23 करोड़ का घोटाला 9 करोड़ तक पहुंचाया, 30 इंजीनियरों को चार्ज सीट, 1 साल से फाइल दबा रखी

आईपीडीएस का बड़ा फर्जीवाड़ा, आर्थिक अपराध शाखा को भी नहीं दे रहे दस्तावेज

Scam of 23 crores reached 9 crores
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Scam of 23 crores reached 9 crores

इंदौर।

पश्चिमी क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी में इन दिनों 9 करोड़ से अधिक के घोटाले की जांच की अंतिम रिपोर्ट अधिकारियों की टेबल पर धूल खा रही है। पहले यह घोटाला 23 करोड़ रुपए का निकाला गया था। इस मामले में बिजली कंपनी के 30 से अधिक इंजीनियरों की चार्जशीट भी दायर की गई थी। इंजीनियरों पर आरोप था कि उन्होंने फर्जी बिल पास किए थे। प्रारंभिक स्थिति में ही यह तीन करोड़ का घोटाला था, फिर उच्च स्तर पर जांच होने के बाद 18 करोड़ का मिला और एक साल हो गया।

इस घोटाले पर कोई कार्रवाई तो नहीं हुई बल्कि इस मामले में दोषी इंजीनियरों को भी इंदौर में ही पदस्थ रखा गया है। यह मामला इंट्रीग्रेटेड पॉवर डेवलपमेंट स्कीम (आईपीडीएस) के तहत देवास और इंदौर में ग्रामीण क्षेत्र में बिजली के खंबे और ट्रांसफार्मर लगाने के लिए योजना केंद्र सरकार द्वारा दी गई थी। अब यह जांच आर्थिक अपराध शाखा में भी केवल इसलिए रुकी हुई है कि बिजली कंपनी ने ना तो अतिरिक्त दस्तावेज दिए हैं और ना ही इस जांच की कोई रिपोर्ट दी है।

बिजली के क्षेत्र में कई सुधार कार्यक्रम के लिए केंद्र सरकार एक योजना लेकर आई थी, जिसे आईपीडीएस कहा गया। इस मामले में 39 करोड़ के काम देवास में हुए थे। यहां पर इस कार्य के लिए आर.के. नेगी अधिकृत किए गए थे। जब यह कार्य पूर्ण होना बताया गया तो इस मामले में बड़ी शिकायत मय प्रमाण के दर्ज कराई। इसमें बताया गया कि कई जगह बिजली के खंबे लगे ही नहीं।

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इसकी जांच के लिए तीन अधिकारियों की टीम तैनात की गई, जिसमें प्रारंभिक स्थिति में ही व्याप्त अनियमितताओं का जिक्र किया। बजरंग नगर से 55 बिजली के खंबे गायब मिले जबकि इस मामले में 22 करोड़ रुपए से ज्यादा की बिलिंग होती रही।

फजीवाड़े में फीडबेक कंपनी भी शामिल

आश्चर्य की बात यह है कि इन कार्यों के सुपरविजन के लिए गुड़गांव की प्रोजेक्ट मेंटेनेंस एजेंसी फीडबेक को तय किया गया था। इस कंपनी ने भी यहां पर हुए भ्रष्टाचार में जमकर सहयोग किया। जांच करने वाले अधिकारियों ने 16 सितंबर को लिखी नोटशीट में लिखा कि यह कंपनी को ब्लैक लिस्टेड किया जाना चाहिए। झूठे बिल पास करने को लेकर इसकी बड़ी भूमिका थी। जांच में देवास, बागली, सोनकच्छ में कई जगह खंबे ही नहीं लगे। साथ ही इसके लिए टैंडर बनाने की प्रक्रिया में भी बड़ी अनियमितता हुई। इस प्रोजेक्ट के टेक्रिकल डायरेक्टर एस.एल. गरबड़िया थे। शुरू से ही यह अच्छा कार्य बदनियत की भेंट चढ़ता चला गया।

बिना खंबे लगाए कंपनी को हो गया 8 करोड़ का भुगतान

यह कार्य 80 करोड़ का था, 8 करोड़ का भुगतान भी कंपनी ले चुकी है। आईपीडीएस के तहत यह कार्य क्षेमा पॉवर चेन्नई को दिया गया था। यह कंपनी भाजपा के बड़े नेता के संरक्षण में बताई जा रही थी। अब इस मामले की बारिकी से जांच के बाद यह घोटाला इस स्थिति में लाया जा रहा है कि कंपनी की जमा राशि में इसे बराबर कर लिया जाए। आश्चर्य की बात यह भी है कि क्षैमा पॉवर के फर्जी बिल एक के बाद एक पास होते चले गए थे। हालांकि इस मामले में शामिल बिजली कंपनी के तीस इंजीनियरों को दोषी पाने के बाद चार्जशीट सौंपी गई। एक साल हो गया अभी तक इस मामले में कार्रवाई आगे नहीं बड़ी है। अब यह मामला विधानसभा में उठाए जाने को लेकर बड़े पैमाने पर तैयारी की जा रही है।

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