प्रतिपक्ष नेता को लेकर दिल्ली से भोपाल तक चेयर रेस शुरू

चिंटू चौकसे दिग्विजयसिंह, शेख अलीम अरुण यादव और विनितिका यादव के लिए दीपू यादव कमलनाथ से मिले

इंदौर। इंदौर नगर निगम चुनाव में करारी शिकस्त खाने के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ पार्षदों में नेता प्रतिपक्ष बनने की चेयर रेस शुरू हो गई है। नेता प्रतिपक्ष के पद पर काबिज होने वालों ने भोपाल से लेकर दिल्ली तक भागदौड़ शुरू हो गई है। इस पद पर कौन बैठेगा, इसे लेकर कवायदें चल रही है। पद पाने वाले हर स्तर पर अपने आकाओं को मनाने में लग गए हैं, ताकि पद मिलने में आसानी हो सके।

पद को लेकर दैनिक दोपहर ने पहले ही विस्तार से लिखा था। अब वरिष्ठ पार्षद अपने आकाओं के साथ प्रदेश कांग्रेस के मुखिया कमलनाथ से मिलकर अपना पक्ष रख रहे हैं। इंदौर नगर निगम में कांग्रेस के कुल 19 पार्षद जीत कर आए थे, जिसमें वार्ड क्रमांक दो से कांग्रेस के बागी उम्मीदवार रफीक खान ने कांग्रेस प्रत्याशी मुबारिक अंसारी को शिकस्त देते हुए पुन: अपनी पार्षदी जीवित की है।

वहीं वरिष्ठ पार्षदों के क्रम में छोटे यादव, गोलू अग्निहोत्री के चुनाव हारने के बाद निगम में नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए शेख अलीम अपनी पत्नी फौजिया शेख को पुन: बनवाने के लिए भोपाल से लेकर दिल्ली तक ताकत लगाए हुए हैं। विधानसभा दो से तीसरी बार जीत कर आए चिंटू चौकसे और विधानसभा एक से विनितिका दीपू यादव भी मजबूती के साथ भोपाल में दम ठोंक रहे हैं। अब ऐसे में कांग्रेस का अनुशासन किस तरह तार-तार हो रहा है, इस पर कांग्रेस के नेता चुप्पी साधे बैठे हैं। अभी तक तो पार्षदों की शपथ विधि भी नहीं हुई और दूसरी तरफ नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए भोपाल से लेकर दिल्ली तक रेस शुरू हो गई है।

अब नेता प्रतिपक्ष के पद पर कौनसी चासनी दिख रही है यह तो यह दावेदार ही जाने जिसको लेकर दो दिन पूर्व प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के माध्यम से चिंटू चौकसे कमलनाथ से मिले तो वहीं कल सुबह शेख अलीम तो शाम को पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव के माध्यम से दीपू यादव अपनी पत्नी विनितिका यादव के साथ कमलनाथ से मिलकर अपना पक्ष रख कर आए।

जबकि इंदौर में निगम प्रतिपक्ष बनाए जाने को लेकर पूर्व सेवादल के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेंद्र जोशी को कमलनाथ ने इंदौर का प्रभारी बनाया। परन्तु कांग्रेस के नेताओं को पता है कि बड़े नेताओं की सहमति के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। प्रभारियों की नियुक्ति सिर्फ खानापूर्ति बनकर रह जाती है। ऐसे में पार्षदों ने अपने आकाओं के यह दस्तक देते हुए भोपाली दरबार में हाजिरी बजाना शुरू कर दी है।

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