भाजपा को ही सिंधिया खेमे में बगावत की आशंका

महाकौशल में खींचतान के चलते भाजपा ने मालवा-निमाड़ में पूरी ताकत लगाई

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इंदौर। कांग्रेस से भाजपा में गये ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों को लेकर भाजपा संगठन के दिग्गज नेता यह मान रहे हैं कि सिंधिया खेमे में आने वाले समय में बड़ी बगावत हो सकती है। और इसका असर महाकौशल की भाजपा सीटों पर दिखाई देगा और इसीलिए भाजपा मालवा निमाड़ में इसकी भरपाई के लिए पूरी ताकत लगा रही है। ग्वालियर महापौर का चुनाव हो या फिर सांवेर में सांवेर नगर परिषद अध्यक्ष के चुनाव में सिंधिया समर्थकों की करारी हार ने भाजपा के नेताओं को यह संकेत दे दिया है कि कार्यकर्ता अब थोपे गये नेताओं को स्वीकार नहीं करेगी। सिंधिया समर्थकों के क्षेत्रों में ताकतवर भाजपा नेताओं को इस बार उम्मीदवारी नहीं मिली तो वे बाजी पलट देंगे। दूसरी ओर यह भी माना जा रहा है कि सिंधिया खुद भी आने वाले समय में उनके पिता की तरह ही कांग्रेस का दामन फिर से थाम सकते हैं।

संघ और भाजपा संगठन से जुड़े एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि भाजपा के लिए आने वाला २०२३ का विधानसभा चुनाव आसान नहीं होगा। हालांकि वे यह भी मानते हैं कि कांग्रेस के पास ७० सीटों पर अभी भी उम्मीदवारों का रोना है। परंतु महाकौशल में इस समय सिंधिया समर्थकों और पुराने भाजपा के दिग्गज नेताओं के बीच खाई कम नहीं हो पा रही है और इसी कारण भाजपा से सिंधिया की समर्थक रही सुमन शर्मा को उम्मीदवार बनाया था। ५७ साल में पहली बार भाजपा को महापौर चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। वहीं दमोह में भाजपा के कद्दावर नेता जयंती मलैया को दरकिनार कर कांग्रेस से भाजपा में आये राहुल लोधी को एक सामान्य चेहरे और कांग्रेस के उम्मीदवार अजय टंडन ने हरा दिया। यही स्थिति सांवेर में भी रही यहां मंत्री तुलसी सिलावट के खास सिपेसालार दिलिप चौधरी को पार्षद का चुनाव ही नहीं जीतने दिया यहां भाजपा के सामान्य चेहरे ने ही यह पद हासिल किया। यह बता रहा है कि सिंधिया समर्थकों को अब भाजपा के ही लोग जीतने नहीं देंगे। इधर भाजपा के ही पूर्व मुख्यमंत्री का परिवार भी इस बार उम्मीदवारी नहीं मिलने पर कांग्रेस का दामन थामने की तैयारी में है।
दूसरी ओर भाजपा के आंतरिक सर्वे में भी सिंधिया के १६ से ज्यादा उम्मीदवार इस बार अपने क्षेत्रों से वापस नहीं लौट पायेंगे। इसे लेकर भी संगठन को जानकारी दी है। और इसी कारण भाजपा में दल बदलने के बाद पहुंचे सिंधिया समर्थक भी यह मान रहे हैं कि भाजपा में उनक उपयोग हो चुका है और अब उन्हें आने वाले समय में उम्मीदवारी नहीं मिलेगी और इसी के चलते बड़े बगावत की स्थिति बनना तय है। केवल तीन से चार ताकतवर नेता ही अपनी उम्मीदवारी बचा पायेंगे। हालांकि वे भी अपने क्षेत्रों में अब अपना इतिहास दोहरा नहीं पायेंगे। दूसरी ओर जो उम्मीदवार पिछला चुनाव भाजपा के टिकट पर हार चुके हैं वे भी दावेदारी से बाहर कर दिये जाएंगे। ऐसे में भाजपा को महाकौशल में होने वाले नुकसान और बगावत के बीच पूरी ताकत मालवा निमाड़ में ही भरपाई के लिए लगानी होगी। संघ के बड़े पदाधिकारी भी मान रहे हैं कि भाजपा में ज्योतिरादित्य सिंधिया भले ही मंत्री पद परद हो पर उनका संक्रमणकाल चल रहा है। उन्हें संगठनों की बैठकों में बेहतर स्थान नहीं मिल पा रहा है। दिल्ली में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठकों में उन्हें क्रमवार सबसे अंतिम स्थान मिला। ऐसे में राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा के मध्यप्रदेश प्रवेश पर भी उनके द्वारा ट्विट किया गया राहुल गांधी के लिए कि स्वागत है कि चर्चा भी है। यानि वे अभी भी अपने संबंधों को भूल नहीं पाये हैं। आने वाले समय में भाजपा में संगठन से लेकर उम्मीदवारों तक बड़ी उथल-पूथल देखने को मिलेगी। वैसे भी गुजरात फार्मूले के चलते सौ से अधिक उम्मीदवारों की उम्मीदवारी खतरे में पड़ गई।

66 सीटों पर उतरेगी पूरी भाजपा

मालवा-निमाड़ में विधानसभा की ६६ सीटें हैं इसमे इंदौर संभाग की ४५ सीटें हैं। वहीं आदिवासी क्षेत्रों में पिछली बार भाजपा का परचम लहराया था। इस बार महाकौशल मे ंहोने वाले नुकसान की भरपाई यहीं से किये जाने को लेकर भाजपा और संघ ने बड़े पैमाने पर तैयारी शुरु कर दी है। इस बार भाजपा के निशाने पर कांग्रेस के बड़े नेता रखे गये हैं ताकि वे अपने क्षेत्रों में ही सिमट जाए। इसमे विजयलक्ष्मी साधौ, सज्जन वर्मा, बाला बच्चन, जीतू पटवारी शामिल है।

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