ट्रेवल्स कंपनियों की बसों के आगे जिम्मेदार भी बेबस

टनों लगेज लादकर खुलेआम किया जा रहा यात्रियों की जान से खिलवाड़

इंदौर। ऐसा लगता है, कि ट्रेवल्स कंपनियों की बसों के आगे जिम्मेदार भी बेबस हैं। यही वजह है, कि इन बसों ने न केवल सड़कों पर ही बस स्टैंड बना लिए हैं, बल्कि यह बसें टनों लगेज लादकर खुलेआम यात्रियों की जान से खिलवाड़ भी कर रही हैं, लेकिन इनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है। हद तो यह है कि न तो पुलिस प्रशासन इस ओर कोई ध्यान दे रहा है और न ही परिवहन विभाग। उल्लेखनीय है कि शहर से महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ सहित लगभग एक दर्जन राज्यों के लिए करीब ७०० बसों का संचालन होता है। कमाई के लालच में बस आपरेटर लगेज की भी बुकिंग कर रहे हैं। हालात यह है कि क्षमता से ज्यादा वजन बसों पर डाला जा रहा है। कहने को यह सवारी बसें हैं, लेकिन इन्हें लोडिंग वाहन बनाम ट्रक बना दिया गया है। हालात यह है कि कैरियर और डिक्की में पार्सल लादने के साथ ही सीटों के नीचे भी लगेज रखकर ढोया जा रहा है। देखा जाए तो नियमानुसार, यात्री का सामान ही बसों में ले जाया जा सकता है। बावजूद इसके, ट्रेवल्स कंपनियां कमाईर् करने के चक्कर में तमाम नियम कानूनों की धज्जियां बिखेर रही हैं।

लोडिंग वाहनों की तर्ज पर किया जा रहा बसों का संचालन
ट्रेवल्स संचालक अपनी बसों का संचालन इन दिनों लोडिंग वाहनों की तर्ज पर कर रहे हैं। यात्रियों की सुविधाओं और परेशानी से उन्हें कोई लेना-देना नहीं है। यही वजह है कि जिस तरह ट्रांसपोर्ट आफिस में पार्सल की बुकिंग होती है, उसी तरह बस बुकिंग आफिस से लगेज की बुकिंग की जा रही है। ट्रेवल्स एजेंसियों के दफ्तरों के बाहर भारी लगेज रखे देखे जा सकते हैं। हालाकि, बस से इस तरह के पार्सल ले जाना नियमों के खिलाफ हैं। बावजूद इसके, बस चलने से पहले ही कर्मचारी लगेज लादना शुरू कर देते हैं। फिर चाहे यात्रियों को परेशानी ही क्यों ना हो ।

एक-दूसरे पर ढोलते हैं जिम्मेदारी
देखा जाए तो बस आपरेटरों की मनमानी पर अंकुश लगाना कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारी ही नहीं समझना चाहते। आपसी सांठगांठ और शुभ-लाभ का गणित ही इन्हें समझ में आता है। देखा जाए तो परिवहन नियम टूटने पर पुलिस और परिवहन विभाग को कार्रवाई करने का पूरा अधिकार है, लेकिन दोनो ही विभाग अपनी जिम्मेदारी एक दूसरे पर ढोलने से बाज नहीं आते। हालात यह है कि परिवहन विभाग अपनी जिम्मेदारी पुलिस प्रशासन पर ढोल देता है और पुलिस प्रशासन पुलिस विभाग पर। जब कभी कोई भीषण हादसा होता है तो हर बार जिम्मेदार कार्रवाई करने का आश्वासन देते हैं, लेकिन अमला कभी सड़क पर नजर नहीं आता।

हादसों के बाद भी नहीं जागे जिम्मेदार
यहां पर यह भी प्रासंगिक है कि आए दिन ट्रेवल्स की बसों के हादसे होते ही रहते हैं। कई लोग अकाल मौत के शिकार होते हैं और की घायल हो जाते हैं। जब कभी कोई हादसा होता है तो परिवहन विभाग और स्थानीय प्रशासन के साथ ही पुलिस विभाग कुछ दिन तो सख्ती करता है, लेकिन फिर उसे भुला दिया जाता है। इस वजह से बस आपरेटर मनमानी करने से बाज नहीं आते।

कमाई के लालच में कर रहे जान से खिलवाड़
यहां पर यह महत्वपूर्ण है कि बसों से लगेज भेजना सस्ता होता है, इसलिए किराना, इलेक्ट्रानिक्स, कपड़ा, आटो पाटर््स, मशीनें आदि सामान बसों से ही लाया ले जाया जाता है। यात्रियों से किराए लेने के अलावा बस आपरेटर को लगेज से अतिरिक्त कमाई होती है। इसी कमाई के लालच में अब आपरेटर यात्रियों की जान से खिलवाड़ करने से बाज नहीं आ रहे हैं।

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