भाजपा की संघर्ष राजनीति के युग का अंत….

कल भाजपा के वरिष्ठ नेता और आम आदमी के हमदर्द विष्णुप्रसाद शुक्ला के निधन के साथ ही भाजपा की संघर्ष राजनीति के उस युग का अंत हो गया जिसने अपने कंधों पर भाजपा को खड़ा करने के लिए अपने आप को समर्पित कर दिया।

जब कांग्रेस की ताकत चरम पर थी और अर्जुनसिंह जैसे कद्दावर नेता कांग्रेस के मुख्यमंत्री थे उस वक्त भाजपा को झंडा उठाने वाले भी एकत्र करने पड़ते थे। राजवाड़े पर होने वाले प्रदर्शन के पहले कार्यकर्ता गलियों में जाकर इंतजार करते थे कि कब बड़े भैया की जीप एमबीए ०५७७ आये और उनके आने के बाद बेधड़क होकर कार्यकर्ता मैदान में उतरते थे। विष्णुप्रसाद शुक्ला पर प्रकरणों की लंबी फेहरिस्त भी रही परंतु इनमे कई मुकदमें ऐसे थे जो अपने कार्यकर्ताओं को बचाने के लिए लद गये।

विष्णुप्रसाद शुक्ला ने राजनीतिक निष्ठा में कभी कोई परिवर्तन नहीं किया जब भाजपा के वरिष्ठ नेता सुंदरलाल पटवा की भाजपा में तूती बोलती थी उस वक्त भी उन्होंने कभी अपने हित के लिए उनसे सामंजस्य बैठानी की कोशिश नहीं की। जब सुंदरलाल पटवा ने छिंदवाड़ा से चुनाव लड़ा तो उस वक्त उन्हें बड़े भैया की जरुरत महसूस हुई तब वे इंदौर से कार्यकर्ताओं को लेकर छिंदवाड़ा में कवच के रुप में सुंदरलाल पटवा के साथ लगे रहे। बहुत कम लोग जानते हैं कि एक बार भाजपा के शिखर पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी के परिवार को इंदौर में संकट आ गया उस दौरान अटलजी ने ही बड़े भैया को फोन लगाकर मदद की गुहार की।

राजगढ़ में भी जब प्यारेलाल खंडेलवाल ने कांग्रेस के कद्दावर नेता दिग्विजयसिंह के खिलाफ मैदान पकड़ा था उस दौरान बड़े भैया की पूरे चुनाव में अहम भूमिका थी। तो वहीं सांवेर के विधायक रहे प्रकाश सोनकर से उनकी जुगलबंदी को भूला नहीं जा सकता है।

सदैव परछाई की तरह एक दूसरे के साथ खड़े दिखते थे। २००३ में भी उमा भारती जब मुख्यमंत्री के रुप में भाजपा से मैदान में उतर रही थी उस दौरान उन्होंने बड़े भैया पर चुनाव लड़ने का दबाव बनाया पर वे तैयार नहीं थे। दूसरी ओर यदि उनकी व्यवसायिक सोच का सम्मान किया जाए तो उन तमाम युवाओं के लिए वे ऐसे आदर्श हो सकते हैं जिन्होंने अपने प्रारंभिक जीवन में जब वे संघर्ष के दौर में थे और शहर में वाहनों की संख्या कम होने के साथ बैलगाड़ी(रंगाड़े) पर ही सामान ढोया जाता था। उन्होंने एक बार बातचीत के दौरान कहा कि छोटी छोटी बचत जीवन में बहुत बड़ा रास्ता तय करती है।

उन्होंने उस वक्त बताया था कि उन्हें पहले रंगाड़े से प्रतिदिन बीस रुपए की आय होती थी। वे खुद अपने बैलों की सेवाएँ करते थे। हर दिन आने वाले बीस रुपए में से पाँच रुपए वे अलग निकालते रहे। चार महीने में उन्होंने दो रंगाड़े खड़े करने की स्थिति बना ली और धीरे धीरे इसी प्रकार सौ के लगभग रंगाड़े उनके पास हो गये थे। छोटे छोटे बचत जीवन में बड़े कारोबार को बड़ी मदद करती है। उनके यह संदेश हमेशा नये व्यापार करने वालों के लिए सबक भी होती है।

दूसरी ओर उन्होंने जीवन में कभी दोस्त नहीं बदले संघर्ष के दिनों में जो उनके साथ खड़े थे वे अच्छे दिनों में भी सदैव उनके साथ पारिवरिक रुप से खड़े रहे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण खुरासान पठान है जिनकी दूसरी पीढ़ी भी बड़े भैया की दूसरी पीढ़ी के साथ उन्हीं रिश्तों को बनाकर खड़े है जो पहले से बरकरार है। दैनिक दोपहर परिवार भाजपा के इंदौर में इस आधार स्तम्भ के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए श्रद्धासुमन अर्पित करता है।
(नवनीत शुक्ला)

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