उच्चतम न्यायालय के फैसले ने सरकारों को राजधर्म की याद दिलाई…
कल उच्चतम न्यायालय के एक फैसले ने जहां देश के संविधान पर आम लोगों का भरोसा कायम किया है। वहीं इससे यह भी तय हो गया है कि जिन लोगों ने देश के संविधान के पालन करने की शपथ ली थी वे अपनी सत्ता को बचाए रखने के लिए समय आने पर मौन धारण कर लेते हैं। इस देश में अभी जो उम्मीद की किरण बची हुई है वह इस देश की न्याय व्यवस्था में ही देखी जा सकती है। इस देश की गंगा-जमुना तहजीब ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं, पर आज भी यह तहजीब पूरे विश्व में अपना विशेष स्थान बनाए हुए है। कल उच्चतम न्यायालय ने उत्तरप्रदेश सरकार के एक फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी, जिसमें सरकार ने कावडिय़ों के आने वाले मार्ग पर छोटे-छोटे दुकानदारों और ठेले वालों को यह निर्देशित किया था कि वे अपना नाम दुकान पर लिखे। दो सदस्यीय खंडपीठ ने इसे गंभीर मामला समझते हुए तीन राज्य सरकारों द्वारा खेले गए खेल को खत्म कर दिया और इस मामले पर तुरंत स्थगन देते हुए अगली सुनवाई 26 जुलाई तय कर दी। सरकार का आंकलन था कि उनकी ओर कोई अभिभाषक खड़ा न होने से उच्चतम न्यायालय नोटिस जारी करेगी, इसमें समय निकल जाएगा परन्तु यह खेल सफल नहीं हो पाया। उच्चतम न्यायालय ने ताजा आदेश में शाकाहारी और मांसाहारी लिखने के निर्देश दिए। दूसरी ओर इस फैसले ने जहां छोटे कारोबारियों और ठेलों पर अपनी रोजी-रोटी से घर चलाने वालों को बचाया वहीं केंद्र की सरकार को राजधर्म भी सिखा दिया। इस आदेश से यह भी तय हो गया है कि देश की सरकार हिन्दू-मुसलमान की न होकर 150 करोड़ देशवासियों की सरकार है और उसे संविधान की आत्मा का सम्मान करना चाहिए। कल ही हरिद्वार में जब एक कावडिय़ां गंगा के तेज बहाव में डूब रहा था तब उसे बचाने वाले मुस्लिम युवा ने अपनी जान की बाजी लगाकर नदी से निकाला। मुरादाबाद में एक मुस्लिम परिवार की चार पीढ़ी कावड़ बनाकर दे रही है और इससे उनका जीवन चल रहा है। यह मुस्लिम परिवार शाकाहारी है। इस देश में कई खाने की होटलों में खाद्यान्न देने वाले मुस्लिम है। ऐसे में इस प्रकार के आदेश से देश का कोई भला नहीं होने वाला है, पर दु:ख की बात यह है कि जब देश इस समय बेरोजगारी और महंगाई से लड़ाई लड़ रहा है तो उस समय इस प्रकार के मुद्दों से देश का कोई भला नहीं होना है। इस मुद्दे के बजाय पिछले 5 सालों से चीन सरकार ने मानसरोवर यात्रा पर रोक लगा रखी है, जो हिन्दुओं का सबसे बड़ा तीर्थस्थल है। हर साल दो लाख लोग यहां चीन के रास्ते पहुंचते थे, जो अब बंद हो गया है। बेहतर होता सरकार इस दिशा में कुछ कदम बढ़ाती बनिस्पत रईस और लतीफ के ठेले पर नाम लिखवाने की बजाय पर क्या कर सकते हैं। कुछ लोग 24 घंटे इसी में लगे रहते हैं। बेहतर हो पूरे देश की जनगणना करवा ली जाए तो सारे आंकड़े सामने आ जाएंगे।