गुडी पडवा : 30 हजार किलो श्रीखंड की खपत आज नववर्ष पर होगी

मौसम में हर दिन 3000 किलो श्रीखंड का कारोबार होता है

Gudi Padwa: 30 thousand kilos of Shrikhand will be consumed today on New Year.

इंदौर (बंशी ललवानी) श्रीखंड नाम आते ही स्वत: दो बातें जहन में आती है। गुडी पडवा एवं महाराष्ट्रीयन समाज लेकिन आपकों यह जानकर आश्चर्य भी हो सकता है कि भारत की आजादी के वर्षों के दौरान श्रीखंड राजस्थान से गुजरात होते हुए इंदौर आया एवं इसका काफी कुछ श्रेय इंदौर के नीमा समाज को दिया जा सकता है। भारताीय पाकशास्त्र में ऋतुओं के अनुसार खान पान में नववर्ष या गुडी पडवा से ग्रीष्म ऋतु के अनुसार लिए जाने वाले खाद्य पदार्थों में सर्वप्रथम नाम श्रीखंड का ही है। कहते हैं श्री नाथद्वार मंदिर में ऋतु परिवर्तन के समय प्रथम भोग के रूप में श्रीखंड के प्रसाद की परम्परा है। पुष्टिमार्ण धर्मधारा में समाहित इंदौर का नीमा समाज सर्वप्रथम अपने धार्मिक एवं सामाजिक भोज के कार्यक्रमों में श्रीखंड लाकर इसे सर्वमान्य एवं लोकप्रिय बनाया। वैसे जानकारी यह भी है कि इंदौर से पहले यह गुजरात की पारंपारिक ग्रीष्ण मिठाई के रूप में लोकप्रिय हो गया था।
इंदौर के प्राचीनतम दुग्ध विक्रेताओं में शुमार शंकर दूध भंडार के संचालक स्व. शंकरलाल शर्मा की नीमा समाज से निकटता के चलते वे नीमा समाज की धर्मशाला में स्वयं जाकर चक्का जमाने एवं श्रीखंड बनाने का कार्य किया करते थे। श्रीखंड किसी समय सीजनल मिठाई हुआ करता था। वर्तमान व्यावसायिक युग में कई राष्ट्रीय एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा सदृढ मार्केटिंग के जरिये इसे बारहमासी स्वरूप दे दिया है। एक अनुमान के अनुसार इंदौर में छोटे-बडे दुग्ध व्यावसायियों की संख्या लगभग 550 के आसपास है। श्रीखंड एवं चक्के का व्यापार आमतौर पर 3000 किलो प्रतिदिन का है, लेकिन गुडी पडवा के लिए उपभोक्ताओं की मांग लगभग 10 गुना बढ़ जाती है। यानि वर्ष प्रतिपदा के अवसर पर इंदौरी लगभग 30,000 किलो श्रीखंड खा जाते है। त्योहार के अवसर पर इंदौर में 200 किलो श्रीखंड का उत्पादन करने वाली लगभग 100 इकाइयां है, इनमें से अधिकतर सिर्फ चक्के का उत्पादन करती है। तैयार श्रीखंड में राष्ट्रीय एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों की व्यवसायिक सहभागिता अब बढकर 20 प्रतशित हो चुकी है। बिखरते सामाजिक ताने-बाने एवं फास्ट फूड के बढते चलन का असर साफतौर पर श्रीखंड कीलोकप्रियता पर पड़ता दिख रहा है।
इस वर्ष चक्के का भाव क्वालिटी अनुसार 230 से 260 रुपए प्रति किलो तक है, जबकि तैयार श्रीखंड 300 से 400 रुपए प्रतिकिलो है। दुग्ध व्यवसायी महेश शर्मा से मिली तकनीकी जानकारी मिली कि एक लीटर अच्छी क्वालिटी के दूध से लभगग 300-350 ग्रााम तक चक्का मिलता है। एक किलो चक्के में आवश्यकता अनुसार 400 ग्राम से 700 ग्राम तक शक्कर मिलाई जा सकती है। तैयार श्रीखंड मेें इलायची एवं केसर का मिश्रण होने सन इसे लगभग 15 दिन तक उपयोग में लाया जा सकता है। त्योहारी मांग के अनुसार इसके निर्माण में लगभग दो दिन का समय लगता है। कपड़े या नायलोन के थैलों में दही डालकर लगभग 15 से 20 घंटे तक इसे लटकाकर रखा जाता है। श्रीखंज बनाने की बाकी प्रक्रिया बहुत