गुस्ताखी माफ़-भगतसिंह चाहिए चार घर छोड़कर…अब भाजपा में नए युवाओं की बयार शुरू होगी…

भगतसिंह चाहिए चार घर छोड़कर…
ये कांग्रेस का कुछ करो… क्या चाहते है यह समझना भी बड़ा मुश्किल है। हर बड़ा कांग्रेसी नेता चाहता है कि कांग्रेस में भगतसिंह पैदा हो जाए जो पूरी ताकत लगा दे। पर हमारे घर को छोड़कर 5 घर आगे पैदा हो। तो आइये समझे कैसे… पिछले दिनों कांग्रेस की भोपाल में हुई बैठक में दिग्गी राजा और नाथों के नाथ कमलनाथ ने आव्हान किया कांग्रेस इस बार युवाओं को आगे लाएगी। लाना भी चाहिए क्योंकि 75 और 80 साल के बुजुर्गों के भरोसे संगठन नहीं चल सकता है। अब मामला यह है कि हर अच्छे काम की शुरुआत संस्कृति के अनुसार भी अपने घर से होनी चाहिए, यानि पहले तो इन्हीं दो नेताओं को अपने पद से मुक्त होकर युवाओं को कमान देनी चाहिए पर क्या करे सत्ता का मोह और आनंद उठाते हुए जीवन हो गया तो फिर और दो-पांच साल के बचे जीवन में जीवन आनंद लेने से क्यों रुके और यही कारण है कि फैसलों पर फैसला नहीं हो पा रहा है। संगठन में नियुक्तियां लटकी पड़ी हुई हैं। कई क्षेत्रों में तो पिछले चुनाव के बाद बड़े नेताओं के दौरे भी नहीं हुए है। हालत यह है कि स्वयं पूर्व मुख्यमंत्री और उनके शिष्य रोज सुबह सोशल मीडिया पर एक बयान जारी कर मान लेते है कि प्रदेश की 5 करोड़ आबादी ने इसे पढ़ लिया है। अब इन्हें कौन समझाए कि कांग्रेस जमीन पर ही नहीं बची है। पहले जमीन पर उतरकर अपनी जमीन तो मजबूत कर लो.. बयानबाजी के लिए तो जीवन पड़ा है। कांग्रेस के ही युवा नेता अब बोलने लगे है कि जब तक बड़े नेता जागेंगे और जमीन पर कामकाज शुरू करेंगे तब तक तो कांग्रेस की जमीन ही समाप्त हो चुकी रहेगी।

अब भाजपा में नए युवाओं की बयार शुरू होगी…
इस बार निकाय चुनाव के साथ ही भाजपा के नए तेवर और कलेवर देखने को मिल जाएंगे। आने वाले पंद्रह साल के लिए नई लीडरशिप अब शहर में जन्म लेगी, यानी नेताओं की पत्नियों से लेकर नेताओं के पुत्रों तक को इस बार उम्मीदवारी मिलने की कोई संभावना नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्रजी मोदी साहब भी परिवारवाद को लेकर लगातार अपनी ही पार्टी में पटा-बनेटी घुमा रहे हैं। इसके कारण कई परिवारवादी नेता विचलित भी हैं, पर का करे, कंट्रोलई नहीं होता है। अब यह फरमान बड़ी तेजी से नीचे तक पहुंच गया है। कार्यकर्ता भी अब स्थापित नेताओं के परिवारों से मुक्त होना चाहता है और इसी भावना को जाजम पर उतारा जा रहा है। ठीक, दिल्ली नगर निगम चुनाव की तरह, जहां नेता-पुत्रों से लेकर नेता-पत्नी सहित नेता ही जड़मूल से गायब हो गए और उसके बाद भी भाजपा ने शानदार परचम लहराया, यानी भाजपा की राजनीति समझने वाले कहने लगे हैं कि भाजपा में कोई ठिकाना नहीं, रात को सोओ, सबेरे पता लगे कि मार्गदर्शक मंडल में स्थापित हो गए हैं। अब यह समय ही बताएगा कि नई भाजपा का रूप और स्वरूप कैसा होगा। भाजपा के ही कई दिग्गज नेता भी यह मान रहे है कि इस बार उम्मीदवारी तय होना आसान नहीं होगी क्योंकि मुरली धर कर अब यहां पर कई नेताओं की पुंगी बजाने के लिए तैयारी शुरू हो गई है।

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