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गुस्ताखी माफ़: बीच सभा मलाई मारकर ले गए दादा….फरमान जारी होते ही….कल्चर के नाम पर नाइट…

बीच सभा मलाई मारकर ले गए दादाहुकुमचंद मिल के मजदूरों का मामला अब जमीनी आधार पर भले ही अभी कमजोर हो, पर अभी सपने में दाल-बाफले पूरी कटोरी घी डालकर खाने में कोई दिक्कत नहीं है। इधर, नगर निगम महापौर द्वारा किए गए ऐलान के बाद मिल मजदूरों…
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कूदत-फिरत……..बाजे केवल पेजनिया…….

कूदत-फिरत........बाजे केवल पेजनिया....... आ धी रात चकवा अपनी खिड़की से खाली जंगल को जब निहार रहा था तो उस वक्त चकवी ने आकर पूछा... क्या देख रहे हो। इस पर चकवे ने कहा कि राजनीति की रात बड़ी लंबी होती है और काटे नहीं कटती है। इस पर पुन: चकवी…
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गुस्ताखी माफ़…- भिया ऐसे ही कार्यकर्ताओं के नाड़ी वैद्य नहीं कहलाते…भगत और भक्ति का…

गुस्ताखी माफ़... भिया ऐसे ही कार्यकर्ताओं के नाड़ी वैद्य नहीं कहलाते... राजनीति में फूंक-फूंक कर कदम रखना एक कुशल नेता के लिए जरुरी होता है और वह कदम नहीं भी रखे तो फूंकते रहना हर समय जरुरी होता है और यदि समय रहते हुए फूंकने से चूक जाओ…
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गुस्ताखी माफ़- बनते-बिगड़ते रिश्तों के बीच भगत की भक्ति में ही सार बचा है..

बनते-बिगड़ते रिश्तों के बीच भगत की भक्ति में ही सार बचा है..राजनीति में कोई किसी नेता का लंबे समय दुश्मन नहीं रहता और लंबे समय दोस्त भी नहीं रहता। भाजपा में यह परंपराएं अब पहले से ज्यादा बदलने लगी हैं। रायता फैलने की प्रवृत्ति इतनी…
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गुस्ताखी माफ़: दूध से जले नहीं पर छाछ भी फूंक-फूंक कर पी रहे हैं…बड़े फेरबदल के साथ उतरेंगे नए…

दूध से जले नहीं पर छाछ भी फूंक-फूंक कर पी रहे हैं...अंतत: महापौर परिषद में विभागों की रेवड़ी बंट ही गई। लम्बी खींचतान और ज्ञान धरा रह गया, परंतु अभी भी महापौर हर कदम फूंक-फूंक कर रख रहे हैं। इसका कारण यह है कि पुराने महापौर जितने भी रहे…
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गुस्ताखी माफ़:जो चिराग थे वे चिरान हो गए….झकाझक के साथ गलियारे में झाग ही झाग…

जो चिराग थे वे चिरान हो गए....किसी जमाने में जिनके चिराग पूरे प्रदेश में जलते थे अब उनकी हालत भाजपा की नई राजनीति में कुछ इस प्रकार से हो गई है कि उन्हें मालवा निमाड़ के नए संगठन प्रभारी अजय जामवाल के सामने कुछ इस प्रकार अपना दर्द बताना…
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गुस्ताखी माफ़: बस यूं ही…पंडित की राऊ से चुनावी तैयारी…विनय बाबू के चेहरे से हवाइयां…

बस यूं ही...एक सफल राजनेता को हर कदम पर सफलता पाने के लिए पहले चरण में असीम, नायाब, अनंत और शाश्वत साथ लगता है। धीरे-धीरे उसके पैर राजनीति की जमीन पर जमने लग जाते हैं। ऐसा राजनेता चाहता है वह शहर और समाज में राजनीति करते हुए भी साख…
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गुस्ताखी माफ़-जमीनी नहीं जमीन से जुड़े नेता की कदर होगी…सोचना पड़ेगा…मलाईदार में मलाई…

जमीनी नहीं जमीन से जुड़े नेता की कदर होगी... इन दिनों कांग्रेस में इतना ज्यादा घालमेल हो रहा है कि यह समझ नहीं आ रहा कि राजनीति का व्यापार हो रहा है या व्यापार की राजनीति हो रही है। ऐसा लग रहा है कांग्रेस को चलाने का काम भी धीरे-धीरे…
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गुस्ताखी माफ़-अधिकारी बोले राम नाम जरा खंभा बचाकर…एमआईसी में अब भारी खींचतान में बड़े नेता…

अधिकारी बोले राम नाम जरा खंभा बचाकर... शहर में अवैधानिक काम होना तो जरा कठिन है पर वैधानिक काम होना उससे भी ज्यादा कठिन, क्योंकि हर काम में दाल-भात के मूसर चंद किस प्रकार रायता फैलाते हैं, यह इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण है। मजेदार बात यह है…
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गुस्ताखी माफ़- हुकुमचंद में सरकार की झांकी…उषा दीदी 1 और 3 में भरतपुरी…नगर निगम के भाग्य…

हुकुमचंद में सरकार की झांकी...गणेश उत्सव पर इस बार फिर सरकार और शहर के नागरिकों के सहयोग से परंपरा को बचाने का बीड़ा उठाने वाले मजदूर फिर मैदान में आ गए हैं। पिछले दो साल से झांकियां कोरोना काल के कारण नहीं निकल पाई थीं। इस बार कड़े…
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