देखने वाले हजारों आते थे शवयात्रा में दो न पहुंचे

दिनांक - 2 अगस्त को 'करण दिवानÓ की पुण्यतिथि पर स्मरण

फिल्मों के सुनहरे दौर के शुरू होने से पहले के एक ऐसे सितारा अभिनेता , जिनकी कई फिल्मों ने उस समय सिल्वर और गोल्डन जुबली मनाई थी, लेकिन जब उनका स्वर्गवास हुआ तो इस बेरहम और विशाल फिल्म इन्डस्ट्री के केवल दो लोग लोग उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए थे, आज हम बात कर रहे है।

करण दिवान की जिनकी दिनांक 2 अगस्त को पुण्यतिथि है। करण दिवान का जन्म सन् 1917 में अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के गुजरावालां में हुआ था, आपका पुरा नाम था दिवान करण चोपड़ा, अपने तीन भाईयों में सबसे छोटे थे करण, सबसे बड़े भाई उस समय के जाने माने फिल्मकार थे नाम था जैमिनी दिवान, करण भी बड़े भाई की तरह फिल्मों का हिस्सा बनना चाहते थे, उन्हें बचपन से लिखने का शौक था, कहानियाँ लिखने में दिलचस्पी थी।

ताराचंद बड़जात्या साहब से जो उस समय लाहौर में नौकरी करते थे, ताराचंद साहब ने करण की पहचान करायी फिल्म निर्माता- आरएन शौरी से जो रूप के शौरी के पिताजी थे, शौरी साहब ने करण को अपनी फिल्म पुरन भगत में काम करने के लिए कलकत्ता बुलाया, फिल्म पौराणिक होकर इसमें करण की मुख्य भूमिका थी, फिल्म असफल रही, दरअसल फिल्म के हिरो बनने की दृष्टि से अभी उनकी आयु कम थी, अभी तो वो कालेज के विद्यार्थी ही थे।

आखिर मुंबई में रहते हुए फिल्मों में काम मिलने लगा ये फिल्में थी- तमन्ना, शोभा, गालिब, स्कूल मास्टर आदि, दुर्भाग्य से सभी फिल्में असफल रही ये समय था सन् 1941 से 44 का, लगातार असफल हो रहे करण की मनोस्थिती को बड़े भाई जैमिनी दिवान ने समझा और उन्हें अपनी फिल्म रतन में नायक की भूमिका दी सन् 1944 की ये फिल्म जबरदस्त कामयाब रही, इस फिल्म को नौशाद साहब के लोकप्रिय गीत- संगीत के लियें जाना जाता है, इस फिल्म में करण ने अभिनय के अलावा अपनी आवाज़ में एक युगल गीत गाया था जो नूरजहाँ के साथ था, इस फिल्म से करण सितारा अभिनेता बन गये, इसके बाद उन्होंने सुपरहिट फिल्मों की लाईन लगा दी, भारतीय फिल्मों के वो पहले अभिनेता है जिन्होंने लगातार सुपरहिट फिल्में दी है ये फिल्में है।

दुनिया, परदेस, तीन बत्ती चार रास्ता, मधु, मुसाफ़िर खाना और वैजयंतीमाला की पहली हिन्दी फिल्म बहार ये सभी फिल्में सिल्वर जुबली साबित हुई। कालांतर में उन्हें काम मिलना बंद हो गया सन् 1970 के आते आते उनकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गयी कि अपनी आलिशान विदेशी मोटर कार में घुमने वाला मुंबई की बेस्ट की बसों में सवारी करते नज़र आने लगा, लेकिन जब- 2 अगस्त सन् 1979 को उनका स्वर्गवास हुआ तो उनकी अंतिम यात्रा में फिल्म इन्डस्ट्री के केवल दो लोग- चन्द्रशेखर और मनमोहन कृष्ण मौजुद थे, करण दिवान जी को विनम्र श्रद्धांजलि।
-सुरेश भिटे

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