पुलिस और प्रशासन के भरोसे तो ओंकारेश्वर दर्शन करने की न सोचे

बड़ी भगदड़ के इंतजार में बैठा है प्रशासन, तभी जागेगा, जिन्हें सुरक्षा की जवाबदारी वे मोबाइलों में व्यस्त

omkareshwar

इंदौर।
यदि आप अपने परिवार के साथ धर्मकर्म के लिए ओंकारेश्वर जाने का सोच रहे हैं तो वहां की पुलिस, प्रशासन के भरोसे कतई नहीं जाईयेगा। पुलिस और प्रशासन को अभी वहां बड़ी भगदड़ का इंतजार है। छोटे छोटे बच्चे मंदिर में दर्शनों की लाइन में दब रहे हैं। विकलांगों से अच्छी खासी राशि दर्शन के नाम पर वसूली जा रही है तो वहीं वृद्धों का भगवान ही मालिक है। खासकर शनिवार, रविवार या छुट्टी का दिन और सोमवार इसमे ओंकारेश्वर में दर्शन करने जाने की भूल कतई नहीं करिएगा। अन्यथा हादसों में खाली हाथ लौटना पड़ सकता है। पैसे लेकर दर्शन कराने का धंधा पंडों से लेकर पुलिस वाले तक करने में लगे हुए हैं। पांच सौ रुपए देते ही ओंकारेश्वर में चाहे जहां गाड़ी खड़ी करने की व्यवस्था और उसके बाद थानों में लगी पुलिस खुद पैसे लेकर दर्शन कराने का ठेका ले रही है। जिनका काम व्यवस्था संभालना है वे खुद ही लूट के धंधे में जमकर लगे हुए हैं। खंडवा कलेक्टर से लेकर स्थानीय अधिकारियों की हालत यह है कि उन्हें लोगों के मरने और दबने की कोई चिंता नहीं है कल दैनिक दोपहर की टीम ने आम आदमी के दर्द को यहां पर आम आदमी बनकर झेला और पाया कि अब यहां तीर्थ कम और लूटपाट जमकर हो रही है। पुल से यात्रियों के जाने पर रोक लगने पर नाव वाले तीस रुपए की बजाए ५० से ६० रुपए तक वसूल कर रहे हैं। जिसे जाना हो जाये नाव के अलावा अब कोई साधन नहीं है। बुजुर्ग महिला और पुरुष यदि यहां पर दर्शन कर पुण्य कमाने का सोच रहे हो तो उन्हें कतई नहीं जाना चाहिए।
कल इतवार के दिन दैनिक दोपहर के चार सदस्य ओंकारेश्वर मंदिर के तीर्थ को लेकर स्थानीय हालात जानने के लिए पहुंचे थे। जब १ बजे कार ओंकारेश्वर परिसर पर पहुंची तो पता लगा कि उन्हें पार्किंग में गाड़ी खड़ी करनी है। इस बीच पुलिसकर्मी यहीं पर दूसरे वाहनों को पांच सौ रुपए में प्रवेश दिलाने के लिए लगे रहे। यहीं से भ्रष्टाचार की बड़ी लीला शुरु हो जाती है। जैसे जैसे नदी की ओर पहुंचते हैं पुल बंद होने के कारण अब पैदल नहीं जाया जा सकता है। दूसरे पुल से आने का प्रयास किया गया तो कई किमी पैदल यात्रा हो जाएगी। ऐसे में यहां पर चल रही नांवे जो दो हिस्सों में बंटी हुई है और दोनों और के नाविक यात्रियों को लेकर लड़ते देखे जा सकते हैं।

जो इस घाट से मंदिर के लिए जाते हैं उन्हें अलग भुगतान करना होता है। सरकार द्वारा तय कीमत पर कोई भी नाविक ले जाने को तैयार नहीं होता। ५०-६० रुपए तक मंदिर जाने के वसूले जा रहे हैं। विरोध करने पर कोई भी सुनवाई कहीं नहीं है। इसके बाद जैसे ही आप नदी पार कर मंदिर क्षेत्र में पहुंचते हैं यहां आपको इन तीन दिनों में आने वालों की संख्या एक लाख के लगभग होना बताई जाती है। इसके चलते मंदिर परिसर के चार सौ मीटर दूर से ही लाइने लगना शुरु हो जाती है। इन्हीं लाइनों में एक तरफ का मार्ग मंदिर से दर्शन कर बाहर जाने वालों के लिए बना हुआ है। इस बाहर जाने वाले मार्ग पर पुलिस के जवान हो या मंदिर क्षेत्र से जुड़े पंडित सभी लाइनों में खड़े लोगों से वीआईपी दर्शन के नाम पर पांच सौ रुपए प्रतिव्यक्ति लेने के लिए बातचीत करना शुरु कर देते है। पूरे परिसर में पुलिस केवल अपने साथ लाए दर्शन करने वालों को मंदिर परिसर तक छोड़ने के पैसे लेकर वापस लौट जाती है। इधर मंदिर के पंडे पुजारियों के इस धंधे के बीच जमकर पीसते रहते हैं।

