इंदौर। मध्य प्रदेश से राज्यसभा में जाने के लिए कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता दिल्ली मुख्यालय तक लाबिंग कर रहे थे। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ कांग्रेस के विधायकों की बाड़ा बंदी में लगे हुए थे तो वही सुरेश पचौरी,अरुण यादव,कमलेश्वर पटेल, शोभा ओझा,सहित एक दर्जन से अधिक नेता दिल्ली दरबार को साधने का प्रयास कर रहे थे। ऐसे मे प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने जब खुद की दाल गलते हुए नहीं देखी तो बड़ी चतुराई से कांग्रेस की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गाँधी का नाम प्रस्तावित कर दिल्ली भेज दिया। जिसके बाद खुद के बिछाये जाल मे फंसे पटवारी को बचाने के लिए प्रदेश के प्रभारी भवर जितेंद्र सिंह ने राहुल गाँधी की करीबी मीनाक्षी नटराजन का नाम रख सब को चौका दिया था। कांग्रेस के निजाम में जीतू पटवारी अपनी कोशिशों के बाद भी सर्वमान्य नेता के रुप में जगह नहीं बना पा रहे हैं। अभी भी कांग्रेस में दिग्विजय और कमलनाथ का पलड़ा भारी है।
प्रदेश की कमान संभाल पाने मे नाकाम साबित हो रहे पटवारी के बचाव मे प्रदेश महासचिव भी उनके साथ गच्चा खा गए और अंतिम समय कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने ग्वालियर के अशोक सिंह का नाम प्रस्तावित कर दिया जिसे राज्यसभा से प्रत्याशी के रूप मे चयन करना उनकी मज़बूरी बन गया। पर जिस तरह से राज्यसभा के प्रत्याशी के चयन मे प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका रही है उससे उनके खिलाफ बगावत के सुर फूटने लगे है। संगठन से वरिष्ठ नेताओं के किनारा करते ही प्रदेश भर से कांग्रेस के कद्दावर नेताओं के पार्टी छोड़ने और उनको रोकने मे नाकाम साबित हो रहे जीतू पटवारी के लिए आने वाला लोकसभा चुनाव और अधिक कठिन होने वाला है। ऐसे मे लोकसभा चुनाव की तैयारीयों मे जुटी पार्टी के लिए मध्य प्रदेश कांग्रेस में बिखराव बड़ी चुनौती बनता जा रहा है।
एक के बाद एक कई जिलों से नेता कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम रहे। वहीं राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी तय करने के पूर्व मचे घमासान मेंं वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं में तल्खी बढ़ा दी है कांग्रेस मे मचे अंतरद्वंद मे राज्यसभा चुनाव ने आग मे घी का काम किया है ऐसे मे मार्च माह मे राहुल गाँधी के नेतृत्व मेंं निकल रही न्याय यात्रा का आगमन प्रदेश मे होने वाला है। प्रदेश के लगभग 9 जिलों से यह यात्रा निकलने वाली भाजपा सूत्रों से आ रही खबरों को सही माने तो इस यात्रा के दौरान बड़ी संख्या मेें कांग्रेस नेता पार्टी छोड़ने का मन बना चुके है जो लगातार भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के सम्पर्क मेें है। इनकी संख्या सौ से ज्यादा बताई जा रही है। आने वाला समय जीतू पटवारी के लिए अग्नि परीक्षा से कम नहीं होने वाला है। संगठन मे बढ़ता बिखराव और प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं को साधे रखना उनके लिए कठिन चुनौती बनते जा रहा है । दूसरी ओर अभी तक जीतू पटवारी का कार्यकाल कहीं पर भी प्रभाव नहीं डाल पाया है। वे भी कमलनाथ की तरह भोपाल में ही सिमट गए है। जबकि लोकसभा के पहले उन्हें मजबूत सीटों को लेकर अपने स्तर पर भी दौरा कर एक आंकलन तैयार करना चाहिए था।