गुस्ताखी माफ़-राम अब प्रासंगिक रावण अभी भी रग-रग में मौजूद…
राम अब प्रासंगिक रावण अभी भी रग-रग में मौजूद…
देश में जितना रावण प्रभावित करता है, उतने राम नहीं कर पाते। राम का अपना चरित्र है और रावण का अपना चरित्र है। सैकड़ों बरसों से हर बार देश में रावण का दहन और कुंभकरण और मेघनाथ के पुतलों का पटाखीकरण होता रहा है। रावण सामंती परंपरा का निर्वाह करता है, जहां शरीर को अधिकाधिक उत्तमो वस्त्र और आभूषण से ढंका पाया जाता था और आज भी पाया जाता है। सैकड़ों सालों से हम रावण के दहन के साथ केवल रावण का ही दहन कर रहे हैं। बुराइयां आज भी यथावत बनी हुई हैं। तमाम कोशिश के बाद भी हम राममय नहीं हो पा रहे हैं। राम के आदर्श को स्थापित करने के लिए हमें पहले रावणमय होना पड़ता है और यही प्रक्रिया है। जब तक राम अपना धनुष-बाण राजनेताओं को सौंपते रहेंगे, रावण कभी मरेगा नहीं। राम का कद भले ही न बढ़े, पर रावण का कद हर बार बढ़ाकर ही बताना होता है। ऐसा लगता है राम के चरणों की धूल उतनी सार्थक और समय-साक्षेप नहीं है, जितनी रावण की राख। गुजरात के प्रसिद्ध व्यंग्यकार विनोद भट्ट ने अपनी एक लघुकथा में दशहरे पर रावण के पुतले के जलाए जाने को लेकर एक व्यंग्य लिखा था, जिसमें उन्होंने लिखा था- एक बार रावण के पुतले में भी अंतिम समय में जलने से पहले रावण की आत्मा आ गई। उसने पूरे प्रांगण में आह्वान किया कि तुम लोग मुझे तो इसलिए जला रहे हो कि मैंने पराई स्त्री को गलत नजर से देखा। मुझे जलने में कोई ऐतराज नहीं है, पर मेरे पुतले को वो आग लगाए, जिसने किसी भी महिला को बुरी नजर से न देखा हो, अन्यथा जलाने वाला भस्म हो जाएगा। फिर क्या था, चंद सेकंड में ही पांडाल खाली हो गया। यहां तक कि राम की भूमिका का निर्वहन कर रहे राम भी नदारद हो गए। अंत में रामलीला के जादूगरों ने रास्ता निकाल ही लिया और एक अंधे को अंतत: रावण जलाने के लिए आगे कर दिया, ताकि शेष रावणों के संस्कारों की लाज बची रहे। रावण कितना शक्तिशाली था, जो भगवान राम के द्वारा मारे जाने के बाद भी सदियों से जीवित है तो वहीं राम के संस्कार कहीं दिखाई नहीं देते हैं। न पाप खत्म हुए और न पापी। देश सोने की चिड़िया हुआ करता था रावण की लंका भी सोने से ही बनी हुई थी। राम-राज्य की परिकल्पना तो हम कर ही रहे हैं, पर राजनेताओं के प्रयासों के बाद भी स्थापित नहीं कर पा रहे। ऐसे में परंपराओं के लिए राम-राज्य की बात करना केवल मान्यताओं को ढोने के अलावा कुछ नहीं हो सकता। आइए, राम को प्रासंगिक बनाएं और कुछ संस्कार राम के यदि ला सकें तो देश रामराज्य की ओर दो कदम तो बढ़ ही जाएगा और हां रावण को जलाने के पहले अपने अंदर के सिरों को भी जरूर गिन ले कोई कम हुआ है या नहीं। यदि नहीं तो अगले साल फिर एक मौका मिलेगा अपने सिर गिनने का। इधर जो रावण को जलता हुआ देखने का आनंद लेने पहुंचते है उन्हें भी अपने अंदर के रावण को देखना चाहिए जो अभी भी अपने काम में ईमानदारी से लगा हुआ है।
दशहरा मुबारक…