गुस्ताखी माफ़ – पंडितजी… धर्म का प्रचार करें, धर्मांधता का नहीं…सांस लेने की फुर्सत नहीं…

पंडितजी… धर्म का प्रचार करें, धर्मांधता का नहीं…

शहर में आस्था और विश्वास के बीच अंधविश्वास की बड़ी दीवार कुछ इस प्रकार से न चाहते हुए भी खड़ी हो रही है, जो भगवान की आस्था के प्रति टोने-टोटके और ढोंग-धतूरे की पूजा को ही अपना प्रमुख आधार मानने लगी है। धर्म संस्कार की पाठशाला है, जो आपको जीने का तरीका सिखाता है। पिछले कुछ दिनों से सीहोर में पंडित प्रदीप मिश्रा, जो कथावाचक हैं, वे इन दिनों कथावाचक से हटकर ढोंग और धतूरे के ज्ञाता के रूप में काम करने लगे हैं। विगत श्रावण माह में उन्होंने लाल गुलाब के फूलों का जिक्र करते हुए कहा था कि सोमवार को इन्हें शिव को चढ़ाया जाए तो मनोकामना पूरी होगी। अब दो दिन पहले उन्होंने धतूरे के फल को हल्दी में भिगोकर लाल कपड़े में बांधकर शिवजी को चढ़ाने के लिए अपने भक्तों से आह्वान किया। इस मामले में शहर के प्रकांड पंडितों का कहना है कि इन सब बातों का किसी ग्रंथ में कोई उल्लेख नहीं है। मुरारी बापू से लेकर कमलकिशोर नागर महाराज तक इस प्रकार के ढोंग-धतूरों से अपने भक्तों को दूर रखते हैं। पिछले दिनों नागर महाराज के पास संकट में आए भक्त ने मदद चाही, इस पर नागर महाराज ने उससे कहा कि जो भगवद् गीता मैं सुना रहा हूं, उसी में तुम्हारी समस्या का हल भी है। संघर्ष में इंसान और मजबूत होता है और वही ईश्वर पर भरोसा रखते हुए यदि अपनी लड़ाई लड़ता है तो सफलता प्राप्त करता है। दूसरी ओर प्रदीप मिश्रा भगवान और आस्था के नाम पर जिस प्रकार से ढोंग-धतूरे बता रहे हैं, इससे यह सिद्ध होता है कि वे कथावाचक कम हैं और औघड़ बाबा ज्यादा हो गए हैं। पिछले दिनों उन्होंने सीहोर में ही रुद्राक्ष को लेकर अपने आंसू बहाए थे। तमाम कांग्रेसी विधवा-प्रलाप की तरह लपक लिए और मुख्यमंत्री सहित अन्य को दोषी ठहराने लगे, जबकि प्रशासन कथा करने वाली समिति से ही पूरी जानकारी लेकर प्रशासनिक तैयारी करता है। ऐसे में समिति के पदाधिकारियों पर मुकदमा दर्ज होना चाहिए, जिन्होंने प्रशासन को पूरी जानकारी नहीं दी। मुख्यमंत्री तो पहले से ही दयालू हैं। उन्होंने आस्था का अपमान न हो, इसलिए जिले के कलेक्टर और एस.पी. महोदय, जो पद उन्होंने शिक्षा और मेहनत से पाया है, न कि घर में धतूरा और गुलाब रखकर पाया है, उन्हें पंडितजी के पास उपस्थित होकर मामले का पटाक्षेप करने को कहा। कुल मिलाकर सार यह है कि एक अच्छे कथावाचक को ढोंग-धतूरे से बचते हुए परिवारों को और माता-बहनों को यह सलाह देनी चाहिए कि वे अपने घरों के बाहर वृक्ष लगाएं, स्वच्छता का पाठ पढ़ें और अपने बच्चों को संस्कार सिखाएं, न कि ढोंग-धतूरे और लाल कपड़े के चक्कर में उनका जीवन खराब करें। उधर दूसरी ओर एक बार फिर नंदी बाबा कल दोपहर बाद से मंदिरों में दूध और पानी पीने में लग गए थे। हालांकि इस बार पिलाने वाले कम आए, देखने वाले ज्यादा आ रहे थे। जो भी हो, दो-चार कथाएं और ऐसी हो गई तो कोई आश्चर्य की बात नहीं कि लोग बाबा को ही कथा के बीच में चम्मच से दूध पिलाते दिखेंगे। पंडित प्रदीप मिश्रा को यह समझना होगा कि धर्म हमारी संस्कृति है, धार्मिकता हमारी प्रवृत्ति है, धर्मांधता हमारी विकृति है। आग की लपटें चूल्हे में ही अच्छी लगती है, जो अग्नि की भूख मिटाती हैं। धार्मिकता का शरीर से बाहर कोई अस्तित्व नहीं होता। वह शरीर के हर अंग को संचालित करती है, जबकि धर्मांधता का शरीर के अंदर दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं होता है। धर्म एक अनुशासन है, जो मनुष्य को मनुष्यता के दायरे में रहने की हिदायत देता है और यह भी समझें कि आदमी चाहे किसी भी धर्म का हो, अगर धार्मिक होता है तो वह गांधी होता है और धर्मांध होता है तो हिटलर होता है।

सांस लेने की फुर्सत नहीं…
नगर निगम में एक अनार क्या-क्या करे। ऐसी स्थिति में जब सारी दुनिया का बोझ एक ही जगह आ गया हो। नगर निगम के उपायुक्त लोकेंद्रसिंह सोलंकी के पास इतने काम हैं कि बहुत बार उन्हें यही पता नहीं लग पाता कि कौन से विभाग का काम करना है और कौन से विभाग का नहीं। जो भी हो, लोकेंद्रसिंह सोलंकी की मूंछों की झांकी तो है। इन दिनों उनके पास जन्म-मृत्यु, विवाह पंजीयन, मार्केट, उद्यान, लीज सहित कई विभाग हैं। काम इतना ज्यादा है कि फोन उठाने के लिए भी समय नहीं मिल पाता। बेचारा बज-बजकर घुंघरू हो गया है। इधर कोई दूसरा अधिकारी भी नगर निगम में नहीं है कि उसको जवाबदारी के साथ एक-दो विभाग दिए जा सकें। ट्रांसफर भी हो चुका था, मगर सरकार को ही रोकना पड़ा, क्योंकि नगर निगम में अब काम करने वाले बचे कहां हैं। दूसरी ओर निगम मुख्यालय में अपर आयुक्त संदीप सोनी जिस दिन आते हैं तो कर्मचारी कहते हैं कि आज ईद का चांद निकल आया है। कितनी देर दिखेगा, देख लो, वरना अगली ईद तक इंतजार करना पड़ेगा।

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