गुस्ताखी माफ़: निशांत भी ‘खरेÓ नहीं… उषा दीदी की विदाई के आसार…

निशांत भी ‘खरेÓ नहीं… उषा दीदी की विदाई के आसार…

महू में इस बार कांग्रेस और भाजपा दोनों में ही कौन चुनाव लड़ेगा इसे लेकर भ्रम की स्थिति बन गई है। तीन चुनाव लगातार हार चुके दरबार हालांकि अभी भी उम्मीद से बंंध गए है। वैसे भी उन्हें ऐसा लग रहा है कि उनके लगातार हारने का अनुभव भी इस बार उनके कामआ सकता है। दूसरी ओर योगेश यादव भी यहां से अपनी उम्मीदवारी को लेकर तैयारी शुरु कर चुके हैं।अब यह तो समय बतायेगा कि किसके लिए ढोल नगाड़े बजेंगे पर भाजपा में यहां पर पिछले दिनों डॉ. निशांत खरे के होर्डिंग कई जगह टंगना शुरु हो गये थे उसमे उषा दीदी का मुखड़ा नहीं दिख रहा था। निशांत खरे को यह उम्मीद है कि वे इस बार तो मैदान मार ही लेंगे। इधर महू में भाजपा नेताओं की हुई बैठक में कविता पाटीदार ने निशांत खरे का पूरा रायता फैलातेहुएकहा है कि इस बार महू से स्थानीय उम्मीदवार ही मैदान में होगा। बाहर से आकर लड़ने वाले केवल अपना घर देखते हैं। इसी के साथ बैठक में यह भी दावा किया गया कि उषा दीदी ने अपना सामान यहां से बांध लिया है और वे क्षेत्र क्रमांक 1 में या तो सुदर्शन बाबू के बूंदेबैठेंगी या फिर वापस क्षेत्र क्रमांक 3 में कलश स्थापना करेंगी।

दांव-पेंच से भरी है 2 नंबरी दुनिया..

दादा दयालु ने अपने क्षेत्र के वार्ड-27 से सुरेश कुरवाड़े का टिकट काट कर पिछली बार सुधा चौधरी को दे दिया था हालंकि यह बात कुरवाड़े को नागवार गुजरी थी पर क्याकर सकते थे। इस क्षेत्र में सारे फैसले दादा ही करते रहे हैं। तिलमिलाये कुरवाड़े ने पूरे पांच बरस में सुधा को चैन नहीं लेने दिया और रोड़ा बने रहे। वार्डवासी सभी कामों को लेकर कभी सुधा के पास गए ही नहीं। जो भी दिक्कतें रहती थीं, सुरेश कुरवाड़े ही आगे रहे। और वार्ड में सुधा चौधरी को काम नहीं करने दिये। अपना परचम बरकरार रखा। इसी के चलते इस बार के नगर निगम चुनाव में सुरेश कुरवाड़े पूरी तरह से आश्वस्त थे कि टिकट उन्हीं को मिलेगा, लेकिन दादा दयालू ने नई चौसर जमाते हुए उन्हें तुलसी सिलावट के पाले में ठेल दिया। वहीं कुरवाड़े के पसंदीदा वार्ड में मुन्नालाल यादव पर दांव लगाया इसके पीछे उनके गणित अलग थे। लंबे समय से मुन्नालाल यादव और दादा दयालु के बीच रिश्तों में खटास बनी हुई थी। मुन्नालाल यादव भिया के बेहद करीबी माने जाते है। और इसीलिए उन्होंने इस वार्ड से मुन्नालाल यादव को उतार दिया वे जीते, लेकिन पसीना उन्हें भी आ गया। सुरेश को जहां पहुंचाया गया, वहां उन्होंने खेल तो जमा लिया है। अभी एक साल का जो जश्न हुआ, उसमें गांव वालों ने उन्हें हाथोंहाथ लिया है। खूब सारे हार-फूल थे, नारेबाजी हो गई और सुरेश फूल कर कुप्पा हो गए। रहते वे मेंदोला के वार्ड में हैं। खुद के वार्ड से लौटने के बाद दादा की हाजिरी में भी रहते हैं, लेकिन सिलावट की तारीफ भी करते हैं, यानी दादा दयालु और सिलावट दोनों को साध कर चल रहे हैं।

30 से अधिक नेता पुत्र…

नरेंद्रसिंह तोमर के इस बार विधानसभा चुनाव को लेकर सर्वेसर्वा बनाये जाने के बाद क्षेत्र क्रमांक 1 और क्षेत्र क्रमांक 4 में सबसे ज्यादा खुशी का माहौल है। सुदर्शन बाबू ने तो अब मान लिया है कि इस बार तो वे ही मैदान में होंगे। चार नंबर के बारे में भी यही स्थिति बन गई है। दोनों ही क्षेत्रों में नरेंद्र सिंह तोमर का विशेष स्नेह बना हुआ है। इधर कर्नाटक में भाजपा के दिग्गज नेताओं के पुत्रोंऔर परिजनों को टिकट दिये जाने से भले ही वहां सरकार न बनी हो परंतु कई क्षेत्रों में नेता पुत्रों के परचम लहरा गये कारण पिता या परिवार की इज्जत दांव पर लगने के कारणनेताओं ने अपनी पूरी ताकत झौंक दी थी। इधर मध्यप्रदेश में भी यही फार्मूला काम करेगा। इससे भाजपा ने आंतरिक विरोध को तो दबाया जा सकेगा वहीं तीस से अधिक नेता पुत्र इस बार दावेदारी को लेकर मैदान में उतर चुके हैं। खुद नरेंद्र सिंह तोमर अपने पुत्र देवेंद्र प्रतापसिंह (रामू भैया) को ग्वालियर से मैदान में उतारने को लेकर मन बना चुके हैं। इसके अलावा लंबी फेहरिस्त है। वैसे भी भाजपा इस बार आधे से ज्यादा नये उम्मीदवारों को मैदान में उतारने को लेकर ऐलान कर चुकी है।

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