सरकार निजीकरण कार्यक्रम से अब पीछे हटी

तीन बैंकों सहित कई बीमा कंपनियों को निजी हाथों में बेचा जाना था

नई दिल्ली (ब्यूरो)। केन्द्र सरकार ने अपने पिछले बजट में ढोल-ढमाके के साथ निजीकरण कार्यक्रम का ऐलान करते हुए दावा किया था कि सरकार तेजी से सरकारी कंपनियों का निजीकरण करेगी। साथ ही अगले पांच साल में लगभग अधिकतम बैंक निजी हाथों में चले जाएंगे, परन्तु अब सरकार अपने इस फैसले से इस बार के बजट में पिछे खसक गई है। 2016 में 36 कंपनियों का चयन विनिवेश के लिए किया था। इनमें से मात्र 9 कंपनियां ही बेची जा सकी। दूसरी ओर बैंकों के निजीकरण की फाइलें भी बंद हो गई। इधर इस वित्त वर्ष में एलआईसी का आईपीओ भी नहीं आ रहा है।
बहुमत वाली सरकार और सुधारों वाली सरकार अब किसान आंदोलन के बाद अपने कई सुधार कार्यक्रम से पीछे खसक रही है। सुधारों की गाड़ी पटरी से उतरने के बाद अब यह ठंडे बस्ते में चली गई है। पिछले बजट में बैंकों के निजीकरण को लेकर बैंक भी चयनित कर ली गई थी और इनका निजीकरण करने के लिए प्रक्रिया प्रारंभ कर दी थी। परन्तु अब सरकार कर्मचारियों के विरोध और किसान आंदोलन जैसा हश्र देखते हुए पीछे खसक गई हैं। वहीं तीनों सरकारी बीमा कंपनियों का निजीकरण की फाइल भी अब बंद हो गई है। इस साल विनिवेश से मात्र 65 हजार करोड़ का ही लक्ष्य रखा गया है। यानि एलआईसी का आईपीओ भी इस वित्त वर्ष में नहीं आ रहा है। सरकार द्वारा पिछले बजट में इन कार्यक्रमों को सुधार का सबसे बड़ा कार्यक्रम बताया था जो इस बार चुपचाप से समेट लिया गया।
सरकार ने 2016 में विनिवेश के लिए 36 कंपनियों का चयन किया था। इनमें से अभी तक मात्र 9 कंपनियों का ही विनिवेश हो पाया है। इन कंपनियों में एअरइंडिया, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम प्रमुख है। अगले वित्त वर्ष में 65 हजार करोड़ रूपए जुटाने है। इस तरह अगले 14 महीने के दौरान 1.10 लाख करोड़ रूपए तक का विनिवेश करने का टारगेट है। सरकार ने बीपीसीएल और आईडीबीआई बैंक का विनिवेश अब अगले वित्त वर्ष के लिए टाल दिया है। पिछले बजट में दो सरकारी बैंकों और एक बीमा कंपनी का विनिवेश करने की बात की गई थी, जो अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। नीति आयोग ने दो सरकारी बैंकों इंडियन ओवरसीज बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया का विनिवेश करने की सिफारिश की है। सरकार इससे पहले एक बीमा कंपनी को बेचना चाह रही है, लेकिन अभी नाम तय नही हो पाया है। मौजूदा वेल्यू के हिसाब से आईडीबीआई बैंक से करीब 24,500 करोड़ रुपए और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया से 17,500 करोड़ रुपए सरकार को विनिवेश से मिलने थे, परंतु अब सरकार इस साल इन सभी कार्यक्रमों से पीछे हट गई है। नए वित्त वर्ष में इन योजनाओं पर कोई भी चर्चा नहीं हो पाएगी।

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