अमेरिका की जिद, रूस के हित में एक देश तबाह होने की कगार पर…


अं तत: अमेरिका की जिद और रूस के हित के बीच यूक्रेन युद्ध का मैदान बन गया। इधर यूक्रेन के राष्ट्रपति ने आज अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि बड़े देशों ने केवल आश्वासन दिया परंतु साथ नहीं दिया। इसके चलते यूक्रेन को अपने से 10 गुना शक्तिशाली देश से मोर्चा लेना पड़ रहा है। यह लड़ाई यूक्रेन के हितों के लिए नहीं बल्कि नाटो देशों सहित पूरे यूरोप के हितों को लेकर लड़ी जा रही है। यूक्रेन प्राकृतिक गैस और तेल का बड़ा उत्पादक देश है। इसके अलावा रूस यूरोप के देशों में 12 प्रतिशत तक प्राकृतिक गैस का निर्यात करता है। रूस की अर्थव्यवस्था डालर पर आश्रित नहीं है। इधर अमेरिका, यूक्रेन को नाटो देशों के समूह में शामिल कर रूस के प्रभाव से यूक्रेन को मुक्त करवाकर यूरोपीय देशों के हितों की ओर देख रहा है। दूसरी तरफ रूस की चिंता यह है कि यदि यूक्रेन नाटो देशों के समूह में शामिल होता है तो नाटो देश की पहुंच उसके दरवाजे तक हो जाएगी और रशिया कतई नहीं चाहता कि अमेरिका नाटो देशों की आड़ में उसकी सीमा पर अपनी ताकत को मजबूत करे। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध का सबसे पहला व्यापक असर यूरोपीय देशों में तेल और प्राकृतिक गैसों की कीमतों पर पड़ेगा। यदि अमेरिका रूस पर अपने प्रतिबंध कड़े करता है तो अमेरिका सहित कई देशों में महंगाई का असर दिखने लगेगा। दूसरी ओर यूरोपीय देशों की बड़ी राशि रूस में कर्ज के रूप में दी गई है। कई विदेशी बैंकों के अरबों डालर का निवेश रूस की बैंकों में किया गया है। यदि प्रतिबंध कड़े लगाए गए तो इसका असर कई देशों की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा। दूसरी ओर रूस द्वारा किए जा रहे कच्चे तेल के उत्पादन पर प्रतिबंध लगाने के बाद तेल देश भी अपना उत्पादन अचानक नहीं बढ़ा पाएंगे, इससे पूरे विश्व में कच्चे तेल की कीमतें 140 डालर के आसपास पहुंच जाएगी। दोनों देशों के बीच युद्ध के चलते पूरी दुनिया पर आर्थिक संकट दरवाजे पर आ गया है। कोरोना महामारी ने पहले ही अर्थव्यवस्था को पीछे धकेल दिया है। यदि युद्ध लम्बा खींचा तो इसके परिणाम द्वितीय विश्व युद्ध से ज्यादा होंगे। अमेरिका और रूस के हितों की लड़ाई में यूक्रेन दूसरा अफगानिस्तान बन जाएगा। इससे न रूस का नुकसान होगा और न अमेरिका का। इसी के साथ भारत की भी अर्थव्यवस्था बुरी तरह डांवाडोल हो जाएगी। भारत अपने यहां कच्चे तेल की 80 प्रतिशत का आयात करता है। कीमतों में उछाल के चलते भारी नुकसान आयात और निर्यात दोनों को ही होगा कुल मिलाकर रूस और अमेरिका के हितों की लड़ाई में एक छोटे से देश की अस्मिता खतरे में पड़ गई है। अब यह समझ लें कि यूक्रेन नाटो देशों के समूह में नहीं भी शामिल होता तो उसके कारोबार पर कोई असर नहीं होना था। यह लड़ाई दो बड़े देशों के निजी हितों के कारण एक देश को बर्बाद कर रही है। सभी बड़े देश केवल दूर से ही प्रतिबंधों की ताकत आजमा रहे हैं। परंतु अगले 48 घंटों में इस बीच यूक्रेन पूरी तरह रूस के कब्जे में हो जाएगा।

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