इंदौर। 2 जून को हमारे फिल्म जगत के ‘ग्रेटेस्ट शो मैनÓ राजकपूर साहब की पुण्यतिथि है। आपका जन्म सन् 1924 में अविभाजित भारत के पेशावर में में हुआ था, वो अभी छोटे बालक थे कि उनके पिताजी याने ‘पापाजी पृथ्वीराज कपूर साहबÓ मुम्बई में आकर फिल्मों में स्थापित हो चुके थे। पूरा परिवार भी मुंबई में स्थापित हो गया था। अपनी पढाई लिखाई के दिनों में राज साहब का मन इस काम में नहीं लगता था, उन्होंने अपने पिताजी से कह दिया कि वो फिल्मों में काम करना चाहते है, पापाजी ने उन्हें फिल्मकार ‘केदार शर्माÓ के पास सहायक के काम पर रखवा दिया।
राजकपूर साहब संगीत के बहुत शौकीन थे, उन्हें संगीत की बहुत जानकारियां थी, फुर्सत के समय वो पापाजी के ‘पृथ्वी थियेटर मेंÓ अपना बहुत समय बिताते थे। ‘शंकरÓ और ‘जयकिशनÓ से और उनकी प्रतिभा को पहचान कर सन् 1948 में अपनी फिल्म ‘बरसातÓ में संगीत निर्देशन का अवसर दिया। इसी प्रकार ‘शैलेन्द्र साहब और हसरत जयपुरी की प्रतिभा को पहचान कर अपनी संगीत टीम में शामिल कर लिया आगे इस टीम ने अगले 25- 30 वर्षों में मधुर और लोकप्रिय गीत संगीत का इतिहास रच दिया ये हम सब जानते है।
राजकपूर साहब सचमुच यारों के यार थे, अपने मित्र शैलेन्द्र की फिल्म ‘तीसरी कसमÓ में बगैर पारिश्रमिक लिये अभिनय किया। अपने मित्र ‘मुकेश साहबÓ को फिल्म ‘आहÓ में एक तांगेवाले के रुप मे ‘छोटी सी ये जिन्दगानी रे चार दिन की जवानीÓ गीत गाते नज़र आने का अवसर दिया। जब दो नौजवान एक अनोखी पटकथा लेकर राज साहब के पास पहुंचे जो केवल एक रात की कहानी थी। राज साहब को कहानी पसंद आयी उन्होंने अपनी कंपनी ‘आर के फिल्म्सÓ के बैनर्स से फिल्म बनाई और निर्देशन का काम उन दोनों नौजवानों को सौंप दिया जिनका नाम था ‘शंभु मित्रा और अमीत मित्राÓ और ये फिल्म थी ‘जागते रहोÓ। ऐसे महान अभिनेता, निर्माता, निर्देशक, संपादक तथा शायद 1- 2 गीतों के गायक ‘राजकपूर साहबÓ का सन् 1988 में स्वर्गवास हो गया, उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि। -सुरेश भिटे