200 टन रंग और गुलाल से मनेगा इस बार रंगों का त्यौहार

महंगाई का तड़का भी, कम से कम रंग भी 20 रुपये का

This time the festival of colors will be celebrated with 200 tons of colors and gulal.
This time the festival of colors will be celebrated with 200 tons of colors and gulal.

इंदौर (बंसी लालवानी)।
मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले इंदौर शहर का रंगों के इस त्यौहार में महती योगदान है। इंदौर की रंगपंचमी अब वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल हो चुकी है। पिछले ७० सालों के सफर के बाद जहां होली मनाने के अंदाज बदले हैं पर प्यार और व्यवहार वहीं कायम है जो पहले था। अब होली त्यौहार के साथ कारोबार के लिए भी जानी जाती है। इंदौर अब रंगों के उत्पादन में भी मध्यप्रदेश में सबसे आगे निकल चुका है। आज नगर में रंग एवं गुलाल का निर्माण करने वाली ६ बड़ी एवं ४ मध्यम ईकाइयां लगभग २०० से २५० टन उत्पादन इस त्यौहारी सीजन में करती है जिनका वितरण मध्यप्रदेश के अलावा आसपास के राज्यों में भी होता है। बढ़ती मजदूरी दर एवं अन्य खर्चों के चलते महंगाई का असर अब इस त्यौहार पर भी दिखने लगा है। रंगों की कीमतों में २० प्रतिशत तक की वृद्धि हो चुकी है।

प्राचीनतम त्यौहारों में पहला नाम होली का आता है। हिंदू समाज के इस मुख्य त्यौहार की प्रथम विशेषता ही इसे जन जन का त्यौहार बनाती है। वहीं इसका आर्थिक पहलू भी है। सामाजिक समरुपता को बढ़ाने वाले इस त्यौहार को आज भी समाज की अग्रिम पंक्ति से लेकर अंतिम पंक्ति का व्यक्ति भी बगैर एक पैसा खर्च कर पूरे आनंद से मना सकता है। शहर में रंग और गुलाल के कारोबारियो के लिए यह त्यौहार उत्साह लेकर आता है। क्योंकि इस त्यौहार में गरीब से लेकर अमीर तक शामिल होते हैं और सभी को रंगों की जरुरत होती है। गुलाल एवं कुमकुम के प्रमुख निर्माता श्रोणिक छिया के अनुसार प्रतिवर्ष बढ़ती मजदूरी की दरें महंगा ट्रांसपोर्टेशन, टेक्स एवं अन्य संस्थागत खर्चों के कारण करीब दस प्रतिशत प्रतिवर्ष भाव में वृद्धि का असर निर्माण लागत पर पड़ रहा है, जिसका खामियाजा आम जनता को उठाना पड़ता है। वहीं पिचकारियों का थोक व्यवसाय करने वाले देवानंद कहते हैं समाज के बिखरते परंपरागत ढांचे का असर व्यवसाय पर दिखने लगा है। ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन व संयुक्त परिवार में टूटन को भी समाज में होली जैसे त्यौहार का महत्व कम होने से जोड़कर देखा जा रहा है। किसी समय इंदौर के मोहल्लों में सामुदायिक होली एक बड़े कड़ाव में रंग घोलकर मनाई जाती थी।

अमूमन ५०० टका श्रेणी के रंग के रुहगुलाबी कहा जाता था जो कि ४०० ग्राम के टिन पैक में आता था और उसका मूल्य करीब ६० से ८० रु में आता था। मतलब करीब ३०० से ४०० लोग दिनभर इसी खर्च में आनंदपूर्वक त्यौहार मना लेते थे। दूसरी और आज पिचकारियों के मूल्यों में आई असमानता समाज में आए आर्थिक वर्गीकरण की ओर इशारा करती है। पहले पिचकारियों के मूल्यों में अधिक अतंर नहीं रहता था, लेकिन आज के दौर में बाजार में १० रु. से लेकर १००० रु. तक की पिचकारियां उपलब्ध है जो कि समाज में आए आर्थिक बदलाव एवं असमानता से अवगत करती है। वैसे इन सभी चीजों से उत्सव प्रिय इंदौर की होली एवं रंगपंचमी पर विशेष असर फौरी तौर पर नहीं दिखता है, क्योंकि स्वभाव से मनमौजू इस शहर में आम इंदौरी अथिक आनंद के लिए आर्थिक बंधन में नहीं रहता है। रंगों को रखने एवं सहजता से ले जाने के लिए अब विभिन्न श्रेणियों के रंग एवं गुलाल पाउंच पेकिंग में उपलब्ध है जो कि मात्रा में ३ से १० ग्राम एवं गुलाल ५० एवं १०० ग्राम की मात्रा में बाजार में उपलब्ध है। इनका खुदरा मूल्य ५ रु. से १५ रु. रंग का एवं गुलाल २० रुपये से ५० रुपये तक है। एक बड़ी ही रोचक जानकारी फुटकर व्यवसायी विनोद गौड़ से मिली कि कोविड काल की होली व्यवसाय की दृष्टि से सबसे अधिक लाभकारी रही। उसके दो प्रमुख कारण रहे। पहला यह कि कोविड काल में पूरा परिवार साथ में रहने से परिवार एवं त्यौहार का महत्व बढ़ गया। रंग गुलाल की उपलब्धि सुगम न होने की वजह भी इसमें शामिल रही।

This time the festival of colors will be celebrated with 200 tons of colors and gulal.
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मूल रुप से इंदौर में रंगों के निर्माण एवं व्यवसाय पर एक समय बोहरा समाज का एकाधिकार रहा करता था जो कि समय के साथ-साथ अन्य समाजों में भी बंटता गया। रंगों के इस त्यौहार में सराफा एवं कपड़ा मार्केट का उल्लेख अवश्य प्रासंगिक रहेगा। दोनों प्रमुख बाजारों में ७ दिन उत्सव का वातावरण रहता था। हर वर्ष गुलाबी या पीला रंग निर्धारित हता था जो कि दोनों व्यापारिक क्षेत्रों की पहचान बन जाता था। भारतवर्ष में संभवत इंदौर ही इकलौता शहर है जहां होली, रंगपंचमी के रुप में भी खेली जाती है। वृहद एवं विराट रुप से रंगपंचमी का प्रमुख आकर्षक इंदौर की विश्व प्रसिद्ध गैर रहती है जिसमें हिंदरक्षक संस्था की फाग यात्रा का इंतजार नगर एवं प्रदेश की जनता को वर्षभर रहता है, जिसमें महिलाओं की सहभागिता करीब करीब समान अनुपात में रहती है नगर के पश्चिम क्षेत्र से निकलने वाली गेरों में इस प्राथमिकता दी जाती है एवं इसमें सिर्फ गुलाल का ही उपयोग होता है। एक मोटे अनुमान के अनुसार होली के इस त्यौहार पर करीब २०० टन रंग गुलाल के साथ पिचकारियों एवं अन्य सामग्री का कुल व्यवसाय ८ से १० करोड़ का रहता है एवं इससे ८ से १० हजार लोगों को रोजगार मिलता है। स्वास्थ्य संबंधी जागरुकता के चलते बाजार में हर्बल रंगों की भी बाढ़ सी आई है जो कि साधारण रंग गुलाल की अपेक्षा दो से ३ गुना अधिक मूल्य पर उपलब्ध है लेकिन उनकी विश्वसनीयता पर कोई भी व्यवसाई अपनी स्पष्ट राय नहीं दे पाया।

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