53 करोड़ के ऑक्सीजन प्लांट अब वेंटिलेटर पर

कोरोना में लगाए थे, नॉन कोविड अस्पताल में भी राशि खर्च कर दी

शार्दुल राठौर

इंदौर। कोरोना की तीसरी लहर आने की उम्मीद अब बहुत कम है। शहर में प्रशासन ने दूसरी लहर के बाद और तीसरी लहर की संभावनाओं के पहले 53 करोड़ की लागत से 48 अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट लगाए थे, जो अब उपयोग में नहीं आने के कारण और मेंटनेंस के अभाव में धूल खा रहे हैं। इनमें हुकुमचंद पॉली क्लीनिक और पीसी सेठी में तो एक भी कोविड मरीज भर्ती नहीं किया गया था, फिर भी यहां ऑक्सीजन प्लांट बनाने का निर्णय ले लिया गया। इन दोनों ऑक्सीजन प्लांट का अब तक एक बार भी उपयोग नहीं हुआ है। कोरोना की दूसरी लहर में शहर ही नहीं पूरे देश में ऑक्सीजन की कमी के चलते हाहाकर मच गया था। हालत यह हो गई थी कि ऑक्सीजन के लिए लोगों को घंटों लाइन में लगना पड़ रहा था तो वहीं वायुसेना को ऑक्सीजन लेकर आना पड़ा था। इसके बाद सबक लेते हुए शहर के निजी और सरकारी सभी प्रमुख अस्पतालों में बिना सोचे-समझे ऑक्सीजन प्लांट लगाने का निर्णय ले लिया गया था। स्वास्थ्य विभाग के पीसी सेठी और हुकुमचंद पॉली क्लीनिक में भी ऑक्सीजन प्लांट स्थापित कर दिए गए थे।

निजी अस्पतालों को दी थी 50 प्रतिशत सब्सिडी

इन ऑक्सीजन प्लांट्स को बने हुए करीब एक वर्ष का समय बीत चुका है, लेकिन आज तक इन दोनों प्लांट्स में से किसी एक का भी इस्तेमाल नहीं किया गया है। हालत यह है कि करोड़ोंं की लागत से बने इन प्लांट की उपयोगिता पर स्वास्थ्य विभाग के पास भविष्य की कोई योजना नहीं है। इंदौर में दूसरी लहर के बाद और तीसरी लहर के अनुमान से पहले करीब 53 करोड़ की लागत से 48 अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट की स्थापना की गई थी। निजी अस्पतालों को 50 प्रतिशत सब्सिडी दी गई थी। सरकारी अस्पतालों की बात की जाए तो एमवायएच, सुपर स्पेशलिटी, एमआरटीबी, एमटीएच, हुकमचंद पॉली क्लीनिक, पीसी सेठी अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट स्थापित किए गए थे। हुकुमचंद पॉली क्लीनिक और पीसी सेठी में तो एक भी कोविड मरीज भर्ती नहीं किया गया था, फिर भी यहां ऑक्सीजन प्लांट बनाने का निर्णय लिया गया था। करीब एक वर्ष पूर्व इन दिनों अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट स्थापित हो चुके हैं, लेकिन इनका एक बार भी इस्तेमाल नहीं हुआ। इतना ही नहीं ऑक्सीजन प्लांट का जो ट्रॉयल हुआ था, उसमें भी यह फेल हो गए थे, इसके बाद से दोनों प्लांट धूल खा रहे हैं। वहीं एमवायएच को छोड़कर अन्य सरकारी अस्पतालों की भी हालत कमोबेशयही है, क्योंकि इतनी ऑक्सीजन की जरूरत ही नहीं है।

विशेषज्ञों की मानें तो आसान नहीं है प्लांट का रखरखाव

सरकारी अस्पताल के जिम्मेदारों ने ऑक्सीजन प्लांट लगने से पहले मेंटनेंस पर सवाल उठाए थे। विशेषज्ञों ने भी प्रशासन को जानकारी दी गई थी, कि ऑक्सीजन प्लांट लगाए जा रहे हैं, लेकिन इनका रखरखाव इतना आसान नहीं है। पूरी तकनीकी टीम इसको ऑपरेट करने के लिए रखना पड़ेगी। निजी कंपनी को ठेका भी दिया गया तो उसका खर्चा बहुत अधिक आएगा, लेकिन किसी ने नहीं सुना, सिर्फ राशि खर्च करने से मतलब रखा। अब हालात यह है कि एक वर्ष होने के बाद भी इनका कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है, क्योंकि इतनी ऑक्सीजन की जरूरत ही नहीं है। इसी कारण इनका रखरखाव भी नहीं हो पा रहा है और यह धूल खा रहे हैं।

ऑक्सीजन कंस्ट्रेंटर मशीन की उपयोगिता भी खत्म

आम लोगों और नेताओं ने दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन कंस्ट्रेंटर मशीन थोक में खरीदी थी। भाजपा और कांग्रेस के नेताओं ने भी लोगों की मदद के लिए यह मशीनें दी थी और जनसहयोग, चंदा कर थोक में मशीनें खरीदी गई। यह मशीनें भी तब खरीदी गई थी, जब दूसरी लहर समाप्त हो गई थी और तीसरी लहर में इन मशीनों की जरूरत ही नहीं पड़ी। यही कारण है कि इनमें से भी सैकड़ों मशीनें धूल खा रही हैं। यह रखे-रखे ही खराब हो रही है, क्योंकि इनकी नियमित रूप से सर्विसिंग और देखरेख जरूरी है।

पीसी सेठी और हुकुमचंद पॉली क्लीनक में ऑक्सीजन प्लांट इस्तेमाल की जरूरत ही नहीं पड़ी। फिर भी हम इसे चलाते रहते हैं। जल्द दोनों प्लांट को चालू करेंगे।
 डॉ. बीएस सैत्या, सीएमएचओ

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