गुस्ताखी माफ़: दीदी को रास नहीं आया रात्रिकालीन कल्चर…

छाछ भी फूंक-फूंककर पीने की तैयारी...गुण्डों से दो-दो हाथ कर चुके हैं...

दीदी को रास नहीं आया रात्रिकालीन कल्चर…

usha thakur

usha thakur शहर की संस्कृति पर लग रहे दाग के बाद अब उषा दीदी को भी संस्कृति की चिंता तीन-चार घटनाओं के बाद होने लगी है। रास्ते में करोड़ों की कार में वस्त्रहीन हो रही बहन, भाई से लड़ रही है तो चार बहनें सड़क के बीच में आपस में मारपीट का खेल खेल रही हैं। यह सब शहर के बीच आधी रात को होने लगा है। भाजपा के बड़े नेताओं के बड़े पुत्र भी होटलों में अपनी संस्कृति का परिचय दे रहे हैं। आश्चर्य इस बात का है कि जब इस प्रकार के फैसले शहर में बड़े धूम-धड़ाके के साथ लिए जाते हैं, उस वक्त शहर के राजनेता चुप्पी साधकर रखते हैं। पूरी योजना पर सड़क पर आ गई और संस्कृति मंत्री ने जब तक संस्कृति दिखती रही, एक शब्द नहीं कहा और दो दिन में ही उन्हें शहर चौबीस घंटे खुला रहने में कष्ट होने लगा। अब वे इस बात के लिए उधार हो गई हैं कि शहर चौबीस घंटे की संस्कृति के लायक नहीं हैं, इसलिए इसे रात में खुला नहीं रखा जाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि एबी रोड के 100 मीटर के दायरे में जिला प्रशासन ने रातभर खुला रखे जाने को लेकर बसें चलाने से लेकर होटल खुली रखने तक के लिए कामकाज प्रारंभ कर दिया है। योजना में कोई खराबी नहीं, खराबी होती है कानून-व्यवस्था में। घटना के दौरान चौराहों पर आधी रात पुलिस का न होना सबसे बड़े आश्चर्य का विषय है, जबकि खुला क्षेत्र ढाई किलोमीटर से ज्यादा की क्षमता का नहीं है, पर जो भी हो, अब संस्कृति मंत्री usha thakur का हिंदुत्व जाग गया है। देखना होगा कि वे इसे बंद करवा पाती हैं या नहीं। usha thakur

छाछ भी फूंक-फूंककर पीने की तैयारी…

kailash and ramesh

गौरव बाबू को शॉल-श्रीफल मिलने की संभावना भोपाल में मिलती दिखने के बाद उनके तमाम विरोध करने वाले नेताओं के यहां हलचल शुरू हो गई है। कुछ की बांछें भी खिल उठी हैं। किसी जमाने में आर.के. स्टूडियो की नाव पर सवार होकर भगत की भक्ति का लाभ लेते हुए वे अध्यक्ष पद पर तमाम रायशुमारियों को भोंगली बनाकर पद पर विराजित हो गए थे। हालांकि उनकी रवानगी का फैसला संगठन को करना है, परंतु शहर में नए अध्यक्ष को लेकर समीकरण बनना शुरू हो गए हैं। दूध के जले आर.के. स्टूडियो के बैनर में भी इस बार छाछ भी फूंक-फूंककर पीने की तैयारी हो चुकी है। माना जा रहा है कि अब जो अध्यक्ष बनेगा, वह शहर के कई चुनावी फैसलों में भी अहम भूमिका निभाएगा। जो भी हो, नए अध्यक्ष को लेकर इस बार इंदौर में अच्छी-खासी मशक्कत दिखाई देगी।

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गुण्डों से दो-दो हाथ कर चुके हैं…

इंदौर में पदस्थ हुए नए कलेक्टर जबलपुर से आ रहे हैं। जबलपुर संस्कारधानी के साथ गुंडों की राजधानी भी कहलाता है। यहां पर गुंडागिर्दी पर उन्होंने अच्छी-खासी लगाम लगाई है। यह भी कहा जा रहा है कि वे चंद्रबाबू नायडू के बेहद करीबी और कुशल प्रशासनिक क्षमता के अधिकारी हैं। सुबह छह बजे से इन्हें भी सड़कों पर उतरने की पुरानी आदत है। किसी भी विभाग में अचानक धमकने में भी उनकी महारत है। जिन भूमाफियाओं और शराब माफियाओं को मनीषसिंह के इंदौर से जाने पर यह लग रहा हो कि उन्हें राहत रहेगी तो नए कलेक्टर इलैया राजा टी. के करीबी रह चुके अधिकारी जबलपुर और भिंड में उनकी कार्यप्रणाली बताते हुए कह रहे हैं कि उन्होंने भिंड में राजनेताओं को लोकप्रियता में पीछे छोड़ दिया था। हालत यह हो गई थी कि जब वे वहां से हटाए गए तो लोग उनके समर्थन में सड़कों पर उतर आए थे। धरना-प्रदर्शन तक हुआ तो वहीं जबलपुर में माफियाओं की रात की नींद वे उड़ा चुके हैं। अब केवल देखना ये है कि उनके आने के बाद व्यवस्था भारी रहती है या फिर मनीषसिंह के कार्यकाल की तरह प्रशासन।

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