामला बस पकने ही वाला है। हालांकि ये अलग बात है कि वे यहां तक पहुंचने के लिए कई लोगों को जमीन चटवा भी चुके हैं। अब देखना है कि कांग्रेस के नगर अध्यक्ष पद पर किसी जमीनी नेता की जरूरत भोपाली आकाओं को होगी या जमीन से जुड़े हुए नेताओं की। यह तो वक्त ही बताएगा।

 

सोचना पड़ेगा…

इन दिनों भाजपा में एक नई बयार चल रही है। यह हम नहीं, भाजपा के ही कार्यकर्ता कह रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस के बड़े नेताओं के दरवाजे भाजपा में आने का निमंत्रण लेकर कई नेता बैठे रहेंगे। दो दिन पूर्व मध्यप्रदेश की मंत्री यशोधरा राजे, कैलाश विजयवर्गीय के धुर विरोधी सज्जन वर्मा को भाजपा में आने का निमंत्रण दे चुकी हैं। दूसरी ओर इंदौर के एक और पूर्व विधायक को भी ज्योति बाबू पहले से ही पीले चावल देने की कोशिश कर रहे हैं। यह दोनों भी आर.के. स्टूडियो के खिलाफ मोर्चा लेते रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि इस रेवड़ी बांटने में ऐसे कांग्रेसियों को ही क्यों निमंत्रण दिए जा रहे हैं, जो पहले से ही दही की कोठी लेकर भिया के खिलाफ लगे रहते हैं। दो नंबर में मोहन सेंगर पहले से ही मूंग लेकर घूम रहे हैं। दलने का मौका छोड़ना नहीं चाहते हैं। आखिर भाजपा में ऐसे लोगों को कौन निमंत्रण दे रहा है, जो केवल आर.के. बैनर को ही गलाने में लगे रहे हैं। अब यह समय बताएगा कि भाजपा की राजनीति पूर्व कांग्रेसी करेंगे या नए कांग्रेसी आकर करेंगे।

 

मलाईदार में मलाई मारकर…

एमआईसी के गठन के बाद अब इसमें शामिल पार्षदों की नजर मलाईदार विभागों पर बनी हुई है। दूसरी ओर भोपाल के आकाओं ने भी यह कह दिया है कि महापौरजी, इतना काम तो खुद ही कर लेना, यह बात भी यहां लेकर न आएं। अब ऐसे में नए-नए महापौर किसके प्रभाव में कितना आते हैं, इस पर सबकी नजर है। रमेश मेंदोला यानी दादा पुराने अनुभवी हैं। वे जानते हैं कि नगर निगम का कौन-सा विभाग कितनी सेवाएं दे सकता है तो उनकी नजर भी जनकार्य विभाग पर है। दूसरी ओर क्षेत्र क्रमांक चार भी जनकार्य विभाग में ही अपनी रुचि रखता है। इसके बाद विजेता के बाद उपविजेता को फिर राजस्व या स्वास्थ्य विभाग मिलेगा। यही तीन विभाग ऐसे हैं, जो कई पाप धो सकते हैं।

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