गुस्ताखी माफ़-प्राधिकरण का रास्ता मिला …रामबाण जादूगरी…
लग गये काम से....मित्र होना जरूरी है भाई...अपर आयुक्तों की बहार
प्राधिकरण का रास्ता मिला …
अंतत इंदौर विकास प्राधिकरण तक में इंदौर में ही पदस्थ रहे अधिकारी को अवसर मिल ही गया। अगले पखवाड़े तक उनके आदेश पर पदस्थापना हो जाएंगी। वैसे भी उनके बारे में हमेशा यह कहा जाता रहा है कि फोन तो वह किसी का नहीं उठाते हैं। अब प्राधिकरण में आने के बाद कोई सुधार आ जाए तो बात अलग है। वे अपनी कार्यप्रणाली के कारण भी जाने जाते हैं।
रामबाण जादूगरी…
क्या गजब हो रहा है किस्सा कुछ ऐसा है कि खाद्य निगम में एक ठेकेदार के ४५ लाख रुपये उलझे हुए थे उन्होंने इसे निकलाने के लिए भाजपा के उन जादूगरों से संपर्क किया जिनके रिश्ते ऊपर तक बताये जाते थे। राशि निकलाने को लेकर १३ लाख रुपये में समझौता भी हो गया। इधर इसके आधार पर पांच लाख रुपये का टोकन भी पहुंच गया। अब काम न होता देख ठेकेदार ने पांच लाख वापस मांगने के लिए हाथ पांव मारना शुरु किए अब वह पैसो के लिए जब नई दुकान पर पहुंचा तो पांच लाख निकलाने के लिए भी दो लाख रुपये मांगे गये। ठेकेदार की समझ में नहीं आ रहा है कि इनमे से कौन से पैसे पहले निकल सकते हैं।
लग गये काम से….
पिछले दिनों महापौर जी उच्चतम न्यायालय में अरुण भीमावत की ओर से चुनावी पैरवी कर उन्हें सुरक्षित ले आये परंतु इसके बाद उन पर भी राहू केतु की नजरें लग गई नजर लगाने वाले अब इस मामले में शिकायत करने जा रहे हैं। उनका कहना है कि जब भी कोई अभिभाषक वकालत छोड़कर अन्य कार्य या राजनीति करते हुए किसी पद पर पहुंच जाता है तो उसे अपनी सनद सरेंडर करनी होती है। क्योंकि एक साथ द$ो कार्य नहीं हो सकते हैं। इधर महापौर बकायदा मानधन भी ले रहे हैं। ऐसी स्थिति में वकालत का कार्य नहीं कर सकते हैं उन्हें केबिनेट का दर्जा भी प्राप्त है। अब जो भी हो यह तो वक्त बतायेगा कि क्या सही था और क्या गलत? क्योंकि वे खुद भी कानून के अच्छे खासे ज्ञाता है।
मित्र होना जरूरी है भाई…
शहर और ग्रामीण क्षेत्र की अवैध कॉलोनियों को लेकर इस समय जिला प्रशासन नगर निगम से आगे निकल गया है। ग्रामीण क्षेत्र की अवैध कॉलोनियों को बनाने वालों के खिलाफ एफआईआर तक होना शुरु हो गई है। परंतु शहरी क्षेत्र में अभी तक अवैध कॉलोनियों के चिन्हांकित हो जाने के बाद भी यह मामला ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है। बताने वाले बता रहे हैं कि यहां लड़ाई अहम की भी आ गई है। इनमे से कई बड़े कॉलोनाइजर पूर्व से ही मित्र रहे हैं। ऐसे में मित्र का दायित्व भी होता है कि उन्हें सुरक्षित रखा जाए। नगर निगम में वैसे भी मित्रता निभाने के कई काउंटर खुले हुए हैं।
अपर आयुक्तों की बहार
नगर निगम में इन दिनों अपर आयुक्त की बाढ़ आई हुई है। कुल जमा ९ अपर आयुक्त नगर निगम पहुंच चुके हैं। इधर उपायुक्त की संख्या पहले से ही चार बनी हुई है। इतने अपर आयुक्त और उपायुक्त होने के बाद भी वार्डों की स्थिति सुधर नहीं रही है। दूसरी ओर नगर निगम ने इस समय इंजीनियरों की भारी कमी बनी हुई है। ले देकर एक डीआर लोधी ही वरिष्ठ इंजीनियरों में बचे हुए हैं। जबकि नगर निगम में हर कदम पर इंजीनियरों की जरुरत रहती है।