गुस्ताखी माफ़-भाजपा में अब ‘विश्वासÓ को लेकर नया संकट….संगठन मंत्री सफेद हाथी पर आए और सफेद हाथी हो गए…

भाजपा में अब ‘विश्वासÓ को लेकर नया संकट….
इस समय भाजपा में हो रहे कई निर्णय वरिष्ठ नेताओं को ही हजम नहीं हो रहे हैं। पार्टी के सिद्धांत और समर्पण पूरी तरह दरकिनार होते जा रहे हैं। इन दिनों पार्टी में पूरी तरह मोदीजी के सिद्धांत ही काम कर रहे हैं, जिसमें केवल यह देखा जा रहा है कि भाजपा के प्रति समर्पण से ज्यादा जरूरी उनके प्रति समर्पण महत्वपूर्ण है। इसका ही उदाहरण है कि पहली बार चुनाव जीते व्यक्ति को गुजरात में मुख्यमंत्री की कमान सौंपी गई और छह बार का जीता विधायक मुख्यमंत्री के सामने मंत्री बनने के लिए याचक हो गया है। कुल मिलाकर पूरी पार्टी में सिद्धांतों की ऐसी बलि इसके पहले कभी नहीं चढ़ी। 71 साल की उम्र के बाद भी मोदीजी शिखर पर काबिज हैं तो दूसरी ओर साठ साल के नेता इन दिनों घर बैठाए जा रहे हैं। भाजपा में ही कई निर्णयों ने अब अंदरखाने में एक और भाजपा के निर्माण को हवा देना शुरू कर दिया है, जो किसी समय का इंतजार कर रही है। राजनीति में सबसे ज्यादा सम्मान उम्रदराज उन नेताओं को रहता था, जिन्होंने पार्टी के प्रति अपनी वफादारी में कोई कमी नहीं रखी और इसी आधार पर ही पदों पर बैठाने का चयन भी होता है। नई व्यवस्था में अब भाजपा के मापदंड और सिद्धांत पूरी तरह गंगा के शुद्धिकरण में बह गए हैं। अब तो केवल व्यक्ति निष्ठा का मायना सामने आ गया है इसका उदाहरण हरियाणा में उम्रदराज मुख्यमंत्री खट्टर और दिल्ली में बनाए गए भाजपा के नए अध्यक्ष है और इसी वजह से पदों के दावेदार दरकिनार हो रहे हैं तो दूसरी ओर दिल्ली में पहचान बनाने वाले सबसे ज्यादा तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को यह व्यवस्था नागवार गुजर रही है। एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि जिस हिसाब से मुख्यमंत्रियों का चयन दिल्ली से थोपा जा रहा है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं कि शिवराजसिंह चौहान भी किसी दिन एक बार के जीते विधायक के हाथ के नीचे मंत्री बनते दिखें।
संगठन मंत्री सफेद हाथी पर आए और सफेद हाथी हो गए…
भाजपा में इन दिनों संगठन मंत्री की व्यवस्था समाप्त हो चुकी है। भाजपा में ही संघ की ओर से यह व्यवस्था पार्टी के कार्यक्रम और क्रियान्वयन के साथ कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच समन्वय बनाने और मनमुटाव दूर करने के लिए की गई थी, किसी युग में संगठन मंत्री कुशाभाऊ ठाकरे और प्यारेलाल खंडेलवाल आदर्श होते थे जिनके लिए सुविधाओं और भोग का कोई मायना नहीं था। परंतु सत्ता का सुख और लगातार संगठन मंत्रियों के गिर रहे आचरण ने इस पद की शोभा को इस कदर समाप्त कर दिया था कि संगठन मंत्री स्वयं को किसी आईएएस अधिकारी से कम नहीं समझ रहे थे। इधर मुरलीधर राव, जो प्रदेश के प्रभारी भी हैं का यह कहना कि चार-पांच बार जीते विधायक, सांसद को पार्टी से शिकायत हो तो मैं उन्हें नालायक समझता हूं। इस मामले में जनप्रतिनिधियों का अपना दर्द है, क्योंकि वे मैदानी संघर्ष के बाद और जमीन पर लगातार काम करने के बाद स्वयं को स्थापित कर पाते हैं। दूसरी ओर तमाम संगठन मंत्री और संगठन महामंत्री भाजपा में सफेद हाथी पर बैठकर स्थापित हो जाते हैं और बाद में वे ही पार्टी के लिए सफेद हाथी का काम करने लगते हैं। संगठन मंत्रियों ने सुख-सुविधाओं का इतना बड़ा जाल खड़ा कर लिया कि अब संगठन मंत्रियों के लिए भी जोड़-जुगाड़ लगने लगी थी। हालत यह थी कि जो संगठन मंत्री बने थे, उनसे मिलना भी आसान नहीं था। इंदौर में तो जयपालसिंह चावड़ा से मिलना हो तो तीन दरवाजे पार करना होते थे। अमूमन यही स्थिति अन्य की भी रही। संगठन मंत्री, भाई साहब से शुरू होते-होते साहब तक पहुंच गए। इसके बाद की बात ही अलग थी। जब जननेताओं को मैदान में काम करने के बाद भी जगह नहीं मिल रही हो तो संगठन मंत्रियों को पद देने का क्या औचित्य है। वे संघ व्यवस्था से ही आए थे और नई व्यवस्था में चले गए, ऐसे में भाजपा के मैदानी कार्यकर्ता को पद न मिलें और साहब को पद मिलें, यह भी उचित नहीं दिखाई दे रहा है। वैसे भी संगठन मंत्री के पदों पर रहते हुए सुख-समृद्धि और सम्पदा का भरपूर दोहन वे कर ही चुके हैं। अब सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि संगठन मंत्रियों की विदाई के बाद संगठन महामंत्री के दिन कितने और भाजपा में बचे हैं। इधर अब नई व्यवस्था में तीन क्षेत्रिय संगठन मंत्री बनाए जाने हैं, इसमें मालवा, महाकौशल और ग्वालियर अंचल होंगे। अब इन पदों के लिए भी कई दिग्गज मैदान में तैयारी शुरू कर चुके हैं। वक्त बताएगा, कौन, कितना सफल हुआ।

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