27 वार्डों के कम मतदान ने उलझाया भाजपा के जीत के समीकरण को, 10 वार्डों में 65 प्रतिशत से अधिक मतदान का लाभ कांग्रेस को

20 साल में पहली बार कांग्रेस वार्डों में दिखी, ब्राहम्ण, मुस्लिम, यादव, हरिजन के पैक्ट का दावा भी किया

इंदौर। कल शहर में नगरीय निकाय को लेकर हुए मतदान के बाद कांग्रेस और भाजपा दोनों के ही जीत के दावे परंतु दूसरी ओर इस बार भाजपा भी मान रही है कि समीकरण पिछले चुनावों की तरह उसके पक्ष में नहीं है। वे जीत रहे है, पर जीत का अंतर कम हो जाएगा। दूसरी तरफ कांग्रेस अपनी जीत को लेकर पूरी तरह विश्वास प्रकट कर रही है। जीत-हार के इस गणित में राजनीति के गणितज्ञों का मानना है कि भाजपा के 27 वार्डों में जीत का समीकरण बिगाड़ दिया है। यहां पर वोटों का प्रतिशत पिछले बार से 5 से 10 प्रतिशत तक नीचे चला गया है तो दूसरी ओर मुस्लिम क्षेत्र के 9 वार्डों में हुए 65 प्रतिशत मतदान का लाभ पूरी तरह कांग्रेस को ही मिल रहा है।

चुनावी समीकरण को लेकर भाजपा के गणित की बजाय कांग्रेस का गणित इस बार ज्यादा मजबूत दिखाई दे रहा है। यूं तो कांग्रेसियों का दावा है कि लंबे समय बाद क्षेत्र क्रमांक 2 में स्थापित नेताओं को भी कांग्रेस के उम्मीदवारों के सामनेे जोर हो गए और किसी जमाने में उनके खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाता था इस बार उन्हीं के क्षेत्रों में 4 से ज्यादा विद्रोहियों ने उन्हें जोर करवा दिया। इसके अलावा 3 से 4 वार्डों में उन्हें सड़क पर भी लड़ाई लड़ना पड़ी। यानि विरोध का स्वर अब उठने लगा है। ठीक यही स्थिति क्षेत्र क्रमांक 4 में भी रही। यहां स्वयं मालिनी गौड़ के वार्ड में कांग्रेस का दावा है कि वह बड़ी सेंध लगाने जा रही है।
अब कांग्रेस के चुनावी समीकरण को भी कुछ इस प्रकार से समझा जा सकता है कि पहली बार भाजपा ने मुस्लिम क्षेत्रों में अपनी दूरी बनाकर रखी है। इसी के कारण भाजपा का 2 लाख 71 हजार मतदाता में से डाला गया 65 प्रतिशत मतदान पूरी तरह कांग्रेस के पक्ष में गया है। यानि डेढ़ लाख के लगभग वोट एकतरफा कांग्रेस को मिले है। दूसरी ओर जिन वार्डों में 65 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ है इनमें कई वार्ड कांग्रेस के लिए मजबूत रहे है।

वहीं इस बार भाजपा के उम्मीदवारों को लेकर भी वार्ड में ही बड़ा विरोध रहा। इसमें 1, 4, 5, 6, 10, 11, 17, 56, 60, 70, 72, 81 और 85 है तो दूसरी ओर भाजपा के मजबूत वार्डों में इस बार वोटों का प्रतिशत 6 से लेकर 11 प्रतिशत तक कम रहा। इसका नुकसान भी इन वार्डों में महापौर उम्मीदवार को उठाना पड़ेगा। हालांकि भाजपा इनमें से कई वार्डों में अपना परचम लहरा लेंगी। जैसे वार्ड क्रमांक 9, 10, 19, 25, 27, 28, 29, 30, 31, 32, 34, 36, 37, 39, 40, 42, 43, 47, 48, 50, 54, 55, 57, 65, 74 और 79 ये 26 वार्ड से भाजपा को इस बार बड़ा नुकसान दिखाई दे रहा है। वहीं मुस्लिम क्षेत्रों के 9 वार्ड 2, 7, 8, 58, 38, 39, 53, 73, 68 ऐसे वार्ड रहे जहां एकतरफा मतदान दिखाई दिया। कांग्रेस के अनुसार पहली बार इस चुनाव में ब्राह्मण, मुस्लिम, यादव और हरिजन वोटों का पेक्ट बन गया था। इसके लिए एक बड़ी टीम काम कर रही थी।

यादव समाज के उम्मीदवारों को लेकर बड़े नेताओं के सम्मान को पूरी तरह कायम रखा और इसी का लाभ कांग्रेस को मिला। इसी कारण 1 लाख से अधिक यादव समाज के वोट विभाजन के बाद भी कांग्रेस को मिलेंगे। तो दूसरी ओर इस बार कांग्रेस का दावा है कि वह हरिजन वोटों में जगह बनाने में सफल हो गई है और यहां से भी उसे अच्छा मतदान मिला है। वहीं व्यापारी भी इस बार संजय शुक्ला को लेकर सहमत थे। कांग्रेस में भी ऐसे तमाम नेता जो लंबे समय से मैदान में नहीं थे वे भी इस बार पूरी तरह मैदान में अपने बल पर ही काम करते रहे।
इस मामले में कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना था हमारे पास इस समय संजय शुक्ला से बेहतर उम्मीदवार मैदान में नहीं है जिसकी सहज और विनम्र छवि सभी को प्रभावित करती है और वे अपनी जीत को लेकर पूरी ताकत लगा रहे है और इसीलिए कांग्रेस लंबे समय बाद मैदान में दिखाई दी।

