आदमी पर मूतने लगा आदमी, यह सामाजिक पश्चाताप का समय है

विशेष संपादकीय-नवनीत शुक्ला

Man pees on man, it's time for social repentance

अ गर हम देख पा रहे हैं तो हमारे जीवन की प्रत्येक गतिविधि में राजनीति का हस्तक्षेप इतना बढ़ गया है कि हर सामाजिक प्रश्न राजनीतिक बना दिया जाता है। आजकल की दलीय राजनीति अपने-अपने वोट बैंक की चिन्ता में डूबकर इतनी संकुचित हो गयी है कि वह विभिन्न समाजों में घटने वाली हर घटना को चुनाव में अपनी जीत और हार से जोड़कर देखने लगी है। राजनीति की दिलचस्पी सामाजिक न्याय में नहीं बल्कि बेबस लोगों को उनके हाल पर छोड़कर केवल वोट बटोर लेने में है। वह उन्हें दरिद्रनारायण कहकर उनके पांव पखारकर सिफ़र् अपने पक्ष में फुसलाती है। अभी जो राजनीतिक रूप से हट्टे-कट्टे आदमी के द्वारा एक बेबस आदमी पर मूतने का दृश्य देखा गया है।

वह सबसे पहले एक सामाजिक प्रश्न है। यह अमानवीय कर्म करने वाला आदमी जिस समाज में पला-बढ़ा है, यह घटना देखकर उस समाज को अपनी चिन्ता करना चाहिए। उसे सोचना चाहिए कि अगर अपनी शालीनता, मानवीयता और उदारता के मूल्य को खोने वाले लोग उस समाज में बढ़ते चले गये तो उसे एक पतनशील और असभ्य समाज होने का कलंक लग सकता है। सीधी में एक आदिवासी पर हुए घटनाक्रम को लेकर जहां देश भर में अलग-अलग राग अलापे जाने लगे है और पिछले दो दिनों से ऐसा लग रहा है कि यह कोई विचित्र घटना हो गई है। मुख्यमंत्री सहित विपक्ष के नेता और खुद ब्राह्मण समाज भी इस कृत्य को निहायत घिनौना मान रहे है।

जब सभी ऐसे गलत मान रहे है तो फिर राजनीति क्यों हो रही हैं। सबसे बड़ा सवाल उठता है कि क्या इस घटना के बाद आरोपी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। निश्चित रूप से मुख्यमंत्री ने ऐसे मामले में सख्त कार्रवाई कर एक संदेश दे दिया, होना भी यही चाहिए था।

सबसे बड़ी बात यह होती है कि पीड़ित को तत्काल न्याय मिला या नहीं? इधर उसके बाद जो नाट्य समारोह का आयोजन हुआ वह आश्चर्यजनक था। मुख्यमंत्री ने उन्हें अपना दोस्त बताते हुए चरण धोकर सुदामा बताने के साथ यह भी बता दिया कि वे कृष्ण हो गए है। होना भी चाहिए था ऐसी घटनाओं पर अगर हर बार मुख्यमंत्री को ही या सरकार को दोषी माना जाएगा तो पूरे प्रदेश में आने वाली कोई सी भी सरकार हो यह तय है कि मुख्यमंत्री को अपनी कार में गंगा जल, थाली और लोटा लेकर चलते रहना पड़ेगा। सरकार का काम न्याय दिलाना है और वह मिल चुका है, पर क्या भविष्य में इसे नजीर मानकर हर घटना के बाद जारी रखा जाएगा। प्रदेश में शराब पीकर किए जा रहे कृत्य की संख्या कितनी है यह हर दिन देखा जा सकता है।

दूसरी ओर इस घटना के बाद प्रदेश भर में पुलिस और आबकारी के अधिकारी जो शराब की दुकानों के आसपास नहीं दिखते थे वे भी शराब लेने वालों को कहते देखे जा सकते हैं कि सीधे घर जाना। भविष्य में इस प्रकार की घटना न हो इसके लिए भी सरकार को शराब की दुकानों के बाहर सुलभ व्यवस्था कर देनी चाहिए, ताकि जो भी करना हो वह यहीं हो। कुल मिलाकर पहले दिन जिस दलित का चेहरा नहीं दिखाया जा रहा था। दूसरे दिन वह सबने देख लिया, जो कांग्रेसी इस हादसे को राजनीतिक लाभ के लिए भुनाने की कोशिश कर रहे है वे भी कोई नैतिकता से भरे नहीं है। मौका देखकर अपने लाभ के लिए विधवा प्रलाप ही कर रहे हैं।

क्या उनकी सरकार में ऐसे लोगों पर और अधिक सख्त कार्रवाई का प्रावधान था और जहां सरकारें हैं वहां पर ऐसे हादसे नहीं हो रहे हैं। वहीं सरकार ने आज सरकारी सहायता का नया मार्ग भी खोल दिया है। ऐसे में उक्त दलित को 5 लाख की आर्थिक सहायता और डेढ़ लाख रुपए का मकान मिल गया है। यानि यह सब सुविधाएं चाहिए तो इस उपक्रम का इंतजार करते रहना पड़ेगा। ज्यादा दूर नहीं जाने की जरूरत नहीं रहेगी लोग शराब की दुकानों के बाहर ही सही समय का इंतजार करते रहेंगे। अत: इस घटना पर सबसे पहले निन्दा प्रस्ताव तो समाज की तरफ़ से आना चाहिए। जिस बेबस आदमी पर खुलेआम मूता गया है उससे समाज को माफ़ी मांगना चाहिए और अपने लोगों के सुधार की दिशा में तुरंत सक्रिय हो जाना चाहिए। बहुरंगी जागरूक समाज ही मिलकर राष्ट्र को संभालते हैं और लोकतंत्र में राजनीति को रानी नहीं, नौकरानी बनाकर रखते हैं।

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