अजब गजब समाचार

माया का अतीत सर्वविदित है,तिलक तराजू और तलवार,इनको मारो….. चार।वती का शब्दार्थ होता है प्रकृति।अब माया की प्रकृति परिवर्तित हो रही है।माया अब तिलकधारियो अर्थात विप्रो का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आतुर हो गई है। समाजवाद के नाम पर राजनीति करने वाले यदुवंशी अखिलेश्वर भी विप्रों को लुभाने के लिए प्रयत्नशील हो रहें हैं।
महामारी से जनता को राहत पहुँचाने के लिए कुछ राज्यों में ताले पूर्ण रूप से खोल दिए हैं।कुछ राज्यों में ताले झुकाकर ही रखें हैं?
पूर्वोत्तर राज्यों की लड़ाई बहुत ही आश्चर्यजनक है।केंद्र और इन दोनों ही राज्यों में तीनों जगह कमल खिंला हुआ है।बावजूद पारस्परिक हिंसक लड़ाई गम्भीर प्रश्न है?
यह घरेलु झगड़ों को गृह विभाग के सर्वेसर्वा मिटा सकतें हैं।अमित का शाब्दिक अर्थ होता है बेहद।पूर्वोत्तर राज्यों की आपसी लड़ाई तो देश की सीमा के हद में ही हो रही है?शायद निगरानी में कुछ कमी रह गई होगी? जानकारों का कहना है पूर्वोत्तर राज्यों की लड़ाई सौ साल पुरानी है,सम्भवत: यह बात सच ही हो सकती है?सत्तर वर्षों तक देश में कुछ हुआ ही नहीं है?
सामाचारों में कावड़ यात्रा का भी जिक्र हो रहा है।शिवजी के भक्त शिवजी का पवित्र नदियों के जल से अभिषेक करना चाहतें हैं,तो करने देना चाहिए यह आस्था का प्रश्न है।आस्थाओं पर कानूनी नियंत्रण उचित नहीं हैं?आस्था को सार्वजनिक रूप दर्शाने के लिए ही तो महामारी के चलते ही कुम्भ का आयोजन करने साहसिक निर्णय लिया गया था?
देश में एक ओर क्चक्करु ( क्चद्गद्यश2 श्चशद्गह्म्ह्ल4 द्यद्बठ्ठद्ग)अर्थात गरीबी के रेखा के नीचे खड़े होने वालों की कतार बढ़ते ही जा रही है,दूसरी ओर अपने ही देश में ढ्ढक्करु अर्थात ढ्ढठ्ठस्रद्बड्डठ्ठ श्चह्म्द्गद्वद्बद्गह्म् द्यद्गड्डद्दह्वद्ग हिंदी में भारतीय प्रधान संघ नामक क्रिकेट मैच आयोजित करने में कोई संकोच नहीं किया जाता है।यह ढ्ढक्करु खेल अरबों खरबों रुपयों का खेल होता है।खरबो में कितने शून्य आतें हैं, यह ज्ञात करने की क्षमता अच्छे कु पात्रों में नहीं है?
पूर्व में आशातीत सफलत के बाद समूचे राष्ट्र को ममतामयी बनाने पहल शुरू हो गई है।अब देश में खेला होगा?
सामाचार जगत में अजबगजब स्थिति बन रही है कोई गोदी में बैठ कर समाचार गढ़ रहा है।कोई सत्य प्रकट करने की सजा पा रहा है।
बिहार में जाति गत जनगणना करने का निर्णय लिया जा रहा है?
यह एक साहसिक निर्णय हो सकता है।समाजवादी विचारों के अनुरूप निर्णय है।यह राष्ट्रीय स्तर बहस का मुद्दा है?
स्वार्थ पूर्ति की राजनीति ने सभी की स्मृति मलिन हो रही है।
अगले वर्ष अर्थात सन 2022 में 15 अगस्त को देश को आजाद होकर पिचहत्तर वर्ष पूर्ण हो रहें हैं।इन पिचहत्तर वर्षो में जो शून्य सत्तर वर्ष हैं, उनकी गणना कैसे की जाए यह बहस का नहीं विवादित विषय है।इसे यहीँ समाप्त करतें हैं।
शशिकांत गुप्ते

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