पुजारियों के लिए खाली जगह बनी रहती है जो देखी जा सकती है। परिणाम यह होता है कि पूरी व्यवस्था चरमरा जाती है और लाइनों में खड़े छोटे बच्चों और बुजुर्गों के लिए लोग मदद के लिए चिल्लाते रहते हैं पर भीड़ का दबाव धीरे धीरे इतना ज्यादा होता जाता है कि कई लोगों को चक्कर आने के बाद भी बाहर निकलने का मौका नहीं मिल पाता। जब लोग चिल्लाते रहते हैं तब भी पुलिस के पदस्थ कर्मी और पंडित यहां पर अपने पैसों को लेकर वीआईपी कराने के धंधे में लगे रहते हैं। ५ से ६ घंटे तक आम आदमी, महिलाएँ, बुजुर्ग मंदिर में पूरी तरह भगवान भरोसे हो जाते हैं। दर्शन की खुशी किसी के चेहरे पर नहीं बाहर निकलने पर जिंदगी बचने की राहत के भाव देखे जा सकते हैं। बाहर निकलने वाला हर व्यक्ति मानता है कि अब यहां दर्शन करने नहीं आना चाहिए। जो लोग आते हैं वे भी मानते हैं कि पुलिस प्रशासन नाम की यहां कोई चीज नहीं है। गुजरात से आये एक समूह ने हाथ जोड़कर कहा कि अब गुजरात से आने वाले लोगों को हम खुद सोशल मीडिया पर यहां की हालत बताकर यह भी बतायेंगे कि भगवान के नाम पर मध्यप्रदेश में किस प्रकार की लूटपाट मचा रखी है और प्रशासन और सरकार के भरोसे तो यहां आना ही नहीं चाहिए। दूसरी ओर शिवलिंग पर अब जल चढ़ाने से लेकर फूल चढ़ाने तक पर प्रतिबंध है। इसके बावजूद भी कहीं पर नहीं बताया गया है कि इसे लेकर नहीं जाना है। इस बीच आश्चर्य की बात यह भी है कि मंदिर से निकलने वाले मार्ग की हालत भी पैसे लेकर दर्शन कराने वालों को लेकर ऐसी हो जाती है कि समझ नहीं आता है कि कहां से निकले। भारी भीड़ के बाद भी प्रशासन और पुलिस का कोई भी बड़ा अधिकारी घंटों यहां देखने भी नहीं आता। यानी अगर आप ओंकारेश्वर में दर्शन करने के लिए जाना चाहते हैं तो इन तीन दिनों में कतई नहीं जाए और जा रहे हैं तो अपने बच्चों और महिलाओं को न ले जाए। क्योंकि यहां पर केवल भगवान ही आपको बचा सकते हैं।

क्या होना चाहिए
-पूरे मंदिर परिसर में प्रवेश की व्यवस्था सुरक्षा बल को देनी चाहिए।
-वीआईपी दर्शनों के लिए भी एक समय तय होना चाहिए।
-मंदिर में लगी रैलिंग पर अधिकतम दो लोगों की कतार होनी चाहिए।
-अभी हर कतार में आठ से दस लोग होते हैं जो मंदिर के द्वार तक पूरी व्यवस्था बिगाड़ देते हैं।
-मंदिर के पांच सौ मीटर से ही महाकाल की तर्ज पर इस प्रकार रैलिंग लगाई जानी चाहिए जो सीधे मंदिर के गर्भगृह पर ही पहुंचे। बीच में से घूसने का कोई मार्ग नहीं होना चाहिए। और यदि द्वार बनाये जाए तो उन सब की चाबियां वरिष्ठ अधिकारी के पास होनी चाहिए जो वहां पर मौजूद हो।
-नाव की यात्रा को लेकर शिकायत होने पर या ज्यादा पैसे लेने पर नाव को एक दिन का निलंबन दिया जाना चाहिए। जिससे आम आदमी के साथ लूटपाट न हो।
-महिलाओं, बुजुर्गों को लेकर पूरी लाइन अलग होनी चाहिए जिसमे कहीं कहीं बैठने की व्यवस्था भी हो।
-शनिवार, इतवार, सोमवार यहां पर वरिष्ठ पुलिस और प्रशासन अधिकारी तैनात रहना चाहिए।
-पंडों, पुजारियों के लिए भी दर्शन कराये जाने को लेकर काउंटर बनाया जाना चाहिए। और इसके लिए एक लाइन अलग से होना चाहिए।

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