गुस्ताखी माफ-दीदी का पाठ और कार्यकर्ता सपाट…

दीदी का पाठ और कार्यकर्ता सपाट…
मूंछें हों तो नत्थूलाल जैसी और भाग्य हो तो उषा दीदी जैसा। ज्योतिष बताते हैं कि उनका भाग्य कितना प्रबल है, यह उनके कार्य को देखकर भी समझा जा सकता है। जब तक उनके क्षेत्र के कार्यकर्ता उन्हें समझते हैं, जब तक वे दूसरे क्षेत्र में अपना साम्राज्य बना लेती हैं। हवा के विपरीत वे हर बार अपने बयान भी देती रही हैं। जब प्रधानमंत्री जाति के आधार पर आरक्षण को आगे बढ़ा रहे थे, तब एकमात्र वे ऐसी नेता रहीं, जो आर्थिक आरक्षण की मांग करती रहीं। प्रधानमंत्री के विचारों के विपरीत अपने विचार रखना भी हिम्मत का काम है। इन दिनों वे महू में अपना राजनीतिक परचम लहरा रही हैं, परंतु क्षेत्र क्रमांक एक और तीन के बाद महू के लोग भी अब यह मानने लगे हैं कि यहां पर उनका यह आखिरी चुनाव है। अब यह तो पार्टी ही तय करेगी कि कार्यकर्ता गलत हो रहे है या फिर नेता और इसी कारण कार्यकर्ताओं की फौज भी धीरे-धीरे उनसे दूर होती जा रही है। हालांकि भाजपा के कई जमीनी कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि दीदी के बजाय यदि दादा दयालू मंत्री बने होते तो इस शहर और कार्यकर्ताओं का भरपूर भला होता। जितनी तेजी से वे आगे पाठ कर रही हैं, उतनी ही तेजी से उनके पीछे कार्यकर्ताओं का मैदान खाली होता जा रहा है। हालांकि रिश्ते निभाने को लेकर उनके समर्थक कहते है कि वे सबसे आगे है। उनके समर्थकों का वे पूरी तरह ध्यान भी रखती हैं और इसका उदाहरण है कि शराबकांड में अभी तक उनके मकान नहीं टूटे जिन्होंने अपने घर बनाने में कई घर उजाड़ दिए है। भाजपा के ही कई समर्थकों के मकान गुंडा अभियान से लेकर माफिया अभियान में ध्वस्त हो चुके है।
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