कमजोर संगठन के सहारे लड़ी कांग्रेस के लिए नगर निगम के परिणाम बने चुनौती

लचर संगठन के सहारे 2023 का रण कैसे लड़ेगी कांग्रेस

इंदौर। कांग्रेस के मुखिया कमलनाथ जो की एक मजबूत इच्छाशक्ति वाले व्यक्ति जाने जाते हैं, जिन्हें कांग्रेस में इंदिरा गांधी के तीसरे पुत्र के रूप में देखा जाता है। उनको मध्यप्रदेश में संगठन बदलाव में कितनी असुविधा का सामना करना पड़ेगा, ऐसा तो शायद केंद्रीय नेतृत्व ने भी नहीं सोचा होगा। मप्र में पंचायतों और नगर निगम के परिणामों से कांग्रेस के मुखिया को जरूर खुशफहमी हो रही है और वो 2023 के विधानसभा चुनाव में 150 से अधिक सीटों पर जीतने का दावा कर रहे हैं, परन्तु जमीनी हकीकत इसके विपरीत दिखाई दे रही है।

मध्यप्रदेश में जमे हुए कांग्रेस के छत्रपों और उनके साए में लंबे समय से बने हुए कांग्रेस अध्यक्षों को यह आभास भी नही हो रहा है कि वे अपनी जमीन खोते जा रहे हैं। जब तक संगठन की कमान वास्तविक तौर पर कुशल संगठकों के हाथ में नहीं आएगी तब तक कांग्रेस के लिए 2023 की राह आसान नहीं होगी। कांग्रेस को डायनिंग पोलिटिक्स से निकल कर ग्रासरूट पोलिटिक्स पर आना होगा और समझना होगा कि प्रतिद्वंदी पार्टियां लगातार उनके वोट बैंक में सेंध लगाने का काम कर रही है।

इंदौर में कांग्रेस लोकसभा चुनाव में सुमित्रा महाजन के दौर से अभी तक उभर नहीं पाई है। एक, दो, तीन, चार और राऊ के साथ अन्य विधानसभाओं में कांग्रेस का जनाधार लगातार कम होते जा रहा है तो वहीं पिछले चार दशक से महापौर सहित नगर निगम पर भाजपा काबिज है। हालांकि इस महापौर चुनाव में भाजपा के जीत का अंतर कुछ कम जरूर हुआ है जिसको लेकर कांग्रेस के लिए शुभ संकेत माना जा सकता है।

परंतु बढ़ती जनसंख्या के हिसाब से देखें तो महापौर का चुनाव भी अपने आपमें एक लोकसभा की विशेषताएं समेटे हुए हैं, जिसको भांपते हुए कमलनाथ ने इंदौर महापौर प्रत्याशी के लिए विधायक संजय शुक्ला के रूप में एक सशक्त उम्मीदवार उतारा था। परंतु इस चुनाव की गंभीरता को समझने में कमलनाथ के सबसे करीबी शहर कांग्रेस अध्यक्ष विनय बाकलीवाल पूरी तरह से नाकाम साबित हुए।

जबकि उन्हें पूरे एक वर्ष का समय मिला था। कांग्रेस संगठन को नगर निगम चुनाव के हिसाब से गढ़ने का पर न ही वे शहर कांग्रेस की कार्यकारिणी समय पर बना पाए न ही निष्क्रिय ब्लॉक अध्यक्षों, मंडल और सेक्टर प्रभारियों को बदल पाए। वहीं प्रवक्ताओं को भी ठीक ढंग से जिम्मेदारी और जवाबदारी नहीं दे पाए। नतीजतन घोषणा से लेकर मतगणना तक कांग्रेस संगठन बिखरा हुआ रहा।

वहीं 85 वार्डो में प्रभारियों की नियुक्ति न कर पाने के साथ संगठन में अनुशासन कायम रख पाने में भी वे नाकाम रहे। ऐसी परिस्थितियों में कांग्रेस के अंदर की अंतरकलह अब सोशल मीडिया पर कार्यकर्ता निकाल रहे हैं। वहीं नगर निगम चुनाव में हार की नैतिक जवाबदारी लेते हुए इस्तीफे की मांग कर रहे हंै। अब कमलनाथ के लिए इन्हें पदमुक्त करना भी आसान नहीं है क्योंकि वे उनके ही सबसे करीबी और खास लोगों में शामिल हैं।

किसे मिलेगी कमान – बहरहाल इस महापौर चुनाव में संजय शुक्ला दूल्हे बने जरूर रहे परंतु कांग्रेस अध्यक्ष विनय बाकलीवाल बरातियों को नहीं जुटा पाए। देखने में अक्सर यह आया है कि कांग्रेस से टिकट मिलते ही प्रत्याशी अनाथ हो जाता है और संगठन नदारद। अब देखना यह है कि बाकलीवाल इस हार को देखते हुए नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देंगे या फिर कमलनाथ उनकी जगह किसी दूसरे के हाथ में शहर कांग्रेस की कमान सौंपेंगे?

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