बुलंद आवाज के धनी और महान कलाकार थे वे…

1951 में उन्होंने मल्हार आश्रम में नाटक मंचन किया था

इंदौर। 29 मई को एक बुलंद आवाज़ के धनी, रंगमंच और फिल्मों के महान कलाकार ‘पृथ्वीराज कपूर साहबÓ की पुण्यतिथि है, जिन्हें पूरा सिनेमा जगत और दर्शक प्यार और सम्मान से ‘पापाजीÓ कहकर पुकारता है। पापाजी का जन्म सन् 1906 में अविभाजित भारत के ‘पेशावरÓ मे हुआ था।
अभिनय करने की ललक उन्हें सन 1927 में मुम्बई ले आयी, जब उनकी आयु थी केवल 21 वर्ष, विवाहित होकर एक पुत्र के पिता बन चुके थे। भारतीय सिनेमा को जन्म लिये हुए केवल 14 वर्ष बीते थे, तब अपने आप को पेशावरी हिन्दु पठान कहने वाले ‘पृथ्वीराज कपूर साहबÓ एक अनजाने महानगर मुंबई में आ गए। पृथ्वीराज साहब ने अपने अभिनय की शुरुआत मूक फिल्मों से की। हमारे देश की पहली बोलती फिल्म ‘आलम आराÓ में सहायक अभिनेता की भूमिका निभाने का अवसर मिला। उन्हें स्टार का दर्जा मिला।
न्यू थियेटर कलकत्ता की फिल्म ‘सीताÓ से, इसके बाद उन्होंने पीछे पलटकर नहीं देखा, और लगातार सफलता की सीढ़ियों पर बढ़ते चले गए।
अपने कैरियर के स्वर्णकाल में उन्हें पारिश्रमिक के रूप मे बडी रकम मिलने लगी। पापाजी ने ये रकम अपने पास जमा नही की और ना ही अपने शौक मौज में खर्च की। उन्होंने ये सारी रकम ‘रंगमंचÓ की सेवा में लगा दी। पृथ्वी थियेटर में दो हजार से ज्यादा नाटक खेले गए।
अपने नाटको के प्रदर्शन के सिलसिले में अपनी ‘पृथ्वी थियेटरÓ की टीम के साथ हमारे शहर ‘इन्दौरÓ में सन् 1951 में आये थे। उनके आवास की व्यवस्था शहर की प्रमुख शिक्षण संस्था ‘मल्हार आश्रमÓ के छात्रावास भवन में की गई थी।


आपके अभिनय से सजी कुछ फिल्में है- विद्यापति, सीता, आलमआरा, राजरानी मीरा, पैसा, सिनेमा गर्ल, पागल, मंजिल, सपेरा, उजाला, आंख की शरम, ईशारा, महारथी कर्ण, वाल्मीकि, देवदासी दहेज, आवारा, आनंद मठ, मुगले आजम, सिकंदर ए आज़म, तीन बहुरानिया, जिंदगी, राजकुमार, जानवर, हिर रांझा, एक नन्ही मुन्नी लड़की थी, कल आज और कल आदि।
सन् 1972 में ‘पापाजीÓ को भारत सरकार द्वारा मरणोपरांत ‘दादा साहब फाल्के अवार्डÓसे सम्मानित किया था।
पापाजी पृथ्वीराज कपूर साहब को विनम्र श्रद्धांजलि।
-सुरेश भिटे

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