पुष्यमित्र से पहले डेली कॉलेज के प्रोफेसर जुत्सी भी बने थे महापौर

गैर राजनीतिक चेहरा दूसरी बार संभालेगा इंदौर

इंदौर। (मेहबूब कुरैशी ) भार्गव इंदौर के २४ वें महापौर चुने गए है। वह दूसरे ऐसे गैर राजनीतिक चेहरा है जो इंदौर की बागडोर संभालेंगे। इससे पहले १९६२ में डेली कॉलेज के प्रोफेसर भी शहर के ममहापौर बनाए जा चुके है। १९५८ में इंदौर नगर निगम के वीधिवत गठन के बाद अब तक शहर को २४ महापौर मिल चुके है। इन ६५ सालों में कई बार ऐसा भी हुआ कि कानूनी अड़चनों के कारण शहर पर नोकरशाही का राज रहा।१९७० से ८३ तक नगर निगम के चुनाव नहीं हो सके थे। इसके बाद १९८७ के बाद एक बार फिर लोकतंत्र की इस प्रक्रिया को रोक दिया गया। फिर १९९४ में ही चुनाव हो सके। आजादी के बाद शुरूआत के दो नगरीय निकाय चुनाव में कांगस को बहुमत मिला और उसी का महापौर भी बना। लेकिन १९५८ के निगर निगम चुनाव में कम्यूनिस्ट नेता होमी दाजी के बनाए गए नागरिक मोर्चा नें कां$ग्रेस से परीषद छीन ली और कांगस को विपक्ष में बैठना पड़ा । १९५८ से १९६५ तक नागरिक मोर्चा ने हर साल महापौर बनाए। इसी कड़ी में डेली कॉलेज के शिक्षक प्रोफेसर आरएन जुत्सी भी महापौर बने । प्रोफेसर $जुत्सी १९५८ में नगर निगम में मनोनित हुए थे। वह १९६० से ६२ तक उप महापौर रहे और फिर एक साल के लिए महापौर बनाए गए।

धीरे-धीरे बढ़ती गई वार्डो की संख्या

१८५० के पहले नगर पालिका चुनाव में शहर में ४० वार्ड थे। शहर की आबादी धीरे – धीरे बढ़ती गई और वार्डो की संख्या में भी इजाफा करना पड़ा। १९५६ के चुनाव में वार्डो की संख्या को ६० कर दिया गया। १९७० के बाद शहर के चुनाव कानूनी उलझनों का शिकार हो गए और १३ साल तक नगरीय निकाय चुनाव नहीं हो सके। १९८३ में एक बार फिर चुनाव हुए उस समय शहर में वार्डो की संख्या बढ़ाकर ६९ कर दी गई थी। १९१५ में एक बार फिर वार्डो की संख्या में इजाफा किया गया। ८५ वार्ड कर दिए गए। इसी समय शहर में वार्डो के आरक्षण की भी प्रक्रिया शुरू हुई। महिला,अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए पृथक वार्ड के लिए आरक्षण किया जाने लगा। इससे पहले १९९९ में भी नगरीय निकाय चुनाव में एक बड़ा फैरबदल किया गया था। तब तक शहर का महापौर पार्षदों द्वारा चुना जाता था। लेकिन इसी साल से शहर की जनता को ही यह अधिकार दिया गया कि वह खुद महापौर चुनेगी। रोचक तथ्य यह हे कि जब से इंदौर का महापौर जनता चुन रही है तब से लेकर आज तक शहर का महापौर भाजपा का चुना जाता रहा है।

मालिनी गौड़ के नाम है सबसे ज्यादा वोटो से जीतने का रिकार्ड


१९९९ से पहले तक इंदौर में महापौर का चुनाव पार्षद ही करते थे। लेकिन चुनाव प्रक्रिया में लागू नए कानून के मुताबिक यह अधिकार सीथे जनता को दे दिया गया। और तब से लेकर अब तक जनता ही महापौर चुनते आ रहे है। हालाकि कमलनाथ सरकार ने इसे बदल दिया था लेकिन शिवराज ने फिर इस कानून को यथावत रखा। ९९ से अब तक पांच महापौर चुने गए है। इनमें सबसे ज्यादा वोटों से जीतने का रिकार्ड विधायक मालिनी गौड़ के नाम है जिन्होने कांग्रेस की अर्चना जायसवाल को दो लाख ४६ हाजार ५९६ वोटो से शिकस्त दी थी।

