सिटी सर्विलांस योजना को लगा ग्रहण

शहर में लगाए गए अधिकांश आरएलवीडी एवं सीसीटीवी कैमरे बंद

इंदौर। महानगर में होने वाले जघन्य अपराधों पर रोकथाम के उद्येश्य से लगभग एक दशक पहले पुलिस प्रशासन व्दारा सिटी सर्विलांस योजना को क्रियान्वित किया था। कुछ समय तो इसके सकारात्मक परिणाम नजर आए, लेकिन अब इस योजना को ग्रहण लग चुका है। हालात कितने संगीन हैं, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि शासन व्दारा करोड़ों रुपए खर्च कर लगाए गए कैमरे देखरेख के अभाव में अब बंद पड़े हैं।

यहां पर यह प्रासंगिक है कि महानगर में बढते अपराधों पर अंकुश लगानेे और आपराधिक तत्वों का सुराग लगाने के उद्येश्य से शासन व्दारा सिटी सर्विलांस योजना लागू की गई थी। इसके तहत शहर के कई प्रमुख चौराहों एवं सार्वजनिक स्थानों पर आरएलवीडी एवं सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे। सबसे पहले ट्रेफिक नियम तोड़ने वालों को धर दबोचने के लिए आरएलवीडी कैमरे और बाद में आपराधिक गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए पुलिस प्रशासन व्दारा सीसीटीवी कैमरे लगवाए थे। यह कुछ दिन तक तो ठीक-ठाक काम करते रहे, लेकिन बाद में देखरेख के अभाव या फिर सड़कों की खुदाई अथवा मेट्रो प्रोजेक्ट आदि के चलते यह बंद हो गए। पहले ट्रेफिक पुलिस ने इसके लिए अपना अलग कंट्रोल रूम बनाया था और बाद में फिर पलासिया में पुलिस विभाग ने भी अपना पृथक कंट्रोल रूम तैयार किया था, लेकिन इन कंट्रोल रूम का ज्यादा इस्तेमाल नहीं हो रहा है।

 

थर्ड आई के लिए निगम ने बनाया कंट्रोल रूम, लेकिन कैमरे नहीं लगे

यहां पर महत्वपूर्ण तथ्य यह है, कि स्मार्ट सिटी कंपनी ने थर्ड आई के जरिए निगरानी की जिम्मेदारी ली थी। लाखों रुपए खर्च कर एआईसीटीएसएल परिसर में अत्याधुनिक कंट्रोल रूम भी तैयार करवा लिया, लेकिन कैमरे नहीं लगाए। परिणामस्वरूप इसका इस्तेमाल ही नहीं हो रहा है। इस मामले में स्मार्ट सिटी कंपनी के सीईओ ऋषभ गुप्ता के मुताबिक, ५० चौराहों पर कैमरे लगाने का टेेंडर जारी किया गया है। जल्द ही कैमरे भी लगेंगे और फिर कंट्रोल रूम से इनकी निगरानी की जाएगी।

कितने सीसीटीवी कैमरे लगे हैें शहर में…

देखा जाए तो जिला स्तर पर पुलिस प्रशासन व्दारा ५५ से अधिक लोकेशन पर ३१० कैमरे लगवाए थे। इसी प्रकार, राज्य शासन व्दारा १२५ लोकेशन पर ६०० के लगभग कैमरे लगवाए थे। इतना ही नहीं, ट्रेफिक पुलिस ने भी २८ चौराहे पर आरएलवीडी कैमरे लगवाए थे। इधर, कोर्ट के निर्देश पर हर थाने में १३-१३ कैमरे लगवाए गए। इन में बातचीत भी कैद होगी, जिनकी रिकार्डिंग भी डेढ साल तक सुरक्षित रहेगी। थाना प्रभारी के साथ कंट्रोल रुम में भी निगरानी का दावा किया गया। बताया जाता है कि २८ थानों में कैमरे लग चुके हैं। बावजूद इसके, इनमें से अधिकांश जगह पर लगे कैमरे बंद पड़े हैं।

४ सर्विलांस व्हीकल का भी है प्रस्ताव

बताया जाता है कि अधिकांश कैमरे बंद पड़े हैं और अब निजी कंपनी की मदद से सीएसआर योजना में २ करोड़ से इन्हें चालू करने की तैयारी चल रही है। शहर मेें लगभग साढे सात सौ जगह पर कैमरे लगे हैं और एक हजार स्थानों पर कैमरे लगाए जाने के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा गया है। इसके अतिरिक्त, चार सर्विलांस व्हीकल भी तैयार करवाए जा रहे हैं, जो अत्याधुनिक कैमरों से लैस होंगे।

निजी कैमरों के भरोसे है पुलिस तहकीकात

देखा जाए तो पुलिस प्रशासन व्दारा लगाए गए अधिकांश कैमरे बंद पड़े हैं। इस वजह से कई सनसनीखेज एवं जघन्य अपराधों में आरोपियों की तलाश करने में पुलिस को पसीने छूट जाते हैं। ऐसी स्थिति में पुलिस विभाग को निजी कैमरों के भरोसे रहना पड़ता है। हालाकि इसका फायदा भी उसे मिलता है, लेकिन उसके अपने कैमरे बंद होने की वजह से कई वारदातों के आरोपियों को पुलिस ट्रेस ही नहीं कर पाती है और अपराधी खुलेआम घूमते रहते हैं। अब यह देखना अवश्य ही दिलचस्प होगा कि पुलिस प्रशासन इन कैमरों को चालू करने के लिए क्या कदम कब तक उठाती है।

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