गुस्ताखी माफ़: अब थाना प्रभारी हो गए नेताओं पर भारी…बाबा का विरोध काम नहीं आएगा…लौट के समंदर फिर नदी में आ गए…

अब थाना प्रभारी हो गए नेताओं पर भारी…

इन दिनों पुलिस महकमे में पदस्थ हुए थाना प्रभारियों के रुतबे देखने लायक हैं। दो दिन पहले इंदौर वापस लौटे एक थाना प्रभारी ने बड़े बेबाक होकर बताया कि इंदौर में थाना लेने के भोपाल में क्या रेट हैं। उन्होंने पूरी कहानी बताई, वह वाकई मजेदार भी है। थाना प्रभारी ने बताया कि दस लाख रुपए में इंदौर में पोस्टिंग सीधे मिली है। नई व्यवस्था में पुलिस के बड़े अधिकारियों से यह अधिकार समाप्त हो गए हैं कि वे खुद थानों पर नियुक्ति करें। इधर थाना प्रभारी ने यह भी बताया कि छोटे-मोटे मामले में यानी सट्टा-जुआं पकड़ने से लेकर किसी नेता की शिकायत पर लाइन में अटैच नहीं किया जाएगा। यह भी मौखिक आश्वासन उनकी जेब में है। ऐसे कुछ और थाना प्रभारियों की जेब में भी रखे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि थाने पर नियुक्ति होने के बाद उन्होंने क्षेत्र के पार्षद से लेकर कांग्रेस और भाजपा दोनों के ही नेताओं को बुलाकर अलग-अलग शिखर वार्ता को अंजाम दिया। इस दौरान उन्होंने नेताओं को यह भी समझा दिया कि थाने पर नियुक्ति में बड़ी राशि खर्च हो रही है, इसलिए यदि किसी मामले में किसी को भी छुड़वाना हो तो उसकी फीस भी आप ही तय करके दिलवाओगे। कांग्रेस के आदमी तो कांग्रेसी ही छुड़वाएगा और भाजपा के आदमी को भाजपाई ही छुड़वाएंगे। आम सहमति से इसमें कुछ दरें भी उन्होंने कहा तय हो गई हैं। उन्होंने यह भी बताया कि जो लोग इंदौर में नियुक्तियां दे रहे हैं, वे पूरा ध्यान रखते हैं। उदाहरण के रूप में उन्होंने कहा कमलेश शर्मा को लेकर लगातार शिकायतें हुईं। कई मामलों में सीधे-सीधे भी वो शामिल दिखे, पर बाल बांका नहीं हुआ। साथ में उन्होंने यह भी कहा कि इंदौर के एक भी नेता या विधायक में दम नहीं है कि वह किसी थाना प्रभारी की नियुक्ति करवा ले। फिर भी लेटरपेड पर अनुशंसा जरूर करवाई जाती है, ताकि कारोबारियों को कहने को रहे कि किसने, किसकी नियुक्ति करवाई है। सीएसपी यानी अब एसीपी तक दो लोगों की नियुक्ति इंदौर में ही पदस्थ रहे एक थाना प्रभारी ने करवा दी। इसके पूर्व एसपी तक की नियुक्ति में थाना प्रभारियों की भूमिका रही है और अगर ऐसा नहीं है तो एक बार फिर इंदौर में पदस्थ हुए थाना प्रभारियों को कोई हिला कर दिखा दे।

बाबा का विरोध काम नहीं आएगा…

क्षेत्र क्रमांक 5 में भाजपा के दावेदारों ने भले ही चुनावी रणनीति तैयार करना शुरु कर दी हो पर इतिहास बता रहा है कि इस प्रकार की दावेदारी करने वाले उम्मीदवार नहीं बन पाते हैं। पिछले दिनों क्षेत्र क्रमांक पांच में विधायक विरोधी यानी बाबा विरोधी नेताओं ने एक जाजम पर बैठकर यह कहा कि क्षेत्र क्रमांक 5 में भाजपा लगातार कमजोर हो रही है। इस बैठक के सर्वेसर्वा थे। रीति नीति समझने वाले मुकेश राजावत और पार्षद दावेदारी से बाहर होने के बाद विधायक के स्वप्रदेखने वाले दिलिप शर्मा और शामिल थे कई और चेहरे भी थे अब कुछ पुराना इतिहास भी खंगाले तो इसी प्रकार की एक बैठक पिछली बार क्षेत्र क्रमांक तीन में उस समय भाजपा के ताकतवर नेता उमेश शर्मा के नेतृत्व में हुई थी। इस बैठक में क्षेत्र क्रमांक तीन के कई चेहरे शामिल थे जिन्होंने उषा ठाकुर की उम्मीदवारी के खिलाफ बिगूल बजाया था। इस बैठक के दो दिन बाद सभी उषा ठाकुर विरोधी लगभग 40-41 नेता भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव से भी मिले थे और उन्हें अपनी शिकायत दर्ज करवाई थी। इसके बाद वे विनय सहबुद्धे से लेकर लगातार मोर्चा खोलकर अपनी उम्मीदवारी की तलाश में मिलते रहे। परंतु जैसा होता है इस प्रकार की बैठके करनेवाले दावेदारों का काम बाद में फिर विधानसभा के लिए दिखाई नहीं देता है। हालांकि पांच नंबर के गणित में और तीन नंबर के गणित में फर्क भी है। यहां विरोध तो नेता कर रहे हैं पर सामने नहीं आ रहे हैं क्योंकि वेअच्छी तरह जानते हैं कि जो थोड़ी बहुत संभावना बची हुई है आगे के भविष्य को लेकर वह भी समाप्त हो जाएगी। फिर भी बाबा के हाथ से दावेदारी छूटी भी तो उनकी सहमति से ही उम्मीद्वार तय होगा यह कहना है संगठन के एक दिग्गज नेता का।

लौट के समंदर फिर नदी में आ गए…

इंदौर की राजनीति नदिया से निकले और जावद में जाकर कांग्रेस की राजनीति में गोते लगाने वाले समंदर अब एक बार फिर कांग्रेस की राजनीति में वापस लौट रहे हैं। उनका भाजपा के प्रतिजागा प्रेम अब समाप्त हो गया है। इसके पीछे उनका कांग्रेस के प्रति प्रेम नहीं है। बल्कि उन्हें यह समझ में आ गया है कि इस बार भी जावद में भले ही वे भाजपा में चले गये हो परंतु यहां पर विरेंद्र कुमार सकलेचा के पुत्र जो अभी भाजपा सरकार में मंत्री भी है और वे ही अगले चुनाव में भी भाजपा के उम्मीदवार होंगे। कांग्रेस की नैया को निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में खड़े होकर डूबाने वाले समंदर पटेल एक बार फिर कांग्रेस में अपने हितों के चलते वापस आ गये हैं। वे पिछली बार निर्दलीय उम्मीदवारी ठोककर 18 हजार वोट लाये थे। उनका कहना है कि जावद में 21 हजार धाकड़ समाज का वोट है। अब यदि देखा जाए तो धाकड़ समाज में भी तीन हजार लोगों ने उन्हें वोट नहीं दिया। अब वे फिर नई संभावना के चलते कांग्रेस में आ गये हैं। इस मामले में भाजपा के क्षेत्रीय नेता का कहना है कि उनके पास पैसों की कोई कमी नहीं है। परंतु भाजपा में पैसों से टिकट नहीं मिलता है उन्हें कांग्रेस में ही वापस जाना ही चाहिए था।

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