गुस्ताखी माफ़-उमा दीदी का दर्द आयातित रसगुल्ले खा रहे है…

 

उमा दीदी का दर्द आयातित रसगुल्ले खा रहे है…
अंतत: एक बार फिर राज्यसभा में अपना स्थान नहीं पाने के बाद उमा दीदी यानी उमा भारती ने मध्यप्रदेश में शराब कारोबार बंद कराने का बीड़ा उठा लिया है। जबकि मामा की सरकार इस समय दारुड़ियों के कंधों पर ही टिकी हुई है। वैसे भी ढाई लाख करोड़ का कर्ज होने के बाद दारू ही सबसे बड़ा सहारा होती है। इधर उमा दीदी का कहना है कि जिन राज्यों में शराब पर प्रतिबंध है, वह भी इसी देश के हैं, यानी अब वे एक बार फिर संन्यासी से आक्रामक राजनीति के रूप में दिखाई देने की ओर बढ़ रही हैं। उमा दीदी जिनके फायर ब्रांड भाषणों ने मध्यप्रदेश में भाजपा को सत्ता दिलाई थी, वे राजनीति की शिकार हो गईं और उन्हें संन्यास लेना पड़ा। निजी महत्वाकांक्षा के चलते उन्होंने मुख्यमंत्री का पद ठुकराया और उसी समय से उनके जीवन में राजनीतिक और मानसिक अस्थिरता बन गई फिर पता नहीं, क्या सूझी कि वे फिर से राजनीति में कूद पड़ीं। उपवास भी किया, पर सत्ता की छटपटाहट कायम रही। उन्हें उम्मीद थी उत्तरप्रदेश चुनाव के पहले मोटा सेठ और भाजपा उनका उपयोग करेगी, परंतु राज्यसभा में उनकी उम्मीदवारी का ऐलान न होने के बाद अब वे फिर मैदानी राजनीति में उतरने जा रही हैं। उनकी स्थिति ऐसी हो गई है कि वे न तो पूरे मन से संन्यासी हो पा रही हैं और न ही पूरे मन से राजनेता बन पा रही हैं। राजनीति में उन्हें अब गेरुए वस्त्र त्याग कर पूरी तरह ईमानदार राजनेता का सफेद वस्त्र उठाना होगा, उन्हें किसानों के लिए, उन्हें मजदूरों के लिए राजनीति करनी होगी। सब जानते हैं देश का भला कभी साधु-संतों से नहीं हो पाया है। देश को आगे बढ़ाने के लिए संतों की नहीं, सम्राटों की जरूरत होती है। अब यदि एक बार फिर वे मध्यप्रदेश में शराब की बिक्री बंद करवाने जैसे पुण्य कार्य के लिए मैदान में उतर रही हैं तो उन्हें यह कार्य मैदान में ही करना होगा। राजनीति में जो व्यक्ति सम्राट बनने के बाद संन्यासी होता है, वह अशोक होता है, गौतम बुद्ध होता है, महावीर होता है। अब देखना होगा कि वे अधूरे मन से मैदान में आ रही हैं या फिर संन्यास के मार्ग की ओर राजनीतिक तरीके से वापस लौट रही हैं। उनका दुखड़ा यह भी है कि नाना प्रकार की प्रजाति के आयातित नेता भाजपा में आकर सम्मान को प्राप्त हो रहे है और भाजपा में ही दरी उठाने वालों को सम्मान के लाले पड़ रहे है। हालांकि इससे दूसरे दिग्गज नेताओं की भी मनोदशा समझी जा सकती है।

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