72 वर्षीय शिक्षाविद ने 25 एकड़ बंजर जमीन पर 33 हजार पौधे रोपे, लाए खुशहाली
केसर, कश्मीरी सेब, चैरी, फालसा, सिंदूर, स्ट्रॉबेरी, काजू, बादाम, लौंग इलाइची, ड्रैगन फ्रूट, अंजीर के साथ ही अनेक प्रकार के 33 हजार पौधे रोपे
इंदौर (धर्मेन्द्रसिंह चौहान)। भारत में कश्मीर से कन्याकुमारी तक पाए जाने वाले नामी वृक्षों को बंजर भूमि में लगाकर अनोखी मिसाल दी हैं, सुप्रसिद्ध शिक्षाविद व दो कॉलेजों में प्रेंसिपल रह चुके शंकरलाल गर्ग ने। लगन से किए गए हर कार्य में सफलता जरूर मिलती है। 33 हजार पौधों का 43 डिग्री सेल्शियस में पोषण कर इन्हें छायादार पेड़ कैसे बनाया जा सकता है। यह इनकी कड़ी मेहनत और लगन का ही नतीजा है, कि इस पथरीली पहाड़ी पर रंगबिरंगे फूलों की फुलवारी के साथ दर्जनों प्रजाति के फलदार वृक्ष खूब फल फूल रहे है। यहां पत्थर के फूल नही पत्थरो में उग रहे है फूल।
सुप्रसिध्द शिक्षाविद द्वारा एक बंजर पहाड़ी पर भारतवर्ष में पाए जाने वाले प्रमुख वृक्षों को पौधों के रूप में लगाकर उन्हें वृक्ष का रूप दे रहे हैं। 5 डिग्री में लगने वाले वाला जैतून के पौधे यहां 43 डिग्री में भी लहलहा रहे है। इनका जज्बा ऐसा हैं कि 25 एकड़ बंजर पहाड़ी पर चारों तरफ हरियाली की चादर बिछा दी। चैरी, फालसा, स्ट्रॉबेरी, काजू, बादाम, केसर, इलाईची, लोंग ड्रेगन फ्रूट, अंजीर के साथ ही पूरे भारतवर्ष में पाए जाने वाले सागवान, शिसम, देवदार, अंजीर, शहतूत, खिरनी, आम,जाम, जामून के साथ ही पुत्राजीवा जैसे वृझों के पौधों को लगाकर पूरी पहाड़ी को हरा-भरा कर दिया। साथ ही पहाड़ी पर इन्होंने केसर की एक फसल प्रयोग के तौर पर ले चुके है। जब इस पहाड़ी से केसर की सुगन्ध दूर-दूर तक फैलने लगी तो आस-पास के लोगों ने भी इसका नाम केसर पर्वत रख दिया।
फल नही खाना पेड़ लगाना ही उद्देश्य को लेकर चलने वाले शिक्षाविद व पूर्व प्रचार्या ने जामली के पास 25 एकड़ बंजर भूमि सिर्फ इसलिए खरीदी थी कि वहां पर स्कूल या कॉलेज बनाया जाए। येन-क्रेन प्रकरण जब मन की मन में ही रह गई तो उन्होंने सोचा कि भगवान ने उनके लिए कुछ अलग ही सोच कर रखा हैं। कर्मण्ये वाधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचना को इन्होंने चरितार्थ करते हुए वहीं किया जो ईश्वर ने उनसे करवाया। अपने पास की सारी जमा पूंजी को इन्होंने इसी बंजर पहाड़ी पर लगा कर उसे हरियाली की चादर औढ़ा दी।
गर्ग सर ने इसकी शुरूआत 400 पौधे लगाकर की थी इसके लिए इन्होंने 400 रूपए से लेकर 800 रूपए तक में पानी के टैंकर खरीद कर इन पौधों की प्यास भरी गर्मी में बुझाई। इससे इन पौधों ने जल्द ही वृक्षों का रूप ले लिया। बस यहीं से उन्होंने इस पहाड़ी पर 50 हजार पौधों को लगाने का लक्ष्य रख आगे बढ़ते गए। वर्तमान में यहां पर 33 हजार पौधें वृक्ष का रूप लेकर अपनी हरियाली के साथ ही अपनी सुगन्ध चारों और फैला रहे हैं। जिससे पूरी पहाड़ी पर चारों और हरियाली दिखाई देने लगी। गर्ग सर के जुनून का ही यह नतीजा है कि ठंडे प्रदेशो में 5 डिग्री सेल्सियस में पाए जाने वाले जैतून का पौधा यहां 43 डिग्री में भी लहलहा रहा है। इसी तरह मध्यप्रदेश में केसर की खेती तो बहुत जगह की गई मगर कही भी किसी को भी सफलता हांसिल नही हुई। मगर इनकी मेहनत से बंजर जमीन पर लगाई गई केसर भी खूब फूली फली। यही कारण था कि बंजर पहाड़ी से केसर की खुशबू चारो तरफ फैलने से आसपास के लोगो ने इसका नाम केसर पर्वत रख दिया।
पहाड़ी पर बना दिया तालाब
पहाड़ी पर लगाए पौधों की प्यास बुझाने के लिए शुरूआत में पानी खरीदना पड़ा। इसके बाद इन्होंने दो सौ बाय दो सौ फिट का 15 फिट गहरा तालाब खुदवाया जिसमें बारिश का पानी जमा कर गर्मी के दिनों में पौधों को दिया जा रहा हैं। तालाब से पानी रिसे नहीं इसलिए इन्होंने पूरे तालाब में 5 लाख का प्लास्टिक बिछाया। इसके बाद हर पौधे को ड्रीप के जरिए पानी दिया जाने लगा। इसके लिए उन्होंने दस हजार लिटर पानी की दो टंकियां इस तरह रखी हैं जिससे बगैर बिजली के हर पौधे में पानी अनवरत पहुंच सके।