श्रमसाध्य है, क्योंकि इसे लट्ठे से रगडकर तब तक छाना जाता है जब तक कि दही के रेश एवं दाने एकसार न हो जाए। तत्पश्चात इसमें केसर एवं इलाचयी मिलाकर ठंडा करने के लिए बर्फ में रखा जातै ह। नगर के पुराने एवं प्रतिष्ठित दुग्ध व्यवसायियों को आज भी अपने परम्परागत ग्राहकों की अग्रिम मांग एक सप्ताह पूर्व आना शुरू हो जाती है। चक्के के व्यवसाय का एक महत्वपूर्ण अंग डेयरी व्यवसायी भी है, लेकिन स्वाद एवं गुणवत्ता की दृष्टि से। तैयार श्रीखंड में इलायची एवं केसर का मिश्रण होने से इसे लगभग 15 दिन तक उपयोग में लिया जा सकता है। त्योहारी मांग के अनुसार इसके निर्माण में लगभग दो दिन का समय लगता है। कपड़े या नायलोन के थैले में दही डालकर लगभग 15 से 20 घंटे तक इसे लटकाकर रखा जाता है। श्रीखंड बनाने की बाकी प्रक्रिया काफी श्रमसाध्य है। क्योंकि इसे लट्ठे के कपड़े से तब तक हाथों से रगड़कर छाना जाता है। जब तक कि दही के रेशे एवं दाने एकसार न हो जाए। तत्पश्चात इसके केसर एवं इलायची मिलाकर ठंडा करने के लिए बर्फ में रखा जाता है। नगर के पुराने एवं प्रतिष्ठित दुग्ध व्यवसायी को आज भी अपने परम्परागत ग्राहकों की अग्रिम मांग एक सप्ताह पूर्व आना शुरु हो जाती है। चक्के के व्यवसाय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा डेयरी व्यवसायी भी है, लेकिन स्वाद एवं गुणवत्ता की दृष्टि से समझौता न करने वाले ग्राहक पारंपरिक तरीके से बनाए गए चक्के एवं श्रीखंड में ही विश्वास जताते है, क्योंकि डेयरी के चक्के में क्रीम निकाले गए दूध का प्रयोग होता है, जिससे श्रीखंड की गरिष्टता खत्म जैसी हो जाती है। जनजन तक पहुंच रखने वाला श्रीखंड अभी भी महाराष्ट्रीयन समाज के लिए विशेष मायने रखता है। गुड़ी-पड़वा की पूजा एवं प्रसाद के लिए करीब हर घर में इसे हाथों से बनाया जाता है। सुबह नीम-गुड़ के साथ घर के बाहर गुड़ी बांधने के पर्व का अंत शाम को गुड़ी उतारने एवं श्रीखंड भजिए के आनंद के साथ होती है। जाते-जाते अगर आप श्रीखंड खाने का आनंद ले रहे है तो ध्यान रहे आप भी 100 ग्राम श्रीखंड खाकर भारत सरकार के राजस्व में 1.50 से 2 रु. की बढ़ोत्तरी कर रहे है। क्योंकि श्रीखंड भी 5 प्रतिशत जीएसटी के लपेटे में है। लगभग 10 गुना बढ़ जाती है, यानि वर्ष प्रतिपदा के अवसर पर इंदौरी 30000 किलो श्रीखंड खा जाते है। त्योहार के अवसर पर इंदौर में 200 किलो श्रीखंड का उत्पादन करने वाली लगभग 100 इकाइया है इनमें से अधिकतर सिर्फ चक्के का उत्पादन करती है। तैयार श्रीखंड में राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय कंपनियों की व्यवसायिक सहभागिता अब बढ़कर लगभग 20 प्रतिशत हो चली है। बिखरते सामाजिक ताने-बाने एवं फास्ट फूड के बढ़ते चलन का असर साफ तौर पर श्रीखंड की लोकप्रियता पर पड़ता दिख रहा है। इस वर्ष चक्के का भाव क्वालिटी अनुसार 230 रुपए से 260 रुपए किलो तक है। जबकि तैयार श्रीखंड 300 से 400 रुपए किलो है। दुग्ध व्यवसायी महेश महेश शर्मा से एक तकनीकी जानकारी मिली कि एक किलो अच्छी क्वालिटी के दूध से लगभग 300-350 ग्राम चक्का तैयार होता है। एक किलो चक्के में आवश्यकता अनुसार 400 ग्राम से 700 ग्राम तक शक्कर मिलाई जा सकती है।

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