मोदी सरकार प्रयोगों में व्यस्त जनता महंगाई, बेरोजगारी से त्रस्त

विशेष संपादकीय- नवनीत शुक्ला

 

प्र धानमंत्री नरेन्द्र मोदी अंतत: अपने ही नारे से अब पीछे हटने के बाद नए मंत्रालयों के साथ 1२ मंत्रियों को पद मुक्त करने के बाद यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि उन्हें किस दिशा में जाना है। एक ओर वित्त मंत्रालय लगातार अन्य मंत्रालयों को खर्च कम करने के निर्देश दे रहा है। प्रधानमंत्री खुद चार बार इस मामले में बड़े आदेश जारी कर चुके हैं, जिसमें खर्च कम करने से लेकर कर्मचारियों के डीए तक रोक दिए गए। सरकार चलाने के लिए आम आदमी का तेल निकाला जा रहा है। पेट्रोल-डीजल की कीमतें आसमान छू रही है और यह सब मंत्रालयों को चलाने के लिए किया जा रहा है। सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नारा दिया था, हमारी सरकार ‘मिनिमम गव्हरमेंट मेग्जिमम गर्वेनेंसÓ देगी, मंत्रियों की संख्या भी कम से कम होगी, परंतु उन्हीं के मंत्री जिन्हें हटाया गया वे ये बता रहे हैं कि वे सरकार के लिए सफल सिद्ध नहीं हुए। प्रधानमंत्री उनके मंत्रालयों के कार्यों से संतुष्ट नहीं हुए। जब वे ही नहीं हुए तो आम आदमी कहां संतुष्ट हो रहा है। सवाल उठ रहा है कि फिर इन मंत्रियों को इतने समय क्यों ढोया गया। दूसरी ओर नए मंत्रालयों के गठन का भार भी आम आदमी पर ही पड़ने जा रहा है। इसके पूर्व भी इसी प्रकार से विभागों को अलग कर मंत्रालय बनाए गए और इन मंत्रालयों के निर्माण के समय भारी प्रचार किया गया, ऐसा लग रहा था अब यह मंत्रालय ही देश की नैया पार लगा देंगे, परंतु दो साल बाद इन मंत्रालयों के बारे में बात ही नहीं होती है और आश्चर्य की बात यह है कि इतने बड़े मंत्रालय इन दिनों दूसरे मंत्रालय के साथ अतिरिक्त भार देकर ढोए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए श्रम मंत्रालय के एक विभाग को हटाकर स्कील डेवलपमेंट मंत्रालय बनाया गया। इसी के साथ देशभर में हर गांव में जल पहुंचाने को लेकर जल शक्ति मंत्रालय का निर्माण किया गया, जबकि यह कार्य केन्द्र सरकार के सहयोग से राज्यों का है। बड़े जोर-शोर से बनाए गए इन मंत्रालयों के मंत्रियों के बारे में भी गुगल से जानकारी लेना पड़ती है। अब एक और नया मंत्रालय सहकारिता के लिए बनाया गया, जबकि सहकारी बैंकों के पास भी किसानों के कर्ज का काम भी नहीं रह गया है। ऐसे में यह मंत्रालय जिस पर करोड़ों रुपए खर्च होंगे, आने वाले समय में इसके बारे में भी जानकारी लेनी पड़ेगी। भयानक बेकारी और बेतहाशा महंगाई के बीच नए मंत्रालयों का क्या औचित्य है और इनका क्या भविष्य होगा यह समय बताएगा, जैसे नोटबंदी सहित कई निर्णयों का जिक्र भी नहीं होता है। परंतु यह तय है कि मंत्रिमंडल में जगह मंत्रियों की गुणवत्ता के आधार पर नहीं बल्कि आने वाले चुनाव के आधार पर दी गई है। भाग्य के नाम पर चलने वाली सरकार अब जमीनी स्तर पर किस प्रकार बिखर रही है यह जम्बो मंत्रिमंडल इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।

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