अब जीत का गणित इस प्रकार से है कि डेढ़ लाख वोट मुस्लिम, डेढ़ लाख वोट ब्राह्मण के अलावा 1 लाख वोट यादव समाज और 1 लाख वोट हरिजन समाज का हर हाल में मिलेगा। इसके अलावा 50 हजार के लगभग वोट निर्दलियों और नोटा में चले जाएंगे। नोटा में वोट देने वाले वे लोग होंगे जो लंबे समय से भाजपा को वोट दे रहे थे। इससे भी भाजपा के स्थापित वोटों में सेंध लगती हुई दिखाई दे रही है और यही कारण है कि आज की तारीख में जोड़, गुणे में कांग्रेस साढ़े 5 लाख वोट के लगभग खड़ी है। कांग्रेस का भी तो बहुत खराब हालत में भी माना जाए तो भी क्षेत्र क्रमांक 2 में भी रमेश मेंदोला के खिलाफ 68 हजार तक डल ही रहा है।

कैलाश और मालिनी लोकप्रियता के कारण लाखों से तो उमा शशी और मोघे को 10 हजार से भी कम पर जीतने के लाले पड़े


कैलाश विजयवर्गीय जब पहली बार महापौर के उम्मीदवार बने थे तो वे विधायक के साथ महापौर का चुनाव लड़ रहे थे। उस वक्त उनकी लोकप्रियता चरम पर थी और इसीलिए वे पौने 2 लाख के लगभग वोटों से विजयी हुए थे। 5 साल के उनके कार्यकाल के बाद उनके ही समर्थन से उनकी एमआईसी में शामिल पार्षद रही उमाशशि शर्मा को भाजपा ने मैदान में उतारा था। उस दौरान कैलाश विजयवर्गीय इंदौर के मजबूत नेता के रूप में अपनी पहचान रखते थे। इसके बाद भी उमाशशि शर्मा को कांग्रेस की शोभा ओझा के सामने जीतने के लाले पड़ गए थे और वे 10 हजार के लगभग ही जीत पाई थी। जबकि शोभा ओझा कांग्रेस में जमीनी नेता के रूप में पहचान नहीं रखती है। इधर इसके अगले चुनाव में फिर भाजपा के वरिष्ठ नेता और संगठन मंत्री रहे कृष्णमुरारी मोघे को सभी की सहमति से उम्मीदवार बनाया था। उनका मुकाबला पंकज संघवी से था।

पंकज संघवी ने अच्छा चुनाव कांग्रेस की ओर से लड़ा था। फिर भी जोड़ गुणे में वे 3 हजार के लगभग वोटों से हार गए थे। इस दौरान मतों का प्रतिशत भी 65 के लगभग ही रहा था। इसके अगले महापौर चुनाव में एक बार फिर भाजपा ने क्षेत्र क्रमांक 4 की विधायक और कार्यकर्ताओं के बीच का चेहरा मालिनी गौड़ को मैदान में उतारा तो जीत का अंतर 70 प्रतिशत मतदान के साथ ढाई लाख के लगभग पहुंच गया।यानि जब भी भाजपा ने ऐसा चेहरा उतारा जो आम आदमी के लिए जाना पहचाना था तो रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल की, परंतु जब ऐसे चेहरे उतारे जिन्हें कार्यकर्ता के बीच भी पहचान के साथ व्यवहार के संकट थे तो उन्होंने जीत के अंतर को लाखों से हजारों पर पहुंचा दिया।

यह चुनाव भी ठीक इसी प्रकार का है यानि अगर भाजपा का उम्मीदवार विजयी हुआ तो यह जीत अधिकतम 10 हजार की ही होगी। कारण यह भी है कि भाजपा उम्मीदवार पुष्यमित्र भार्गव भाजपा के ही कार्यकर्ताओं में अपनी पहचान नहीं रख पाए और इसी कारण कई वार्डों में भाजपा उम्मीदवारों ने महापौर की बजाय खुद के लिए ही वोट मांगे। क्योंकि भार्गव के भरोसे उन्हें एक भी वोट मिलने की संभावना नहीं थी। उमा शशि शर्मा की तो क्षेत्रीय पहचान भी उनके काम आई थी, दूसरी और वे भाजपा के अलावा अन्य कार्यक्रमों मे भी मौजूद रहती थी। इसके बाद भी उन्हें जीतने के लाले पड़ गए थे। इधर पुष्यमित्र भार्गव की कोरोना काल में भी भाजपा के ही कई कार्यक्रताओं के यहां आए दुख में भी नहीं देखा गया। और इसी बात का ब्राहमण समाज में भी बैठकों में सवाल पूछा गया।

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