वरिष्ठ श्रमिक नेता को विधानसभा चुनाव हराकर चर्चित हुए थे कामरेड होमी दाजी
नगरीय निकाय चुनाव उठाया सायकल टैक्स का मुद्दा और जीत ली परिषद


कम्यूनिष्ट नेता होमी एफ दाजी शुरू से ही मजदूरों की लड़़ाई लड़़ने लड़़ने के लिए जाने जाते थे। अपनी कुशल वक्तव्य शैली की वजह से वह आम लोगों के नेता कहे जाते थे। १९५७के विधानसभा चुनाव में उन्होने जाने माने श्रमिक नेता गंगाराम तिवारी को हराया था। इसके बाद उनकी ख्यति और भी बढ़़ गई थी। उनके साथियों ने १९५८ के नगरीय निकाय चुनाव में अपना अलग मोर्चा लड़़ाने की मांग की जो उन्होने मान ली। इन चुनाव में कांग्रेस को शिक्स्त देकर नागरिक मोर्चा ने परिषद पर अपना कब्जा कर लिया था। पुरोषत्तम विजय, कामरेड हरिसिंह,सुरेनद्र नाथ गुपता , रणछोर रंजन,बालाराव इंग्ले,नारायण प्रसाद शुक्ला,वासुदेव राव लोखंडे आदि नेता होमी दाजी के सबसे करीबी थे । ये सभी नेता चुनाव भी चीते थे। इन चुनावों में होमी दाजी ने सायकल टैक्स का मुद्दा जमकर उठाया था। उस समय एक रू. से भी कम सालाना टैक्स वसूला जाता था। १९४४-४५ में इस टैक्स से शासन ने २० हजार रू वसूले थेवही १९४५-४६ में २१ हजार रू का राजस्व प्राप्त किया था।

इंदौर में पहली बार कर्फ्यू ……और कई छात्र नेताओं का हुआ जन्म


आजादी के बाद इंदौर में छात्रों का पहला बड़ा आंदोलन १९५० में हुआ था। इसी आंदोलन ने शहर को कई बड़े नेता दिए। नगरीय निकाय चुनाव में कई छात्र नेताओं ने अपना भाग्य आजमाया और पार्षद चुने गए। छात्र आंदोलन इस घटना से पूरे देश में शहर की आलोचना भी हुई थी क्योंकि छात्रों का यह आंदोलन हिंसा का शिकार हो गया था। छात्रों को काबू करने के लिए प्रशासन को कर्फ्यू भी लगाना पड़ा था। आजादी के बाद इंदौर की जनता ने पहली बार इस कर्फ्यू का सामना किया था।
घटना होलकर कॉलेज से जुड़ी हुई है । यहां के प्राचार्य हरजीवन घोष का छात्रों में बड़ा सम्मान था। सालों तक कॉलेज के प्राचार्य रहने के बाद घोष सेनिवृत्त हुए थे। कालेज के छात्र नहीं चाहते थे कि प्राचार्य की सेवा को समाप्त किया जाए । छात्र चाहते थे कि उनका कार्यकाल और बढ़ाया जाए। अपनी इसी मांग को लेक छात्रों ने हड़ताल शुरू कर दी थी। उसी समय देश के शिक्षा मंत्री नरसिंहाराव दीक्षित भी दौरे पर आए हुए थे।

छात्र उनसे मुलाकात की मांग करने लगे। जब छात्रों की भीड़ उनसे मुलाकात करने के लिए मोती बंगला ( वर्तमान में कमिश्रर कार्यलय) पहुंची तो छात्र उग्र हो गए। इस दौरान छात्रों ने जमकर तोड़़फोड़़ और आगजनी की। तब अधिकारियों की सहमति के बाद इंदौर में कर्फ्यू लगाना पड़़ा। यह पहला अवसर था जब इतनी बढ़़ी घटना शहर में घटी थी और पूरे शहर को बंद करना पड़़ा था। इसी छात्र अंदोलन के कारण शहर को कई छात्र नेता मिले थे जो बाद में बड़़े नेता बने। छात्रों के इस आंदोलन की बागडोर छात्र नेता नरेंद्र पोटोदी,, सुरेंद्र नाथ गुप्ता, नारायण प्रसाद शुक्ला,सरदार शेहसिंह , कन्हैयाया लाल यादव,गोपीकृष्ण गोहर बालकृष्ण गोहर, यज्ञ दत्त शर्मा आदि के हाथों में थी और इनमें से कई नेता बाद में शहर के पार्षद भी बने।

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