गुस्ताखी माफ़-चाय कुछ ज्यादा गरम हो गई…आयकर और ईडी दोनों ही चिपक लिए…जब सुनवाई नहीं तो जनसुनवाई कैसे होगी…

 

चाय कुछ ज्यादा गरम हो गई…


नए-नए पद पाए सौगात मिश्रा इन दिनों किसी बड़े नेता से कम लटके-झटके नहीं दिखा रहे हैं। रुतबा ऐसा हो रहा है कि विधायक और सांसद भी नजरें झुका लें। कुल मिलाकर पद का आनंद लेने का तरीका उन्हें आ गया है और हालत ऐसी है कि सौगात मिश्रा सीधे मोबाइल पर बात नहीं करते। उनके पहले उनके नकुल सहदेव फोन लगाते हैं और कहते हैं कि भाईसाब बात करेंगे। अभी तक भाईसाब के नाम पर जयप्रकाश चावड़ा से लेकर मुरलीधर राव ही हुआ करते थे। अब एक और नाम शामिल हो गया है। सामने वाला सोचता है कौन बात करेगा, इसी उलझन में दो-चार मिनट निकल जाते हैं। आलम यह हो गया है कि जिन्हें पहले वे भाईसाब कहते थे अब उन्हें भैया कह रहे हैं और भैया वाले जो थे अब उनके नाम ले रहे हैं। नाम वालों की तो बात करना ही बेकार है। जो भी हो भाजपाई नेता कह रहे हैं कि इतने लटके-झटके मधु भैया के भी नहीं रहे। फिर चेले में इतने लटके-झटके कहां से आ गए।
आयकर और ईडी दोनों ही चिपक लिए…
इन दिनों शहर की 150 करोड़ की शराब दुकानें लेने वाले सूरज रजक का चर्चा आबकारी विभाग में तो है ही। ईडी और अन्य विभागों में भी उन पर नजरें टिक गई हैं। मामला ऐसा है कि पिछले दिनों जमीनों के बड़े खेल में एक बड़े नेता के साथ 300 करोड़ का कामकाज करने की जानकारी बाजार में आ गई है और उसी के बाद यह ठेके लिए गए हैं। 150 करोड़ के ठेके में कायदे अनुसार एक करोड़ रुपए से ज्यादा 1 नंबर में आना चाहिए परंतु ठेकों पर 40-45 लाख ही आ रहे हैं। ऐसे में बाकी पैसे का क्या खेल होगा, इसे लेकर बड़े नेता के साथ अब आयकर विभाग भी अपनी नजरें लगा चुका है। आने वाले दिनों में वे किसी निशाने पर आने वाले हैं। साथ में नेता भी उलझेंगे। वैसे ही वे अभी अपनी जमीन ठीक करने में लगे हैं।
जब सुनवाई नहीं तो जनसुनवाई कैसे होगी…


एक ओर जहां जिला प्रशासन मुख्यालय पर होने वाली जनसुनवाई में सारा अमला मौजूद रहता है और न्याय भी तुरंत मिलने के कारण प्रशासन की साख में बढ़ोतरी तो हो ही रही है वहीं ईमानदार कार्रवाई को लेकर शहर में भी लोगों को विश्वास होने लगा है कि कोई उनकी सुध ले रहा है। दूसरी ओर इन दिनों नगर निगम में जनसुनवाई को लेकर कोई उत्साह नहीं है साथ ही जनसुनवाई का भी कोई कार्यक्रम नहीं हो रहा है। जनसुनवाई न होने के कारण सीएम हेल्पलाइन पर भी 3000 से ज्यादा छोटी-बड़ी शिकायतें झूल रही है। इस मामले में एक अधिकारी का कहना है कि जब सुनवाई ही नहीं हो रही है तो जनसुनवाई क्यों होगी।
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