गुस्ताखी माफ़-भाई, भौजाई अब छोड़ो, पेलवान नए नक्षत्र…चंद ठाकुरों की ठकुराई पर ग्रहण लगा…

भाई, भौजाई अब छोड़ो, पेलवान नए नक्षत्र…
इंदौर की भाजपा-राजनीति समझने के लिए किसी भी नेता के लिए एक जीवन कम होता है। मुख्यमंत्री से लेकर दिल्ली में भी राजनीति करने वाले कई दिग्गज इंदौर से अपनी दूरी हमेशा बनाकर रखते रहे। ताई, भाई, भौजाई के बीच किसी ने भी फटे में पांव डालने की कोशिश नहीं की। इधर एकदम नए-नए प्रभारी मंत्री बने नरोत्तम पंडित को यह लगा कि वे यहां भाजपा नेताओं के घर दाल-बाफले से लेकर रबड़ी सूतने के साथ ही सबके साथ मिलकर अपना परचम लहरा देंगे। किसी जमाने में यहां ताई, भाई, भौजाई ही थे, अब यहां पेलवान भी हो गए हैं और इन दिनों बैसाखी की सरकार में पेलवान सबसे भारी हो गए है। ऐसे में आते ही पंडितजी ने एक महीने में संगठन और सत्ता के सारे काम करने के ऐसे तेवर दिखाए कि भाजपा कार्यकर्ता भी लट्टू हो गए। समितियों के नाम चौदह अगस्त तक लेने के बाद पंद्रह अगस्त को नाम घोषित होना थे। अगस्त तो छोड़ो, सितंबर समाप्त होने जा रहा है, पता नहीं सूचियों की भोंगली लेकर कौन भाग गया, आज तक जारी नहीं हो पाया। भाजपा कार्यकर्ता अब समझ गए, कितना ही करंट गोले में दिखे, जब तक तार करंट नहीं छोड़ेंगे, गोले में लाइट जलने वाली नहीं है। पिछले दिनों इंदौर के कुछ अधिकारियों की कारगुजारी के दस्तावेज लेकर भाजपा के ही बड़े नेता नरोत्तम पंडित के बंगले पर पहुंचे तो पहले तो कोई कागज लेने को तैयार ही नहीं हुआ, बाद में एक ने आंखों-आंखों में इशारा करते हुए बताया कि जब तक पेलवान की हरी झंडी नहीं मिलेगी, इंदौर में पत्ता भी नहीं खड़केगा। ऐसे में वे खाली हाथ लौट आए, यानी सार यह है कि कार्यकर्ताओं को अब जो झुनझुने दिए जाने की तैयारी थी, उसमें नगर निगम, आईडीए, निगम-मंडल अब सब ठंडे बस्ते में जा चुके हैं। हां, भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए नया लक्ष्य मैदान में आ गया है। इस बार उन्हें आजीवन निधि के लिए बीस करोड़ रुपए एकत्र करके देना है, यानी अपने पैसे से पेट्रोल भरवाकर वाहनों को तैयार कर लें, क्योंकि इस समय देश बहुत खतरे में है और कार्यकर्ताओं के समर्पण की सबसे ज्यादा जरूरत है।
चंद ठाकुरों की ठकुराई पर ग्रहण लगा…
लंबे समय से इंदौर भाजपा संगठन में चल रहे ठाकुरवाद के समाप्त होने के बाद अब सबसे बड़ी राहत ब्राह्मण समाज के नेताओं को है। इंदौर में पदस्थ रहे संगठन मंत्री जयपालसिंह चावड़ा ने अपने कार्यकाल में कई ब्राह्मण नेताओं को पूरी तरह उंगली पर रख दिया था। सुमित मिश्रा तो इतने त्रस्त हो गए थे कि उन्होंने मुंह से ही हाथापाई कर ली थी। उमेश शर्मा भी प्रताड़ितों की टोली में शामिल थे तो वहीं आलोक दुबे फूल चढ़ाकर ऐसे गए कि वे भाजपा कार्यालय कभी लौटे ही नहीं। अब देखना होगा चावड़ा के ठाकुरवाद में साथ घूमने वाले ठाकुरों की भविष्य में क्या स्थिति रहेगी।
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