मताधिकार है चुनने की ताकत…. तो नोटा है नकारने की ताकत

Voting rights is the power to choose... then NOTA is the power to reject.
Voting rights is the power to choose… then NOTA is the power to reject.

लोकतंत्र में जनता का सबसे बड़ा अधिकार….. सबसे बड़ा हथियार मताधिकार है। इसी ताकत से जनता राजा को रंक और रंक को राजा बना देती है। इसी ताकत से राजनीति में…… देश में……. सत्ता में…. बदलाव होता रहता है। इसी का असर है कि, चुनावों में अप्रत्याशित परिणाम आ जाते है, बदलाव की इसी हवा में कभी मायावती….. कभी क्षेत्रीय दल……. कभी आम आदमी पार्टी आ जाती है।

हमें सर्वश्रेष्ठ नेतृत्व मिले यह तो असंभव ही है। चुनना तो हमें इन्हीं में से पड़ेगा पर हम यह तो तय कर ही सकते है कि, बाहुबलियों, अपराधियों, भ्रष्टाचारी व साम्प्रादायिक तत्वों को चुने या नहीं। इलेक्ट्रानिक मीडिया, सोशल मीडिया के जमाने में अब किसी से कुछ नहीं छिपा है। अब सब को सब कुछ पता है, सब को सब कुछ दिखता है। हम भले ही आरोप लगावे कि, नेता अनर्गल बयान बाजी कर रहे है…..स्तरहीन हो गए है…… गरिमा का ध्यान नहीं रख रहे है….. पर वे गलत नहीं है गलत तो हम है…… वे तो शत-प्रतिशत सही है। उन्हें एक दूसरे के बारे में सब पता है इसलिए वे जो बोल रहे है उसमें सत्यता भी है। चाहे भ्रष्टाचार पर बयान हो या घोटालों पर साम्प्रदायिकता पर बयान हो या वंशवाद पर ….. कहीं कोई गलत नहीं है। बदलाव तो हो रहा है, नेताओं में तो बदलाव दिख रहा है पहले नंगे को नंगा, चोर को चोर कहने पर झिझक थी जो अब खत्म हो गई है। गुंडे को गुंडा…. व्याभिचारी को व्याभिचारी, अपराधी को अपराधी खुलकर कहा जा रहा है। हमें तो खुश होना चाहिये की हमारे कम से कम जनता तो एजूकेट हो रही है। समझकर ही वोट देते है, हम किस झूठे नेताओं में अब साफगोई आ ही गई है। इससे वैसे तो हम भी कम होशियार नहीं है हम सब किस दलाल…… किस गुंडे किस अनैतिक …….. को वोट दे रहे हंै…. लेकिन आखिरकार हम में बदलाव कब आयेगा…..? कब हम गलत व्यक्ति को चुनना बन्द करेंगें…? बड़ी कठिनाई है…. मुश्किल यह है कि, हम ही तय नहीं कर पा रहे है कि, हमें क्या चाहिये? इस भीड में हम नायक तो नहीं खोज पा रहे है, लेकिन कम से कम यह तो तय कर सकते है कि, हमें क्या नहीं चाहियें?

हमारी ताकत मतदान का अधिकार है इसलिए मतदान जरुर करना है। हमें चुनना है, अच्छे को योग्य को….. हमारे लिए ताकत से आवाज उठाने वाले को। हाँ…… हमें अपनी एक ताकत का और ध्यान रखना चाहिए वह है नकारने की ताकत चुनाव आयोग ने हमारे हाथ में एक मजबूत हथियार दे दिया है। नापसंदगी का अधिकार, जिसे नोटा कहा जाता है। नोटा व्यर्थ नहीं है….. नोटा की अपनी ताकत है…. रिजेक्शन की ताकत है….. नकारने की ताकत है….. यह ताकत सबसे बडी है।…. गांधीजी का असहयोग एक तरह का नोटा ही था, जिसके असर ने अंग्रेजों को भारत छोडऩे के लिए मजबूर किया था। इस अधिकार से एक बार सबको यह पता लग जाए की हम किन लोगों को रिजेक्ट कर रहे हंै तो शायद वह लोग सामने आयेंगे जो राजनीति में नहीं है और काबिल है या राजनीति में हैं भी तो किसी दलित की भांति उपेक्षित। नोटा के अधिकार का मतलब है यदि चुनाव में हमें कोई भी प्रत्याशी पसंद नहीं आ रहा है तो नोटा का उपयोग किया जावे। नोटा का उपयोग किसी के कहने से किसी की नाराजगी से या अन्य कारणों से नहीं करना है। बस यह ध्यान रखना है कि सवज़्श्रेष्ठ नेतृत्व मिलना तो असंभव है लेकिन गलत को भी नहीं चुनना है। चुनाव करने की ताकत तो महत्वपूर्ण है ही पर नकारने की ताकत भी कम नहीं है। इसलिए हमें रिजेक्ट करना भी सीखना होगा, तभी कीचड़ में हमारे कमल खिलेंगें तभी हमारे पंजे मजबूत होंगें तभी हमारी झाडू कचरा साफ करेगी, अन्यथा यह राजनीति हमें झुनझुने की तरह बजाती ही रहेगी।

वे मुतमइन है कि, पत्थर पिघल
नहीं सकता, मैं बेकरार हूँ आवाज
में असर के लिए।

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