सुलेमानी चाय:घर के चिराग से लगी आग….थानों में गिड़गिड़ाते हैं अर्तगुल गाजी

घर के चिराग से लगी आग
वक्फ संपत्ति को जितना नुकसान मुसलमान पहुंचा रहे हैं उतना कोई नहीं पहुंचा रहा। वक्फ का मतलब है, मुसलमानों का सार्वजनिक फंड जिससे मुसलमानों का भला और दीन का काम किया जाए। मगर जो मुसलमान वक्फ की संपत्तियों पर किरायेदार हैं, मामूली किराया भी वक्त पर नहीं देते। किराया बढ़ाने की बात हो तो ऐसा हंगामा करते हैं जैसे उनकी किडनी निकाली जा रही हो। पिछले दिनों बांदा कंपाउंड मस्जिद के किरायेदारों की सूची और उनकी बकाया राशि चस्पां कर दी गई थी, जिसके बाद पानीदारों ने पैसा जमा करके अपना नाम हटवा लिया। तो क्या अब वक्फ बोर्ड को यही तरीका अपनाना पड़ेगा? जिस इलाके में वक्फ की संपत्ति हो, उस इलाके की मस्जिदों में बकायेदार का नाम और बकाया राशि…। मगर यह तरीका उन पर काम करेगा, जिनमें कुछ ईमान बाकी हैं। कुछ कब्जेदार तो ऐसे हैं कि रात को चुपचाप मस्जिद में जाकर वो कागज फाड़ देंगे।

थानों में गिड़गिड़ाते हैं अर्तगुल गाजी
मुस्लिम युवाओं को गुस्सा बहुत जल्दी आता है और जब गुस्सा आता है तो वे किसी की नहीं सुनते। असल में कईयों की हिम्मत नहीं होती उनके सामने जाने की। वे अपने इलाके के पार्षद तो छोड़ो शहरकाजी को कुछ नहीं समझते। कोई नसीहत देने की कोशिश करे तो उसके खिलाफ नारेबाजी शुरू कर देते हैं। मगर जब गुस्सा उतरता है और गुस्से के नतीजे झेलने होते हैं तो फिर यही युवा अपने मां-बाप को लेकर नेताओं के पास जाकर घिघियाते हैं। अभी कुछ दिनों पहले मुस्लिम युवाओं ने थाना घेरा, मारपीट भी की, हुड़दंग मचाया। जिस बात पर गुस्सा थे, वो बात वाकई बहुत संगीन थी, मगर इस तरह की नारेबाजी करना तो बात को बिगाड़ना था। अब जब पुलिस चुन चुन कर गिरफ्तारियां कर रही है, बड़ी बड़ी धाराओं के तहत जेल भेज रही है, थाने में पिटाई हो रही है, जेल में डंडा परेड हो रही है तो याद आ रहा है कि हमारे इलाके में एक नेताजी भी हैं। दौड़ रहे हैं नेताओं की तरफ की हमें इस जुल्म से बचाओ। लेकिन भइया अगर पहले ही नेताजी के पास आते और नेता के साथ थाने जाकर ज्ञापन देते तो क्या हो जाता? गुस्सा आए तो नेता चोर है, नाकारा है, दलाल है, शहरकाजी किसी काम के नहीं हैं, केवल बग्घी में बैठने के लिए हैं और मुकदमा लगे तो नेता से ही कह रहे हैं कि बचा लो। तो भइया गुस्से में अर्तगुल गाजी बनने से पहले सोच लिया करो कि इस गुस्से की कीमत भी चुकानी पड़ेगी।

पढ़ाई लिखाई में आगे बढ़ रहा खजराना
एक साहब ने दसवीं की उस लड़की की साल भर की फीस एकमुश्त इफ्तेखार गुड्डू के हाथ में रख दी। नहीं तो वो होनहार बच्ची गरीबी के कारण शायद पढ़ाई छोड़ देती। कुछ ने दसवीं बारहवीं में अच्छे नंबर लाने वाले बच्चों को नगद राशि ईनाम में दी तो किसी ने घड़ियां दीं। सबने हस्बे हैसियत और अपनी मर्जी के मुताबिक ईनामात दिये। जिस खजराना को शहर के नासमझ लोग पिछड़ा इलाका कहते हैं, उस खजराना में कुछ लोग पढ़ाई लिखाई का माहौल बनाने में लगे हैं। सुलतान अवार्ड इसी का एक प्रयास है, जिसके तहत पढ़ाई लिखाई में कुछ कर दिखाने वाले बच्चों को ईनामात दिये गए। एमजीएन स्कूल के विकी सर भी इस मामले में पेश-पेश रहते हैं। समारोह उनके ही स्कूल में हुआ और ऐसा हुआ कि शहर भर से लोग इसे देखने आए। खजराने को पिछड़ा इलाका कहने वाले पता नहीं क्यों ऐसा कहते हैं जबकि यहां के कई बच्चे डॉक्टर इंजीनियर बने हैं और हर साल कुछ बच्चे नीट समेत दीगर एग्जाम क्लीयर करते हैं। इफ्तेखार गुड्डू जैसे लोग खजराना की छवि को बदल रहे हैं।

एक रोज़ की भावना
नफरती भावनाओं के जंजाल में सद्भावना की मशाल को कायम रखने का काम टेड़ा है। शहर में सालो बाद हुआ एक आयोजन बता गया कि फ़िल्म अभी बाकी है। मुनीर खान ने मजमा लगाया था जिसे लोगो का खूब साथ मिला। बाते एसी हुई जो कानो को सुकून दे गई। गंगा जमुनी तहज़ीब की बात और काम करने वालो का सम्मान किया गया। लेकिन अब कुर्सियों पर बैठ कर सद्भभावना का गुणगान उतना असर नही रखता। एक दिन की वाहवाही तो मिल जाती है पर इसे हमेशा तक जिंदा नही रखा जा सकता। जितनी जोर से नफरत का नक्कारा बजाय जा रहा है उतनी ताक़त से मोहबत के लिए काम जरूरी है। मैदान पकड़ना हो और हर रोज़ इस मशाल को जलाना होगा। घर बैठ कर अब बदलाव नही आने वाला।
मोबाइल नंबर – 9977862299

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