हाउसिंग बोर्ड और जिला प्रशासन के बीच नंदानगर के रहवासी फुटबाल बन गये…

नहीं हो पा रहा मकानों का नामांतरण, सौ से अधिक फाईलें कलेक्टर के द्वार उलझी हैं

इंदौर। नंदानगर के २०० से अधिक परिवार गृहनिर्माण मंडल और जिला प्रशासन के बीच पिछले कई वर्षों से फुटबाल की तरह खेले जा रहे हैं। जिला प्रशासन के अधिकारी गृहनिर्माण मंडल के अधिकारियों के कार्यों में त्रुटि निकालकर फाईलों को उलझा रहे हैं। इधर गृहनिर्माण के अधिकारियों का कहना है कि प्रशासनिक अधिकारी ऐसे मामलों में अड़ंगे लगा रहे हैं जिनसे उनका कोई लेना देना नहीं है। दो साल पहले पदस्थ एक एडीएम ने यहां की नामांतरण की फाईलों को यह कहते हुए रोक दिया था कि नामांतरण के लिए दी गई शर्त में कहा गया है कि इन मकानों का नामांतरण मजदूरों के नाम पर ही होगा। जबकि यह शर्त केवल दस वर्षों के लिए थी। अभी भी यहीं अड़ंगे लगाकर फाईलें रोकी जा रही है। सौ से अधिक परिवार नामांतरण न होने के कारण अपने मकानों का बंटवारा और परिवार के लिए बैंकों से लोन भी नहीं ले पा रहे हैं। प्रशासन के अधिकारी पूरा मामला कलेक्टर पर ढोल रहे हैं।
१९५८ में बसे नंदानगर में १६२० मकान पट्टे पर गृहनिर्माण मंडल ने ३० साल की लीज पर दिये थे। इनमे से कई मकानों की लीज समाप्त हो रही है। जबकि कई लीज समाप्त होने के बाद भी नामांतरण नहीं हो पा रहा है। चार साल पहले तक नामांतरण को लेकर कोई दिक्कत नहीं थी। गृहनिर्माण मंडल पूरे दस्तावेजी प्रक्रिया के बाद जिला प्रशासन के पास नामांतरण के लिए आवेदन भेजता है। इसके बाद भी यहां पर एक साल से अधिक समय से फाईलें झूल रही है। यहां पर पदस्थ रहे प्रत्युल सिन्हा ने कई फाईलें यह कहते हुए वापस कर दी थी कि लीज की शर्त में नामांतरण मजदूरों के नाम पर ही किये जाने के लिए लिखा गया है। जबकि गृहनिर्माण निर्माण मंडल का कहना है कि यह शर्त केवल दस वर्षों के लिए थी अब पूरे नंदानगर में मिले बंद होने के बाद मजदूर नाम की प्रजाति ही समाप्त हो गई है। कई परिवारों के बच्चे अन्य कार्यों में लग गये हैं। प्रशासनिक अधिकारी अभी भी मजदूरों के नाम पर ही नामांतरण के लिए अड़े हुए हैं। गृहनिर्माण मंडल के अधिकारी कह रहे हैं कि नामांतरण के पहले पूरे दस्तावेजों की जांच मंडल के नियमों के आधार पर किये जाने के बाद जाहिर सूचना का प्रकाशन होने के उपरांत ही जिला प्रशासन को भेजी जाती है। इसके बाद जिला प्रशासन का एक अधिकारी भी मौका मुआयना करता है। उसके बाद नामांतरण का आवेदन की प्रक्रिया शुरु होती है। सौ से अधिक फाईलें कलेक्टर में पड़ी हुई हैं। कई परिवारों के लोग उलझे हुए हैं तो कई परिवारों में विभाजन नहीं हो पा रहा है। इस मामले में क्षेत्रीय विधायक रमेश मेंदोला ने भी नंदानगर के सौ परिवारों को ले जाकर कलेक्टर मनीष सिंह से सीधी चर्चा करवाई थी। इसे भी दो साल हो गये। इसके बाद भी फाईलें उलझी हुई है। जवाबदार अधिकारी अपना पल्ला झटकते हुए यह कहते हुए देखे जा सकते हैं कि फाईल कलेक्टर के पास गई है जब आयेगी तब कर देंगे।

अजीब वाकया
पिछले दिनों इस क्षेत्र में पाटीदार नाम के व्यक्ति द्वारा खरीदे गये एक मकान के नामांतरण में फाईल ४८ घंटों में ही सारे दरवाजे पार करती हुई अपने स्थान पर पहुंच गई और नामांतरण भी हो गया। इस फाईल के लिए पुलिस विभाग के इंदौर के सबसे बड़े अधिकारी ने फोन लगाया था। कलेक्टर में इस बात की चर्चा है कि उक्त अधिकारी से रिश्ते हो तो दो घंटे में फाइल का नामांतरण हो जाएगा।

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