गुस्ताखी माफ-आर.के… कोई बात तो है कि हस्ती…

आर.के… कोई बात तो है कि हस्ती…
भाजपा में इन दिनों ऐसी राजनीति विलुप्त होती जा रही है। नेताओं की प्रजाति भी अब ऐसी वाली नहीं मिलती है। अभी जो नेताओं की प्रजाति दिख रही है वह कार्यकर्ताओं के दोहन में विश्वास तो रख ही रही है साथ ही स्वभाव के विपरीत सुझाव दे दे तो घर बैठाने की परंपरा भी पूरी ताकत से निभा देती है। ऐसे माहौल में आज भी आर.के. स्टूडियों के नीति और निर्धारण मापदंड तय है। पिछले दिनों सामने आए एक वाकये ने बता दिया कि एक कार्यकर्ता को तैयार करने में कितनी मेहनत नेता को लगती है। मामला कुछ ऐसा था कि पिछले दिनों भिया विमानतल रोड पर एक मोटरसाइकिल एजेंसी के उद्घाटन समारोह में फीता काटने पहुंचे थे। भव्य भीड़ और सेल्फी से फुर्सत होने के बाद भिया ने मोटरसाइकिल को लेकर जानकारी ली कितने में कंपनी देती है और कितने में बेची जाती है। इसके बाद उन्होंने तुरंत एक मोटरसाइकिल हाथोंहाथ ले ली। भुगतान भी हो गया था। इस दौरान उन्होंने अपने एक पुराने कार्यकर्ता को बुलाकर वहीं पर मोटरसाइकिल की चाबी दी। उन्हें मालूम था इसके पास अभी गाड़ी नहीं है। बड़े ही भावुक माहौल में लोग मानने लगे कि भिया और दादा यही केवल ऐसे नेता है जो कार्यकर्ता के घर तक पीछा करते है। जबकि अभी कई दिग्गज भाजपाई नेता अपने कई समर्थकों को वैचारिक मतभेद के बाद घर छोड़ आए है। एक ओर किस्सा कुछ इसी प्रकार का था कि दादा दयालु से जुड़े एक कार्यकर्ता का चेन्नई में ओपन हार्ट सर्जरी होना थी। इस दौरान दादा दयालु दो दिन लगातार अपने साथी के लिए जागते रहे। जो भी हो शहर में आंख बंद करके यह देखना होगा कि ऐसे कितने नेता है जिन्होंने अपने कार्यकर्ता के समर्पण को ऋण के रूप में माना और वक्त आने पर चुकाने का प्रयास किया। अभी तो कार्यकर्ता को ही चुकाने का हिसाब दिखाई दे रहा है।
-9826667063

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