गुस्ताखी माफ़- आर.के. बैनर की सबसे ज्यादा मांग रही…

कल मकर संक्रांति पर शहर में पतंगबाजों और पतंगों का जोर रहा। कई नेता जहां पेच लड़ाने से बचते रहे, तो वहीं आर.के. स्टूडियों के निर्माता-निर्देशकों की सबसे ज्यादा मांग संक्रांति पर रही। कई जगह पतंगें इंतजार में ही मायूस रही, तो कहीं दिए गए समय से पांच घंटे तक गाड़ी लेट होती रही। मोबाइल बजते रहे, संदेश मिलते रहे, आ रहे हैं, आ रहे हैं, आ रहे हैं पर…. नहीं आ पाए। दो जगहों पर पतंगे उड़ाने वाले साढ़े 6 बजे तक टकटकी लगाए इंतजार करते रहे। हालत यह हो गई कि पतंग और डोर दोनों ही दिखना बंद हो गई। पतंगबाजों की हालत करण-अर्जुन की मां की तरह हो गई थी। वे केवल एक ही बात कह रहे थे हमारे करण-अर्जुन आएंगे जरूर… आखिरी में पतंग दिखना भी बंद हो गई। मांग ऐसी रही कि अजीज नाजां की कव्वाली… ये तो अच्छा हुआ अंगूर को बेटा न हुआ… वरना उसकी हालत और ज्यादा खराब हो गई होती। कहां-कहां पतंग उड़ाने जाना पड़ता, इन्हीं सब चीजों से बचने के लिए अंगूर ने अकेले रहना ही ठीक समझा। हमारा कहना नहीं है, यह कल वे कह रहे थे, जिनकी पतंगों को आर.के स्टूडियों की उड़ान नहीं मिल सकी। जिन जगह पतंगों को उनके हाथ लग गए, वे तो ऐसी उड़ी की जमीन पर पांव ही नहीं टिक रहे थे। एक अनुमान के अनुसार भिया ने 60 जगह तो दादा ने 50 जगह कम से कम डोर पर हाथ आजमाए। वैसे भी क्षेत्र क्र. 2 यानि नंदानगर, परदेशीपुरा की गलियों में सबसे पहले पैदा होने वाले बालकिशन का पाला अंटी, गिल्ली-डंडा, पतंग और भंवरे से ही पड़ता है। कई गुरु घंटाल इस क्षेत्र में इस मामलों के हुनरबाज है। लोग मानते हैं कि भिया अगर भंवरा घुमा दे तो वह अकेला ही बिना किसी मदद के 8-15 दिन घूम सकता है। जो भी हो एक बात तो मानना पड़ेगी, आरके बैनर में हुनर की कोई कमी नहीं है। वे अपने क्षेत्र में भी पतंग उड़ाते हैं, तो दूसरी विधानसभाओं के नेता इस बात की चिंता में लगे रहते हैं कि उनकी पतंग अपने आसपास तो नहीं उड़ रही, वरना पता ही नहीं चलेगा और पेंच कट जाएंगे। उनसे पूछो, जिनकी पतंगें आज भी आसमान में भले ही उड़ रही हो पर वे आर.के. बैनर की पतंग देखते ही आसमान में थरथर करने लगती है। वैसे भी इस समय तो उन्हीं की पतंग पूरे शहर में दिख रही है। अब कहने वाले तो यह भी कह रहे हैं कि उनके पास काम ही नहीं है। जो कह रहे हैं उनसे पूछो उनके पास कौन सा काम बचा है? -9826667063

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