6 माह बाद भी लागू नहीं हो सकी केंद्रीय गृह मंत्रालय की गुड सेमेरिटन योजना

लाखों का प्रचार-प्रसार करने के बाद भी नहीं किया जा सका अमल

इंदौर। केन्द्रीय गृह मंत्रालय नें दुर्घटना में गंभीर रूप से घायलों की जान बचाने के लिए गुड सेमेरिटन योजना लागू की और इसके लिए यातायात पुलिस व्दारा जन जागरुकता के लिए लाखों रुपए खर्च कर प्रचार प्रसार भी खूब किया, लेकिन छ: माह बाद भी यह योजना महानगर में लागू नहीं हो सकी। विडंबना यह है कि इस योजना के अमलीकरण के लिए अभी भी विभिन्न विभागों के बीच पत्राचार ही चल रहा है।

उल्लेखनीय है कि केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने विगत ३ अक्टूबर २०२१ को पुलिस मुख्यालय भोपाल को पत्र लिखकर पूरे प्रदेश में केन्द्रीय गृह मंत्रालय की गुड सेमेरिटन योजना को लागू करने के निर्देश दिए थे। इसके बाद मध्यप्रदेश यातायात और सड़क सुरक्षा के एडीजी जी जनार्दन ने १५ अक्टूबर से इसे सभी विभागों में लागू किए जाने के लिए निर्देशित किया था। इसके बाद इस योजना के प्रचार-प्रसार हेतु ट्रेफिक पुलिस ने जनजागरुकता हेतु लाखों रुपए खर्च किए, लेकिन यह योजना लागू नहीं हो सकी।

एक व्यक्ति को अधिकतम पांच बार सम्मानित करने का है प्रावधान
इस योजना के तहत एक वर्ष में एक व्यक्ति को अधिकतम पांच बार सम्मानित किया जा सकता है। सम्मान के तौर पर पांच हजार रुपए नकद और प्रशंसा पत्र मिलेगा। सिर, रीढ की हड्डी में चोट या कम से कम तीन दिन के लिए अस्पताल में भर्ती रहने अथवा बड़ी सर्जरी होने की स्थिति में मदद करने वाला व्यक्ति नकद पुरस्कार के लिए पात्र होगा।

आखिर, क्या है यह योजना…
दरअसल, सड़क हादसे में घायल होने वालों को लोग पुलिस प्रपंच से बचने के लिए लोग अस्पताल पहुंचाने में हिचकते हैं। इस वजह से गंभीर रूप से घायल कई बार समय पर उपचार नहीं मिलने की वजह से दम तोड़ देते हैं। यदि किसी गंभीर घायल को गोल्डन आवर में अस्पताल पहुंचा दिया जाए तो उसकी जान बचाई जा सकती है। इसी को देखते हुए केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने समय पर घायल को अस्पताल पहुंचाने वाले को गुड सेमेरिटन(नेक आदमी) का दर्जा देकर उसे पांच हजार रुपए एवं प्रशंसा पत्र देने की घोषणा की गई थी। महानगर में कुछ लोगों ने ऐसा किया भी, लेकिन उन्हें न तो पुरस्कार मिला और न ही प्रशंसा पत्र।

चार विभागों में पत्राचार ही चल रहा है अभी तक योजना को लागू करने के लिए
देखा जाए तो अभी तक इस योजना को लागू करने के मामले में पत्राचार ही चल रहा है। कलेक्टर के निर्देशनमें एक विशेष टीम का गठन किया जाना है। इसमें सीएचएमओ, आरटीओ, ट्रेफिक डीएसपी और कलेक्टर का होना जरूरी है। यही कमेटी इनाम राशि और प्रशंसा पत्र देने का निर्णय करेगी। इस संबंध में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को सभी अस्पतालों को सर्कुलर जारी कर घायलों को लाने वालों का रिकार्ड मैंटेन करना है। किस घायल को गोल्डन आवर में लाया गया , यह भी उल्लेख करना अनिवार्य है। इसी प्रकार, ट्रेफिक विभाग का दायित्व है कि वह घायलों को बचाने के लिए जनजागरुता फैलाए। अस्पतालों के ट्रामा सेंटर से मेडिको लीगल केस की जानकारी लेकर रिकार्ड अपडेट रखना और कमेटी को रिपोर्ट देना होगा। इसके अतिरिक्त, परिवहन विभाग को दुर्घटनाग्रस्त वाहनों के संबंध में जानकारी अपने रिकार्ड से निकालकर पुलिस व अन्य विभाग को देना है। बावजूद इसके अभी तक इसके लिए विभाग कोई सेल या कमेटी का गठन ही नहींं किया गया। इनके बीच अभी इस योजना को लेकर सिर्फ पत्राचार ही चल रहा है।

कई लोगों ने की घायलों की मदद, लेकिन नहीं मिला पुरस्कार
एरोड्रम क्षेत्र में संजय तिवारी ने सौनाली नामक महिला और उसके ६ वर्षीय भतीजे को सड़क हादसे में घायल होने पर गोल्डन आवर में अस्पताल पहुंचाया और उनकी जान बचाई। इसके बाद एक रिटायर्ड पुलिस कांस्टेबल और कालेज स्टूडेंट्स की भी जान बचाई। बावजूद उसे कोई पुरस्कार या प्रमाणपत्र नहीं मिला। इसी प्रकार, सना खान, आदर्श गंगराडे, प्रियांशु पांडे, जयू जोशी ने भी घायलों को गोल्डन आवर में अस्पताल पहुंचाकर उनकी जान बचाई लेकिन उन्हे भी कोई पुरस्कार या प्रशंसा पत्र नहीं मिला। वजह यही कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय की इस योजना पर अभी तक अमल ही नहीं किया जा सका।

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