इंदौर का गौरव थी कपड़ा मिलें
यूरोप से आईं मशीनों को अदालती आदेश का बहाना बनाकर मुंबई में जब्त कर लिया गया था
इंदौर। ( मेहबूब कुरैशी ) मालवा का कपास अपनी उच्च गुणवत्ता के लिए पूरी दुनिया में मशहूर था। इंगलैण्ड और कई यूरोपीय देशों में ये कपास जाता था और वहां मिलों में कपड़ा बनाया जाता था। देश के अंग्रेज अफसर यहीं के कपास से बने कपड़ो को ज्यादा तरजीह देते थे। महाराजा तुकोजीराव (द्वितीय )कुशल व्यापारिक सोच रखते थे। १८६० के बाद नगर की अबादी तेजी से बढ़ रही थी। उस समय अंग्ऱेज रेजीडेंस एच.डी. डैली से महाराजा के अच्छे रिश्ते थे। महाराजा ने उनके सामने सरकारी कपड़ा मिल स्थापित करने पस्ताव रखा, रेजीडेट ने ये प्रस्ताव अंग्रेजी सरकार को भेजा और वह स्वीकृत हो गया हांलाकि अंग्रेजी शासन अब भी यह नहीं चाहता था कि इंदौर ही में कपड़़ा मिले स्थापित की जाएं। इसलिए जब ब्रिटेन से मिलों की मशीने लाईं गई तो उन्हे मंबई बंदरगाह पर जब्त कर लिया । इसके लिए सरकार ने मुंबई उच्च न्यायालय के एक आदेश का बहाना बनाया था और कहा था कि अदालत द्वारा पारित डिक्री की वजह से यह $कार्रवाई की गई है। कुछ दिनों तक मामला उलझा रहा लेकिन अंत में मशीनों को छोड़ दिया गया। अफीम की वजह से इंदौर पहले ही एक व्यापारिक केंद्र बन चुका था। यहां अफीम का व्यापार भारी मात्रा में होता था । कपड़ा मिल के स्थापित हो जाने के बाद इंदौर को नई ऊंचाई मिली और विकास में भी इन मिलों ने सबसे बड़ी भूमिका अदा की। कपास की उन्नत खेती की वजह से यहां के कप़ड़़े की मांग पूरे देश में बढ़़ने लगी। कपड़़ा मिलों से होने वाली आय से महाराज को भी बड़़ा फायदा हो रहा था। इसलिए १८६६ में स्थापित एक मिल के बाद १८८३ में दूसरी सरकारी मिल की स्थापना की गई। मिलों का निर्माण ठाकूरलाल मुंशी और गोपाल राव घापरे ने किया था। इन मिलों का पहला अधीक्षक अंग्रेज अधिकारी श्री ब्रूम को बनाया गया था। १८७७ में एक नए अधिकारी श्री फोनविक ने इन मिलों की जिम्मेदरी संभाली । १९वी सदी की शुरूआत तक नगर में स्थापित दोनो मिलें सरकारी थी। इसके बाद सबसे पहले मुंबई की कंपनी ने इंदौर मालवा युनाईटेड मिल्स लि. की स्थापना की। यह मिल १९०९ में स्थापित की गई थी। इसे बाद एक ही दशक में पांच और कपड़़ा मिलें इंदौर का सुनहरा भविष्य बन गई। १९१६ में हुकुमचंद मिल, १९२१ में स्वदेशी मिल, १९२३ में $कल्याण मिल , १९२४ में राजकुमार मिल और १९२४ में भंडारी मिल की स्थापना हुई।
इंदौर कपड़ा व्यापर को बढ़ाने में चीनी क्रांति का बड़ा हाथ